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Mathura News: हाथी वध लीला: भगवान कृष्ण-बलराम की वीरता की याद
Mathura News: मथुरा में कृष्ण-बलराम की हाथी वध लीला का आयोजन, बुराई पर अच्छाई की जीत का संदेश दिया गया
हाथी वध लीला: भगवान कृष्ण-बलराम की वीरता की याद (photo: social media )
Mathura News: मथुरा कंस को यह भविष्यवाणी सुनने को मिली थी कि उसका वध उसकी बहन देवकी के आठवें पुत्र के हाथों होगा। यही पुत्र श्रीकृष्ण थे। इस भविष्यवाणी से डरकर कंस हमेशा कृष्ण को मारने के अवसर ढूंढता रहा।
एक दिन उसने अपनी रक्षा के लिए एक योजना बनाई। उसने मथुरा में एक बड़ा कुश्ती दंगल आयोजित किया और उसमें कृष्ण व बलराम को आमंत्रित किया। कंस चाहता था कि दंगल में आने से पहले ही कृष्ण-बलराम को रास्ते में मार दिया जाए।
मथुरा शहर के एक बड़े द्वार पर उसने अपने सबसे भयंकर और शक्तिशाली हाथी कुवलयापीड को खड़ा कर दिया। कुवलयापीड युद्ध में प्रशिक्षित था और बहुत हिंसक स्वभाव का माना जाता था। उसकी शक्ति का वर्णन करते हुए कहा जाता था कि वह 10,000 हाथियों के बराबर बल रखता था। कंस को पूरा विश्वास था कि यह हाथी किसी को भी कुचल कर मार सकता है।
हाथी ने क्रूरता से हमला कर दिया
जब श्रीकृष्ण और बलराम कुश्ती मैदान में प्रवेश करने के लिए उस द्वार पर पहुँचे, तब हाथी ने उन पर क्रूरता से हमला कर दिया।
लेकिन कृष्ण ने बिना डरे उसकी सूंड को एक ही हाथ से पकड़ लिया। अपनी अद्भुत शक्ति का प्रदर्शन करते हुए उन्होंने कुवलयापीड को जोर से खींचकर जमीन पर पटक दिया। हाथी के गिरने के बाद उसके महावतों ने कृष्ण को रोकने की कोशिश की, परन्तु कृष्ण ने हाथी के अपने ही दाँतों से उन सबका अंत कर दिया। यह घटना भगवान की वीरता और असुर शक्तियों पर विजय का बड़ा उदाहरण मानी जाती है।
कृष्ण-बलराम के इस साहस को देख लोगों में उत्साह छा गया और वे उनकी जय-जयकार करने लगे। कंस की यह चाल पूरी तरह असफल हो गई और कृष्ण व बलराम कुश्ती दंगल की ओर आगे बढ़ गए।
आज भी इस घटना की स्मृति में ‘हाथी वध लीला’ का आयोजन
मथुरा में आज भी इस घटना की स्मृति में ‘हाथी वध लीला’ का आयोजन किया जाता है। विश्राम घाट से शुरू होने वाली शोभायात्रा द्वारकाधीश मंदिर, चौक बाजार, घीया मंडी और अन्य प्रमुख स्थानों से निकल हुई जन्मभूमि क्षेत्र तक पहुँचती है। यहां बाल रूप में बने बलराम धार्मिक भारद्वाज कृष्ण रूप में बने बीगूं द्वारा कृष्ण-बलराम हाथी वध लीला का मंचन किया गया श्रद्धालु द्वारा रास्ते-भर आरती उतारते हैं, जयकारे लगाते हैं और पूरी श्रद्धा व आनंद के साथ इस लीला का आनंद उठाते हैं
इस परंपरा के माध्यम से आज भी भगवान की शक्तिमय लीला को याद किया जाता है और बुराई पर अच्छाई की जीत का संदेश दिया जाता है।
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