TRENDING TAGS :
Maha Kumbh Deaths Mega Scam: महाकुंभ में मौतों का महास्कैम! 37 नहीं, दर्जनों लाशें गायब... अखिलेश का बड़ा हमला- 'भाजपा ने खरीद ली खामोशी'
Maha Kumbh Deaths Mega Scam: किसी ने सोचा भी नहीं था कि आस्था का ये उत्सव मातम में बदल जाएगा। स्नान घाटों पर भगदड़ मच गई, लोग एक-दूसरे पर गिरते चले गए और कुछ ही घंटों में संगम की मिट्टी लाशों से पट गई।
Maha Kumbh deaths Mega scam (Social Media image)
Maha Kumbh Deaths Mega Scam: प्रयागराज की वह सुबह हमेशा के लिए इतिहास के काले पन्नों में दर्ज हो गई। 29 जनवरी को महाकुंभ का वह दिन था, जब मौनी अमावस्या के अमृत स्नान पर आस्था का सैलाब उमड़ पड़ा था। लाखों श्रद्धालु संगम में डुबकी लगाने आए थे, लेकिन किसी ने सोचा भी नहीं था कि आस्था का ये उत्सव मातम में बदल जाएगा। स्नान घाटों पर भगदड़ मच गई, लोग एक-दूसरे पर गिरते चले गए और कुछ ही घंटों में संगम की मिट्टी लाशों से पट गई।
प्रशासन ने दावा किया कि हादसे में सिर्फ 37 लोगों की मौत हुई, लेकिन हादसे के बाद जो तस्वीरें सामने आईं, जो चीखें सुनी गईं, उन्होंने इस आंकड़े पर कई सवाल खड़े कर दिए। अब वही सवाल न्यायिक जांच आयोग के दरवाजे पर खड़े हैं, और राज्य सरकार बार-बार आयोग का कार्यकाल बढ़ाकर असलियत को छुपाने की कोशिश कर रही है। क्या वाकई सरकार ने मृतकों की संख्या को कम बताकर अपनी जिम्मेदारी से बचने की कोशिश की? क्या श्रद्धालुओं के परिवारों को चुप कराने के लिए गुपचुप तरीके से पैसे बांटे गए? और अगर ऐसा हुआ तो किसके आदेश पर?
तीसरी बार बढ़ाया जा रहा आयोग का कार्यकाल
जांच के लिए बने न्यायिक आयोग को तीसरी बार समय बढ़ाया जा रहा है। आयोग का नेतृत्व इलाहाबाद हाईकोर्ट के रिटायर्ड जज जस्टिस हर्ष कुमार कर रहे हैं। उनके साथ पूर्व डीजी वीके गुप्ता और रिटायर्ड IAS अधिकारी डीके सिंह भी सदस्य हैं। आयोग ने प्रयागराज में घटनास्थलों का निरीक्षण किया, करीब 200 लोगों के बयान दर्ज किए, जिनमें पीड़ित परिवार, पुलिस अधिकारी, प्रत्यक्षदर्शी, डॉक्टर, पत्रकार सब शामिल हैं।
फिर भी, कई मृतकों के परिजन अभी तक बयान देने नहीं पहुंच पाए हैं, खासतौर पर वे जो दूसरे राज्यों से आए थे। आयोग ने उन्हें बयान दर्ज कराने के लिए बुलाया है ताकि मृतकों की सही संख्या सामने लाई जा सके। दिलचस्प बात ये है कि कुछ पीड़ित परिवारों ने निजी बातचीत में न्यूज एजेंसी को नकद मुआवजा मिलने की बात बताई है। अब आयोग उन दावों की भी गहन जांच करेगा कि ये पैसा किसने दिया और क्यों?
