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Chandauli News: आर्थिक तंगी से जूझ रहे पंचायत सहायक, जिम्मेदार कौन?
Chandauli News: इन पंचायत सहायकों के घरों में चूल्हे ठंडे पड़ने लगे हैं। दो जून की रोटी का इंतजाम करना भी अब टेढ़ी खीर साबित हो रहा है।
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Chandauli News: नौगढ़ ब्लॉक के मिनी सचिवालय में इन दिनों खामोशी पसरी है, लेकिन यह शांति किसी गहरी उदासी से भरी हुई है। यहां कार्यरत पंचायत सहायकों का धैर्य अब जवाब दे रहा है। वजह? महीनों से, बल्कि कुछ के लिए तो सालों से, उनके मानदेय का भुगतान नहीं किया गया है। यह सिर्फ चंदौली के एक ब्लॉक की कहानी नहीं, बल्कि एक ऐसे सिस्टम पर सवालिया निशान है जो अपने ही कर्मचारियों का हक मार रहा है।
किराना उधार और खाली होते घर
इन पंचायत सहायकों के घरों में चूल्हे ठंडे पड़ने लगे हैं। दो जून की रोटी का इंतजाम करना भी अब टेढ़ी खीर साबित हो रहा है। किराने की दुकानों पर उधार की लिस्ट लंबी होती जा रही है, दूध वाले को आंखें चुरा कर निकलना पड़ रहा है, और बच्चों की स्कूल फीस जमा करना तो दूर, उनके लिए कॉपी-किताबें खरीदना भी मुश्किल हो गया है। जिनके घरों में कोई बीमार है, उनकी पीड़ा तो और भी असहनीय है। दवाइयों का खर्च आसमान छू रहा है, और जेबें खाली हैं। यह कैसी विडंबना है कि गांव के विकास में अपना योगदान देने वाले ये कर्मचारी आज खुद आर्थिक रूप से बदहाल हैं?
शासन-प्रशासन की बेरुखी
सबसे बड़ा और कड़वा सवाल यह है कि इन पंचायत सहायकों की फरियाद सुनेगा कौन? महीनों से मानदेय न मिलने के कारण ये कर्मचारी मानसिक रूप से टूट चुके हैं। उन्हें अपने भविष्य की चिंता सता रही है। क्या जिले के आला अधिकारी इस गंभीर मामले पर आंखें मूंद कर बैठे रहेंगे? क्या उन्हें इन कर्मचारियों की चीख सुनाई नहीं दे रही? यह देखना लाजमी है कि कब प्रशासन की नींद टूटेगी और कब इन मेहनतकशों को उनका हक मिलेगा।
कब मिलेगा इंसाफ?
यह सिर्फ मानदेय का मामला नहीं है, यह उन हजारों परिवारों की उम्मीदों और सपनों का सवाल है जो इन पंचायत सहायकों पर निर्भर हैं। यह उस भरोसे का सवाल है जो एक कर्मचारी अपने नियोक्ता पर रखता है। क्या यह सिस्टम इतना असंवेदनशील हो गया है कि उसे इन कर्मचारियों की तकलीफ भी नजर नहीं आ रही? अब वक्त आ गया है कि जिले के जिम्मेदार अधिकारी इस मामले में तत्काल हस्तक्षेप करें और सुनिश्चित करें कि इन पंचायत सहायकों को उनका बकाया मानदेय जल्द से जल्द मिले, ताकि वे भी सम्मान से अपना जीवन जी सकें। अन्यथा, यह सवाल हमेशा गूंजता रहेगा कि आखिर कब इन बेबस कर्मचारियों को इंसाफ मिलेगा?
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