Hapur News: एनसीआर का जलियांवाला बाग: हापुड़ का शहीद चौक, जहां आजादी के लिए गूंज उठी थीं गोलियों की आवाज

Hapur News: अतरपुरा चौक सिर्फ एक साधारण चौराहा नहीं, बल्कि देश की आजादी के आंदोलन का जिंदा गवाह है। यहां 10 अगस्त 1942 को अंग्रेजी पुलिस की गोलियों से चार स्वतंत्रता सेनानी शहीद हो गए थे।

Avnish Pal
Published on: 13 Aug 2025 1:45 PM IST
Hapur News: एनसीआर का जलियांवाला बाग: हापुड़ का शहीद चौक, जहां आजादी के लिए गूंज उठी थीं गोलियों की आवाज
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Hapur Shaheed Chowk

Hapur News: हापुड़ का अतरपुरा चौक सिर्फ एक साधारण चौराहा नहीं, बल्कि देश की आजादी के आंदोलन का जिंदा गवाह है। यहां 10 अगस्त 1942 को अंग्रेजी पुलिस की गोलियों से चार स्वतंत्रता सेनानी शहीद हो गए थे। इस घटना ने न सिर्फ हापुड़ बल्कि पूरे एनसीआर को झकझोर दिया था। यही वजह है कि इसे आज भी ‘एनसीआर का जलियांवाला बाग’ कहा जाता है।

भारत छोड़ो आंदोलन की पृष्ठभूमि

9 अगस्त 1942 को महात्मा गांधी के नेतृत्व में भारत छोड़ो आंदोलन का आगाज हुआ। देशभर में आंदोलन तेज हो गया और अंग्रेजी हुकूमत ने बड़े नेताओं को गिरफ्तार कर लिया। इसके विरोध में जगह-जगह हड़ताल और जुलूस निकाले जाने लगे। हापुड़ में भी क्रांतिकारियों ने 10 अगस्त को टाउनहाल पर तिरंगा फहराने का फैसला किया।

अतरपुरा चौक पर टकराव

जुलूस का नेतृत्व कैलाश चंद महेश और लाला शादीराम कर रहे थे। जैसे ही जुलूस अतरपुरा चौराहे पर पहुंचा, तत्कालीन कोतवाल ने रोकने का प्रयास किया और भीड़ को वापस जाने को कहा। लेकिन देशभक्त पीछे हटने को तैयार नहीं थे। पहले लाठीचार्ज किया गया, जिससे कई लोग घायल हुए, लेकिन जुलूस आगे बढ़ता रहा। अंततः कोतवाल ने गोली चलाने का आदेश दे दिया।

शहीदों की कुर्बानी

गोलियों की बौछार में पंडित अंगनलाल शर्मा, मांगे लाल वैश्य, रामस्वरूप जाटव और गिरधारी लाल ठठेरे मौके पर ही शहीद हो गए। लाला सेवकराम को भी तीन गोलियां लगीं, लेकिन उन्होंने तिरंगा झुकने नहीं दिया। घायल अवस्था में ही वे नगर पालिका पहुंचे और तिरंगा फहरा दिया। यह साहस आज भी हापुड़ के इतिहास में अमर है।

अज्ञात बच्ची का बलिदान

घटना के दो दिन बाद, 12 अगस्त 1942 को सफाई के दौरान अतरपुरा चौक पर एक 12 वर्षीय बच्ची का शव मिला। उसकी पहचान आज तक नहीं हो पाई, लेकिन माना जाता है कि वह भी उसी दिन की गोलीबारी का शिकार हुई थी।

गोलियों के निशान आज भी मौजूद

उस दिन बरसाई गई गोलियों से चौक की दीवारें छलनी हो गई थीं। एक भवन की दीवार पर आज भी वे निशान मौजूद हैं, जो इस भीषण घटना की गवाही देते हैं। यही कारण है कि इसे ‘मिनी जलियांवाला बाग’ भी कहा जाने लगा।

जनपद की परंपरा

हर साल 11 अगस्त को नगर के लोग यहां एकत्र होकर शहीदों को श्रद्धांजलि देते हैं। यह परंपरा आजादी के बाद से आज तक चली आ रही है और आने वाली पीढ़ियों को बलिदान की गाथा सुनाती है।

कायाकल्प की तैयारी

लंबे समय से उपेक्षित पड़े शहीद चौक के संरक्षण और सौंदर्यीकरण के लिए प्रशासन ने योजना बनाई है। प्रस्ताव है कि यहां शहीद स्मारक, स्वतंत्रता संग्राम गैलरी और बलिदान से जुड़ी जानकारी प्रदर्शित की जाए, ताकि यह स्थल ऐतिहासिक पर्यटन का केंद्र बन सके और आने वाली पीढ़ियां देशभक्ति की इस मिसाल से प्रेरित हों।हापुड़ का शहीद चौक सिर्फ एक स्थान नहीं, बल्कि बलिदान, साहस और आजादी के जुनून का प्रतीक है, जो हमेशा आने वाली पीढ़ियों को यह संदेश देता रहेगा — वतन के लिए जिएं और जरूरत पड़े तो हंसते-हंसते कुर्बान हो जाएं।

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