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Chandauli News:चंदौली के नौगढ़ में शिक्षा संकट: विद्यालयों के विलय से नौनिहालों का भविष्य खतरे में
Chandauli News: नौगढ़ के ग्रामीण गरीब और आदिवासी समुदाय से हैं, जो पहले से ही आर्थिक और सामाजिक चुनौतियों से जूझ रहे हैं। विद्यालय बंद होने से उन्हें अब अपने बच्चों की सुरक्षा और शिक्षा की चिंता सता रही है।
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Chandauli News:चंदौली जिले के सबसे पिछड़े और दुर्गम वनांचल क्षेत्र नौगढ़ में सरकार की विद्यालय विलय नीति ने बच्चों के भविष्य पर प्रश्नचिह्न लगा दिया है। कम नामांकन का हवाला देकर 23 प्राथमिक एवं पूर्व माध्यमिक विद्यालयों को बंद करने की प्रक्रिया को तेज कर दी गई है और बच्चों को दूर के विद्यालयों में समायोजित करने की प्रक्रिया शुरू कर दी गई है। यह कदम बच्चों और उनके अभिभावकों की नींद उड़ा रहा है।
नौगढ़ का भूगोल बेहद चुनौतीपूर्ण है—जंगल, पहाड़, नाले और कच्चे- पथरीले रास्ते यहां की पहचान हैं। छोटे बच्चों के लिए इन रास्तों से स्कूल पहुंचना एक जोखिम भरी यात्रा बन जाएगा। जंगली जानवरों का डर, बारिश में बहते नाले और असुरक्षित रास्ते, इन सबने बच्चों की पढ़ाई को जोखिम में डाल दिया है।
"अब पढ़ने नहीं, डरने जाना पड़ेगा!"
बच्चे पूछ रहे हैं—"मां, अब स्कूल कैसे जाएंगे?" यह सवाल हर अभिभावक के दिल में चुभ रहा है। जो बच्चे पहले पैदल 5–10 मिनट में स्कूल पहुंच जाते थे, अब उन्हें 3–5 और कहीं कहीं तो 10-15 किलोमीटर तक चलना होगा। स्कूल जाना अब शिक्षा का नहीं, साहस का काम हो गया है।
ग्रामीणों में रोष और बेबसी
नौगढ़ के ग्रामीण गरीब और आदिवासी समुदाय से हैं, जो पहले से ही आर्थिक और सामाजिक चुनौतियों से जूझ रहे हैं। विद्यालय बंद होने से उन्हें अब अपने बच्चों की सुरक्षा और शिक्षा की चिंता सता रही है। एक बुजुर्ग ग्रामीण कहते हैं, "हम अपने बच्चों को स्कूल भेजना चाहते हैं, लेकिन क्या जंगल में भेजें?"खंड शिक्षा अधिकारी का तर्क है कि विद्यालयों का विलय शिक्षा की गुणवत्ता बढ़ाने और संसाधनों के समुचित उपयोग के लिए किया गया है। लेकिन सवाल उठता है कि क्या सरकार ने कभी नौगढ़ के जमीनी हालात को खुद आकर देखा है?
वनांचल के लिए अलग नीति क्यों नहीं?
नौगढ़ जैसे क्षेत्रों के लिए एकसमान नीति लागू करना अन्यायपूर्ण है। यह वही क्षेत्र है जिसे सपा सरकार ने तय मानक न होने के बावजूद विशेष परिस्थितियों को देखते हुए तहसील का दर्जा दिया था। अब उसी क्षेत्र के बच्चों से यह उम्मीद करना कि वे जंगल-पहाड़ पार कर स्कूल जाएं, कहीं से भी न्यायसंगत नहीं है।
सरकार से सवाल, समाधान की दरकार
क्या सरकार इन बच्चों की पढ़ाई, सुरक्षा और भविष्य की गारंटी ले सकती है? क्या संसाधन की बचत के नाम पर आदिवासी बच्चों के सपनों की बलि दी जाएगी?सरकार को चाहिए कि वह निर्णय पर पुनर्विचार करे और विशेष परिस्थिति वाले क्षेत्रों के लिए अलग और संवेदनशील नीति बनाए। नहीं तो 'शिक्षा का अधिकार' सिर्फ कागज़ों तक सीमित रह जाएगा, और नौगढ़ के बच्चे एक बेहतर भविष्य से वंचित रह जाएंगे।
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