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Chandauli News: शिक्षा विभाग की संवेदनहीनता! दिव्यांग बच्चों के शौचालय बने भ्रष्टाचार का शिकार
Chandauli News: योजना के प्रारंभिक चरण में विद्यालयों के हेडमास्टरों के माध्यम से निर्माण कार्य शुरू हुआ था। इस दौरान कुछ स्थानों पर दिव्यांग शौचालय बने भी, लेकिन कई जगह निर्माण अधूरा रह गया।
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Chandauli News: उत्तर प्रदेश के चंदौली जिले के नौगढ़ तहसील क्षेत्र में शिक्षा विभाग की घोर लापरवाही सामने आई है। सरकारी स्कूलों में दिव्यांग बच्चों के लिए शौचालय निर्माण की महत्वाकांक्षी योजना फाइलों में ही दम तोड़ रही है। सर्व शिक्षा अभियान के तहत जारी किया गया लाखों रुपये का बजट भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ गया है, जिसके कारण आज भी दिव्यांग छात्र शौचालय जैसी बुनियादी सुविधा के लिए तरस रहे हैं।
कागजों में सिमटी योजना, जमीनी हकीकत से कोसो दूर
केंद्र सरकार द्वारा संचालित सर्व शिक्षा अभियान के अंतर्गत वर्ष 2022-23 में नौगढ़ के 118 प्राथमिक, उच्च प्राथमिक, कंपोजिट विद्यालय और कस्तूरबा गांधी आवासीय बालिका विद्यालयों में दिव्यांग शौचालयों के निर्माण के लिए प्रति विद्यालय लगभग 95 हजार रुपये का बजट आवंटित किया गया था। शुरुआत में यह धनराशि कुछ ही विद्यालयों को मिली थी, लेकिन बाद में सभी विद्यालयों के लिए मद आवंटित कर दिया गया। इस सराहनीय पहल का मुख्य उद्देश्य दिव्यांग छात्रों को शौच की समस्या से मुक्ति दिलाना था, परन्तु वास्तविकता इसके विपरीत है।
प्रधानों के खाते में धन, निर्माण कार्य अधूरा या गुणवत्ताहीन
योजना के प्रारंभिक चरण में विद्यालयों के हेडमास्टरों के माध्यम से निर्माण कार्य शुरू हुआ था। इस दौरान कुछ स्थानों पर दिव्यांग शौचालय बने भी, लेकिन कई जगह निर्माण अधूरा रह गया। जो शौचालय बने भी, उनकी गुणवत्ता इतनी खराब थी कि वे दिव्यांग बच्चों के इस्तेमाल के लायक ही नहीं थे। इसके बाद, वर्ष 2024-25 में इस योजना का बजट हेडमास्टरों को न देकर सीधे ग्राम पंचायत के प्रधानों के खाते में हस्तांतरित कर दिया गया। हैरानी की बात यह है कि इस दौरान अधिकांश विद्यालयों में धन तो खर्च हो गया, लेकिन शौचालयों की दशा जस की तस बनी रही।
भ्रष्टाचार का खुला खेल, ग्रामीणों ने उठाई जांच की मांग
स्थानीय ग्रामीणों का आरोप है कि ग्राम प्रधानों,विकास विभाग और शिक्षा विभाग के भ्रष्ट अधिकारियों की मिलीभगत से दिव्यांग शौचालय के नाम पर आवंटित लाखों रुपये का दुरुपयोग किया गया है। कई स्थानों पर तो पुराने, जर्जर शौचालयों की मामूली मरम्मत को ही नया निर्माण दर्शाकर भुगतान करा लिया गया है। प्रत्येक विद्यालय को 95 हजार से लेकर 1 लाख 30 हजार रुपये तक की धनराशि आवंटित होने के बावजूद, पूरे क्षेत्र में एक भी ऐसा दिव्यांग शौचालय नहीं दिखाई देता जो सही ढंग से कार्यरत हो। ग्रामीणों ने इस गंभीर मामले की उच्चस्तरीय जांच की पुरजोर मांग की है, ताकि दिव्यांग बच्चों के अधिकारों का हनन करने वाले दोषियों के खिलाफ कठोर कार्रवाई सुनिश्चित की जा सके और उन्हें उनकी मूलभूत सुविधा मिल सके।
शिक्षा और विकास विभाग के अधिकारी साधे चुप्पी
इस संदर्भ में जब खण्ड शिक्षा अधिकारी लालमणि कन्नौजिया से दिव्यांग शौचालयों की स्थिति के बारे में पूछा गया, तो उन्होंने गैरजिम्मेदाराना रवैया दिखाते हुए कहा कि इस बारे में खण्ड विकास अधिकारी ही जानकारी दे पाएंगे। जब उनसे यह पूछा गया कि क्या विद्यालयों में शौचालय बने भी हैं, तो उन्होंने स्वीकार किया कि 15-16 विद्यालयों में बने तो हैं, मगर उन्हें अभी तक सुपुर्द नहीं किया गया है। इसके पश्चात, जब खण्ड विकास अधिकारी अमित कुमार से इस विषय पर बात करने का प्रयास किया गया, तो उन्होंने भी बात टालते हुए कहा कि वह देखकर बताएंगे। असलियत यही है कि इस पूरे मामले पर कोई भी अधिकारी खुलकर बात नहीं करना चाहता, क्योंकि दिव्यांगों के शौचालय के लिए आया हुआ सारा धन या तो खर्च हो गया है और शौचालय बने नहीं, और यदि कहीं बने भी हैं तो वे मानकों के अनुरूप नहीं हैं। सच्चाई तो यह है कि शौचालयों का सिर्फ ढांचा खड़ा कर दिया गया है, जो इस्तेमाल करने लायक ही नहीं है।
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