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Uttarakhand News: अस्कोट (उत्तराखंड) और महसों (बस्ती, उत्तर प्रदेश) का ऐतिहासिक-सांस्कृतिक जुड़ाव: 80 कोट से पाल राजवंश की यात्रा
Uttarakhand News: कस्तूरी मृग अभयारण्य से लेकर कैलाश-मानसरोवर तीर्थयात्रा तक, अस्कोट का समृद्ध इतिहास; अभय पाल देव के वंशजों ने बस्ती में स्थापित की थी राजधानी
Ascot News (Social Media image)
Ascot News: हाल ही में अपनी उत्तराखंड यात्रा के दौरान अस्कोट पहुंचे स्तंभकार, लेखक और ब्लॉगर दुर्गादत्त पाण्डेय ने इस क्षेत्र और उत्तर प्रदेश के बस्ती जिले के महसों के बीच के गहरे ऐतिहासिक और सांस्कृतिक जुड़ाव को उजागर किया है। पिथौरागढ़ जिले में दीदीहाट तहसील में स्थित अस्कोट, एक पुरानी रियासत है, जिसका नाम 'असी कोट' (80 किले) से लिया गया है, जो कभी इस क्षेत्र में मौजूद थे। यह स्थान अपनी प्राकृतिक सुंदरता, कस्तूरी हिरण अभयारण्य और कैलाश-मानसरोवर तीर्थयात्रा के शुरुआती केंद्र के रूप में प्रसिद्ध है।
अस्कोट: एक ऐतिहासिक और प्राकृतिक रत्न
समुद्र तल से 1,106 मीटर की औसत ऊंचाई पर बसा अस्कोट, दूर-दूर तक फैले जंगलों और हरी-भरी घाटियों के बीच, धारचूला और पिथौरागढ़ के बीच एक छोर पर स्थित है। यह पूर्व में नेपाल, पश्चिम में अल्मोड़ा, दक्षिण में पिथौरागढ़ और उत्तर में तिब्बत से घिरा है। यहां देवदार, शीशम, ओक और साल के पेड़ों के जंगल के बीच गोरी गंगा और काली नदियां बहती हैं, और पंचुली व चिपलाकोट चोटियाँ साफ दिखती हैं।
अस्कोट की राजसत्ता कई पीढ़ियों से कत्यूरी राजाओं के वंशजों के पास है, जो अपने नाम के साथ 'पाल' लगाते हैं और जिन्हें 'रजबार' की उपाधि मिली है। यह स्थान सिर्फ पर्यटन और जैव विविधता ही नहीं, बल्कि ऐतिहासिक रूप से भी काफी समृद्ध रहा है। आजादी के बीस साल बाद इस रियासत का भारत में विलय हुआ। वर्तमान में यह उत्तराखंड का एक खूबसूरत ऑफबीट डेस्टिनेशन है, जो अपने शांत माहौल, हाइकिंग और ट्रैकिंग के अवसरों के लिए जाना जाता है।
अस्कोट वन्यजीव अभयारण्य, 1986 में कस्तूरी मृग और उसके निवास स्थान के संरक्षण के उद्देश्य से स्थापित किया गया था, जो यहां का सबसे बड़ा आकर्षण है। कुछ ही फासले पर पाल राजाओं का महल है, जो अस्कोट के वर्षों पुराने इतिहास को आज भी संजोए हुए है। यह महल वर्तमान में एक संग्रहालय से कम नहीं है, जहां कई ताम्रपत्रों में अतीत की विरासत और अस्कोट के सौ से अधिक राजाओं के नाम के दुर्लभ भोजपत्र आज भी सहेजकर रखे गए हैं।
अस्कोट राजवंश का बस्ती-महसों से संबंध
अस्कोट राजवंश की वर्तमान पीढ़ी के राजवार भानु राज सिंह पाल (देवल दरबार) गर्व के साथ बताते हैं कि अस्कोट को भारत की सुरक्षा और सनातन धर्मावलंबियों की रक्षा, विशेषकर कैलाश-मानसरोवर की निर्बाध यात्रा सुनिश्चित करने के लिए '80 कोट' के रूप में स्थापित किया गया था। आज भी, प्रतिवर्ष कैलाश-मानसरोवर यात्रा में जाने वाले यात्रियों के समूह का पारंपरिक रीति-रिवाज के साथ स्वागत किया जाता है।
पाण्डेय बताते हैं कि जब कैलाश-मानसरोवर की यात्रा में बाधाएं आने लगीं, तो संतों-महंतों ने कत्यूरी महाराज से उनके पुत्र को धर्म की रक्षा और भारत के सीमावर्ती प्रदेश की सुरक्षा के लिए मांगा। कत्यूरी महाराज ने सहर्ष अपने वीर पुत्र अभय पाल देव को भेज दिया। उन्होंने न केवल यात्रा को सुरक्षित किया, बल्कि भारत के इस सीमावर्ती इलाके में 80 कोट (किले) की स्थापना की।
महाराज अभय पाल देव की पीढ़ी से उनके दो वीर योद्धा पुत्रों राजकुमार अलख देव और तिलक देव ने युद्ध करते-करते घने जंगलों से गुजरकर बस्ती के पास अपनी पहुँच बनाई। स्थानीय जनजातियों से एक युद्ध के बाद, उन्होंने महुली (जो अब संत कबीर नगर में है) में अपनी राजधानी स्थापित की और राज करने लगे। बाद के कालखंड में, महसों के पास एक और भयंकर युद्ध हुआ, जहाँ अनगिनत सिर कटकर गिरे, उस स्थान को आज भी 'मुड़कट्टी' कहा जाता है। महसों को एक सुरक्षित स्थान जानकर, सूर्यवंशी पाल वंश ने इसे अपनी राजधानी बनाया, जो एक लंबे समय से चली आ रही परंपरा है।
सामरिक महत्व और पहुंच
सामरिक दृष्टिकोण से, चीन सीमा धारचूला तक आसानी से पहुंच बढ़ाने के लिए टनकपुर से अस्कोट मार्ग को विकसित करने का सुझाव दिया गया है। इससे सीधे टनकपुर से अस्कोट 2.5 (ढाई) घंटे में पहुंचा जा सकता है, जिससे काफी समय की बचत होगी और चंपावत, लोहाघाट और पिथौरागढ़ जाने की आवश्यकता नहीं पड़ेगी।
अस्कोट कैसे पहुँचें:
• सड़क मार्ग: उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ से अस्कोट जाने के लिए टनकपुर और वहां से पिथौरागढ़ होते हुए पहुंचा जा सकता है। टनकपुर - पिथौरागढ़ से 55 किलोमीटर की दूरी पर है।
• हवाई मार्ग: निकटतम हवाई अड्डा पंतनगर है, जो लगभग 350 किमी दूर है।
• रेल मार्ग: निकटतम रेलवे स्टेशन काठगोदाम में है, जो अस्कोट से लगभग 280 किमी दूर है। यहां से अस्कोट पहुंचने के लिए टैक्सी और बसें मिल जाती हैं। हल्द्वानी - अल्मोड़ा के रास्ते काठगोदाम से लगभग 150 किलोमीटर की दूरी पर अस्कोट पहुंचा जा सकता है।
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