क्या सच छुपा रही है सरकार? विपक्ष ने खोला मोर्चा
सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव ने सीधे तौर पर भाजपा सरकार पर हमला बोला है। उन्होंने कहा कि सरकार लगातार महाकुंभ हादसे में झूठ बोल रही है। सरकार ने जानबूझकर मृतकों की संख्या कम बताई ताकि मुआवजा देने से बचा जा सके। लेकिन जब एक प्रतिष्ठित न्यूज एजेंसी ने पीड़ित परिवारों से बातचीत कर बड़ा खुलासा कर दिया, तब भाजपा सरकार के चेहरे से नकाब उतर गया।
अखिलेश का आरोप है कि सरकार के अधिकारी पीड़ित परिवारों के घर-घर जाकर नकद पैसा दे रहे थे। सवाल ये है कि अगर भगदड़ में कोई मरा ही नहीं तो किस आधार पर पैसा दिया गया? और जिन लोगों ने मुआवजा नहीं लिया, उनका पैसा कहां गया? उन्होंने कहा कि यह सिर्फ हादसे का मामला नहीं, बल्कि पूरे सिस्टम पर सवाल है। उन्होंने कहा कि अगर सरकार कुंभ जैसे धार्मिक आयोजन में भी आंकड़ों से खिलवाड़ कर सकती है, तो जातीय जनगणना और वोटर लिस्ट जैसे संवेदनशील मामलों पर भला भरोसा कैसे किया जा सकता है?
हाईकोर्ट भी हुआ सख्त, जांच का दायरा बढ़ा
इस मामले में इलाहाबाद हाईकोर्ट भी सक्रिय हो गया है। फरवरी में एक जनहित याचिका पर सुनवाई के दौरान सरकार को जांच का दायरा बढ़ाने के निर्देश दिए गए। कोर्ट ने कहा कि केवल मृतकों की संख्या ही नहीं, बल्कि मेला प्रशासन और जिला प्रशासन के बीच समन्वय की भी जांच होनी चाहिए। हादसे की वजह क्या थी? क्या सुरक्षा के पर्याप्त इंतजाम थे या प्रशासन की लापरवाही ने दर्जनों घरों को उजाड़ दिया? यही वजह है कि आयोग का कार्यकाल एक महीने फिर तीन महीने बढ़ाया गया और अब तीसरी बार उसे और वक्त मिलने जा रहा है। लेकिन सवाल वही है—आखिर सच्चाई सामने आने से सरकार क्यों घबरा रही है?
राजनीति गरमाई, महंगाई पर भी साधा निशाना
अखिलेश यादव ने इस मौके पर सरकार पर महंगाई को लेकर भी हमला बोला। उन्होंने कहा कि भाजपा सरकार महंगाई रोकने में पूरी तरह नाकाम रही है। सोना एक लाख रुपये के पार जा चुका है, गरीब आदमी बेटी की शादी कैसे करेगा? बिजली के बिल बढ़ाए जा रहे हैं, लेकिन उत्पादन बढ़ नहीं रहा। छात्रों को फेल न करने का आदेश दिया जा रहा है ताकि वे सरकार के खिलाफ आवाज न उठाएं। अखिलेश ने कहा कि सरकार केवल मेले रोकने में लगी है ताकि गरीबों का रोजगार छिन जाए और स्वतंत्र संस्थाओं को नियंत्रित कर सके। महाकुंभ हादसे पर झूठ बोलने वाली सरकार पर किसी भी संवेदनशील आंकड़े में भरोसा नहीं किया जा सकता।
अब आगे क्या?
अब पूरा दारोमदार न्यायिक आयोग की रिपोर्ट पर है। अगर आयोग ने निष्पक्ष जांच की और सही आंकड़े सामने आ गए तो भाजपा सरकार के लिए बड़ा संकट खड़ा हो सकता है। लेकिन अगर आयोग भी दबाव में आकर वही ‘37 मौतों’ वाला सरकारी आंकड़ा दोहराता है तो यह देश के लोकतंत्र और न्याय व्यवस्था पर एक गंभीर सवाल होगा। प्रयागराज के लोग आज भी उस हादसे की चीखें याद करते हैं। हर मां-बाप जिसने अपने बेटे-बेटी को खोया, आज भी जवाब मांग रहा है। क्या न्यायिक आयोग उस दर्द को आवाज देगा या फिर ये जांच भी किसी फाइल में दबी रह जाएगी?सवाल बड़ा है... जवाब अभी बाकी है।
Start Quiz
This Quiz helps us to increase our knowledge