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Mahoba News: महोबा में दिव्यांगजन बना रहे गोबर-मिट्टी से ऑर्गेनिक दीये, आत्मनिर्भर भारत की मिसाल
Mahoba News: महोबा में दिव्यांग युवक-युवतियां गोबर और मिट्टी से ऑर्गेनिक दीये बनाकर आत्मनिर्भर बन रहे हैं। यह पहल बुंदेलखंड सोसायटी फॉर रूरल डेवलपमेंट के माध्यम से दिव्यांगों को रोजगार और आत्मनिर्भरता का अवसर दे रही है।
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Mahoba News: महोबा में दिव्यांगजन प्रधानमंत्री के आत्मनिर्भर भारत के सपने से प्रेरित होकर गाय के गोबर और मिट्टी से ऑर्गेनिक दीये बना रहे हैं। यह पहल बुंदेलखंड सोसायटी फॉर रूरल डेवलपमेंट के माध्यम से की जा रही है, जिसमें दिव्यांग युवक-युवतियां समूह बनाकर दीयों और ऑर्गेनिक धूपबत्तियों के निर्माण में जुटे हैं। इन दीयों को बाजार में बेचकर दिव्यांगजन अपनी दिवाली को रोशन करने के साथ-साथ न केवल आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर बन रहे हैं, बल्कि लोगों को आत्मनिर्भर बनने की सीख भी दे रहे हैं।
आपको बता दें कि अपनी शारीरिक कमजोरी को मात देकर ये दिव्यांग अपनी दीपावली को रोशन करने में दिन-रात जुटे हैं। दीये बनाने की प्रक्रिया कई चरणों में होती है। पहले गोबर को सुखाकर उसमें लकड़ी का बुरादा मिलाया जाता है। फिर प्रशिक्षण प्राप्त दिव्यांग सांचों के माध्यम से न केवल दीये, बल्कि लक्ष्मी और गणेश की मूर्तियां भी तैयार करते हैं। दीयों में जेल डालकर इन्हें जलाने योग्य बनाया जाता है और रंगों व आकृतियों से सजाया जाता है। तैयार दीयों को पैकिंग के बाद बाजार में 20 से 25 रुपये की कीमत पर बेचा जाएगा।सस्था प्रबंधक आकाश राय ने बताया कि संस्था मानसिक और शारीरिक रूप से दिव्यांगों को प्रशिक्षण दे रही है। उनके अनुसार लगभग 30 दिव्यांग प्रशिक्षण ले रहे हैं और दीपावली के मौके पर वही अपने बनाए हुए दीयों की बिक्री करेंगे। यह पहल दिव्यांगों के लिए रोजगार और आत्मनिर्भरता का एक मजबूत माध्यम साबित हो रही है।
महोबा शहर के बंधन वार्ड में दिव्यांग युवक-युवतियां सक्रिय रूप से दीये बना रहे हैं। युवा मनोज, दिनेश और टीना ने बताया कि दीयों की बिक्री से होने वाली आय को सीधे निर्माण करने वाले दिव्यांगों में बांटा जाएगा। इस दौरान उन्हें भारतीय संस्कृति के अनुसार दीपावली मनाने और चाइनीज झालरों से परहेज करने के लिए भी प्रेरित किया जा रहा है।इस पहल से न केवल दिव्यांगजन आत्मनिर्भर बनेंगे, बल्कि पर्यावरण को भी कोई नुकसान नहीं पहुंचेगा। महोबा में यह कदम न केवल दिव्यांगों के सशक्तिकरण का प्रतीक है, बल्कि आत्मनिर्भर भारत की दिशा में एक सकारात्मक उदाहरण भी पेश करता है।
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