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Chandauli News: चंदौली के नौगढ़ में एक चिंगारी : ग्राम्या संस्थान और बिंदु सिंह की अतुल्य कहानी
Chandauli News: चंदौली के नौगढ़ में ग्राम्या संस्थान और बिंदु सिंह की 30 साल की समाज सेवा ने शिक्षा, महिला सशक्तिकरण और आत्मनिर्भरता की नई रोशनी जगाई।
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Chandauli News: चंदौली की मिट्टी ने हमेशा ही संघर्षों को अपनी गोद में पाला है, लेकिन कुछ चिंगारियां ऐसी होती हैं जो न केवल जलती हैं, बल्कि अपने प्रकाश से दूसरों को भी रोशन कर देती हैं। ऐसी ही एक चिंगारी है ग्राम्या संस्थान और उसकी सचिव बिंदु सिंह। एक ऐसा नाम, जो आज के समय में, जब समाज सेवा सिर्फ एक दिखावा बनकर रह गई है, पत्रकारिता की तीखी निगाहों से भी प्रशंसा बटोरने का दम रखता है। आमतौर पर, जब हम एनजीओ की बात करते हैं, तो मन में संदेह की एक परत चढ़ जाती है, क्या यह काम दिखावे के लिए है? क्या यह सिर्फ फंड जुटाने का एक जरिया है? लेकिन नौगढ़ के बीहड़ और दुर्गम इलाकों में ग्राम्या संस्थान का काम इन सारे सवालों को चुप करा देता है। यह कोई साधारण सामाजिक कार्य नहीं, बल्कि एक अथक तपस्या है, जो पिछले 30 सालों से लगातार चल रही है।
हाशिए पर खड़े समाज को आवाज देती एक पुकार
ग्राम्या संस्थान की स्थापना 1992 में एक ऐसे उद्देश्य के साथ हुई थी, जो आज भी उतना ही प्रासंगिक है, जितना दशकों पहले था। इसका मकसद था महिलाओं के प्रति होने वाले भेदभाव, शोषण और हिंसा को समाप्त कर उन्हें सम्मान और अधिकार दिलाना। संस्था ने नौगढ़ के उन सबसे पिछड़े और हाशिए पर रहने वाले समुदायों को अपना कार्यक्षेत्र बनाया, जहां गरीबी, निरक्षरता, नशाखोरी और घरेलू हिंसा ने गहरी जड़ें जमा रखी थीं। यह कोई आसान काम नहीं था। यह एक ऐसे युद्ध की तरह था, जहां दुश्मन अदृश्य और हर जगह मौजूद थे—सामाजिक रूढ़ियां, पितृसत्ता और व्यवस्था की खामियां। लेकिन ग्राम्या ने हार नहीं मानी।
चिराग केंद्रों से शिक्षा की अलख
शिक्षा की रोशनी से वंचित बच्चों, खासकर बच्चियों के लिए, ग्राम्या ने एक अनूठी पहल की। उन्होंने गांव-गांव में ‘चिराग केंद्र’ स्थापित किए। ये सिर्फ स्कूल नहीं थे, बल्कि वे केंद्र थे जहां भविष्य की नींव रखी जा रही थी। उन जगहों पर, जहाँ सरकारी स्कूल या तो दूर थे या उनकी हालत बदतर थी, इन केंद्रों ने सैकड़ों बच्चों को मुफ्त शिक्षा दी। यह सिर्फ अक्षर ज्ञान नहीं था, बल्कि उन्हें जीवन जीने का तरीका सिखाया गया। यह संस्थान की दूरदर्शिता का ही परिणाम है कि आज इस अंधेरे से निकली कई छात्राएं सरकारी टीचर, स्टाफ नर्स, और एएनएम जैसे महत्वपूर्ण पदों पर सेवा दे रही हैं। यह दिखाता है कि जब सही दिशा और मार्गदर्शन मिले तो सबसे पिछड़े वर्ग के बच्चे भी आसमान छू सकते हैं।
एक सशक्तिकरण का आंदोलन
ग्राम्या का काम सिर्फ शिक्षा तक सीमित नहीं रहा। उन्होंने महिलाओं को उनके अधिकारों के प्रति जागरूक किया। एक ऐसा समय था जब महिलाएं शोषण और हिंसा के खिलाफ आवाज उठाने से डरती थीं। लेकिन ग्राम्या ने उन्हें सिखाया कि चुप रहना कोई समाधान नहीं है। उन्होंने किशोरी और महिला लीडर्स के समूह बनाए, उन्हें प्रशिक्षण दिया और उनमें आत्मविश्वास भरा। आज ये लीडर्स अपने समुदाय की समस्याओं को सुलझाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही हैं। करीब 1,200 किशोरियों और 650 महिलाओं को संगठित करके, उन्हें न केवल ज्ञान दिया गया, बल्कि उन्हें अपने जीवन के फैसले खुद लेने के लिए सशक्त भी किया गया।
इसके अलावा, संस्था ने प्रजनन स्वास्थ्य, मातृत्व देखभाल, और सरकारी योजनाओं तक पहुंच सुनिश्चित करने में भी अहम भूमिका निभाई। उन्होंने सरकारी विभागों के साथ मिलकर काम किया और यह सुनिश्चित किया कि लाभार्थियों को सही लाभ मिल सके। मनरेगा जैसी योजनाओं में भी महिला श्रमिकों की भागीदारी बढ़ाने में ग्राम्या का योगदान सराहनीय रहा है।
आत्मनिर्भरता की ओर बढ़ते कदम
आत्मनिर्भरता किसी भी समाज के विकास की पहली सीढ़ी होती है। ग्राम्या ने इस बात को समझा और महिलाओं और किशोरियों को कौशल प्रशिक्षण देना शुरू किया। ब्यूटीशियन और सिलाई जैसे कोर्स के माध्यम से, अब तक 900 से अधिक लोगों को प्रशिक्षित किया जा चुका है। उन्हें केवल कौशल ही नहीं, बल्कि व्यवसाय शुरू करने के लिए किट भी दी गई, जिससे वे अपनी आजीविका कमा सकें। यह सिर्फ एक व्यवसाय नहीं, बल्कि एक सम्मानजनक जीवन जीने का जरिया है।
अंत में, ग्राम्या संस्थान और बिंदु सिंह का काम केवल एक एनजीओ की रिपोर्ट नहीं है, बल्कि यह एक जीवित दस्तावेज़ है जो बताता है कि जब समर्पण और लगन हो, तो बड़े से बड़े पहाड़ को भी हिलाया जा सकता है। यह उन तमाम लोगों के लिए एक सीख है जो सामाजिक कार्य को सिर्फ एक औपचारिकता मानते हैं। नौगढ़ में, जहां की हवा में कभी निराशा थी, आज उम्मीद की एक नई सुबह का एहसास है। यह सब मुमकिन हुआ है उस एक चिंगारी से, जिसका नाम है ग्राम्या संस्थान।
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