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Lucknow News: हाईकोर्ट ने रेरा की ‘ग़ैरक़ानूनी पीठ’ पर कसा शिकंजा, अधिकारों के दुरुपयोग पर उठाए गंभीर सवाल
Lucknow High Court News: यह फैसला उस याचिका पर आया जिसे एक्सपीरियन डेवेलपर्स प्रा. लि. ने दायर किया था, जिसमें 22 मई 2025 को रेरा द्वारा पारित आदेश को चुनौती दी गई थी।
Lucknow High Court Tightens its Grip on RERA Illegal Bench
Lucknow High Court News: इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ पीठ ने उत्तर प्रदेश रियल एस्टेट रेगुलेटरी अथॉरिटी (रेरा) को करारा झटका देते हुए, एक 'अधिनिर्णय अधिकारी' को न्यायिक पीठ का हिस्सा बनाने की कार्यवाही पर कड़ी आपत्ति जताई है और इसे कानून के दायरे से बाहर बताया है।
यह फैसला उस याचिका पर आया जिसे एक्सपीरियन डेवेलपर्स प्रा. लि. ने दायर किया था, जिसमें 22 मई 2025 को रेरा द्वारा पारित आदेश को चुनौती दी गई थी। हाईकोर्ट ने साफ कहा कि जब प्राधिकरण के सभी तीन सदस्य, जिनमें चेयरपर्सन भी शामिल हैं, उपलब्ध हैं, तब न्यायिक कार्यों का अधिकार एक अधिनिर्णय अधिकारी को देना न केवल अनधिकृत है बल्कि रेरा अधिनियम, 2016 की आत्मा के खिलाफ है।
कोर्ट ने दो टूक सवाल उठाया कि - क्या यह प्राधिकरण द्वारा अपनी पीठ में नए सदस्य जोड़ने जैसा नहीं है, जबकि यह अधिकार केवल राज्य सरकार को है?”
याचिकाकर्ता की ओर से कहा गया कि धारा 81 के तहत दिया गया अधिकार रेरा को अधिनिर्णय अधिकारी को न्यायिक शक्तियाँ सौंपने की अनुमति नहीं देता, विशेषकर तब जब सभी वैधानिक सदस्य उपलब्ध हैं।
रेरा ने न्यूटेक प्रोमोटर्स मामले का हवाला देकर अपने कदम को सही ठहराने की कोशिश की, लेकिन कोर्ट ने इसे ग़लत संदर्भ में लागू किया गया बताया और स्पष्ट किया कि उस मामले में किसी तीसरे पक्ष को अधिकार सौंपने का सवाल उठा ही नहीं था। कोर्ट ने न केवल 22 मई 2025 के आदेश पर अंतरिम रोक लगाई, बल्कि यह भी आदेश दिया कि संबंधित शिकायत पर अब केवल विधिवत नियुक्त सदस्य ही सुनवाई करेंगे, अधिनिर्णय अधिकारी नहीं।
यह फैसला एक अस्थायी राहत के रूप में पारित किया गया है, लेकिन इसके दूरगामी परिणाम हो सकते हैं। कोर्ट ने यह भी कहा कि यह आदेश मिसाल के तौर पर नहीं माना जाएगा, लेकिन इससे उत्पन्न संवैधानिक और वैधानिक सवालों की गहराई को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता।
मामले की अगली सुनवाई अगस्त 2025 में होगी, और कानून विशेषज्ञों की नजर में यह फैसला रेरा की सत्ता की सीमाएं, न्यायिक प्रक्रिया की वैधता और धारा 81 के सही दायरे को लेकर एक ऐतिहासिक मील का पत्थर बन सकता है।
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