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हड़कंप मचा दिया था उत्तर कोरिया ने! आइए जाने मोबाइल फोन पर प्रतिबंध क्यों लगाया था?
Cellphone Banned in North Korea: क्या आप जानते हैं कि साल 2004 में उत्तर कोरियाई सरकार ने मोबाइल फोन के उपयोग पर पूर्ण प्रतिबंध लगा दिया। यह निर्णय वैश्विक स्तर पर चौंकाने वाला था, आइये विस्तार से समझते हैं ऐसा क्यों किया गया।
Cellphone Banned in North Korea
Cellphone Banned in North Korea: साल 2004 उत्तर कोरिया के लिए तकनीकी और राजनीतिक दृष्टिकोण से एक महत्वपूर्ण मोड़ लेकर आया। इसी वर्ष, उत्तर कोरियाई सरकार ने मोबाइल फोन के उपयोग पर पूर्ण प्रतिबंध लगा दिया। यह निर्णय वैश्विक स्तर पर चौंकाने वाला था, क्योंकि जहां दुनिया मोबाइल क्रांति की ओर तेजी से अग्रसर हो रही थी, वहीं उत्तर कोरिया ने तकनीकी स्वतंत्रता पर कठोर नियंत्रण और सेंसरशिप को प्राथमिकता दी।
उत्तर कोरिया, जिसे विश्व का सबसे रहस्यमय और सख्त नियंत्रित राष्ट्र माना जाता है, ने वर्ष 2004 में एक ऐसा कदम उठाया जिसने वैश्विक स्तर पर तकनीकी स्वतंत्रता की अवधारणा को चुनौती दी। यह कदम था – मोबाइल फोन के उपयोग पर पूर्ण प्रतिबंध। जब पूरी दुनिया मोबाइल क्रांति की ओर तेजी से बढ़ रही थी, उत्तर कोरिया ने तकनीकी प्रगति के इस माध्यम को खतरे के रूप में देखा और उसे प्रतिबंधित कर दिया। यह निर्णय उत्तर कोरियाई शासन की राजनीतिक सोच, सुरक्षा चिंताओं और सूचनात्मक स्वतंत्रता पर उसकी कठोर पकड़ को दर्शाता है।
प्रतिबंध की पृष्ठभूमि
2002 में उत्तर कोरिया ने Thuraya Satellite सिस्टम और एक मिस्र की कंपनी Orascom Telecom के साथ साझेदारी में मोबाइल सेवा की शुरुआत की थी। इसका उद्देश्य सीमित वर्ग के लिए मोबाइल सुविधा देना था, विशेषकर राजधानी प्योंगयांग में। यह एक सीमित लेकिन प्रतीकात्मक कदम था कि उत्तर कोरिया भी तकनीकी प्रगति की दिशा में आगे बढ़ रहा है।
हालांकि, 2004 में एक ट्रेन विस्फोट ने इस पूरी प्रणाली को उलट दिया। यह विस्फोट र्योंचॉन (Ryongchon) नामक स्थान पर हुआ और इसमें सैकड़ों लोग मारे गए। इस घटना के पीछे मोबाइल फोन से ट्रिगर किए गए विस्फोट की आशंका जताई गई। यहीं से उत्तर कोरियाई शासन को यह विश्वास हो गया कि मोबाइल फोन राजनीतिक अस्थिरता, विद्रोह और विदेशी संपर्क के माध्यम बन सकते हैं।
प्रतिबंध की घोषणा
सरकारी आदेश के तहत:
- सभी मोबाइल सेवाएं बंद कर दी गईं।
- मौजूदा मोबाइल फोन जब्त कर लिए गए।
- नए मोबाइल फोन के आयात और उपयोग पर कठोर निषेध लागू किया गया।
- किसी भी व्यक्ति द्वारा मोबाइल रखने या उपयोग करने पर सख्त सजा का प्रावधान रखा गया, जिसमें जेल और श्रम शिविरों की सजा शामिल थी।
प्रतिबंध का उद्देश्य
उत्तर कोरियाई शासन का मुख्य उद्देश्य था:
सूचना नियंत्रण: नागरिकों को बाहरी दुनिया से संपर्क न करने देना।
विदेशी प्रभाव को रोकना: विशेष रूप से दक्षिण कोरिया, जापान और चीन से आने वाली सूचनाओं को रोकना।
राजनीतिक स्थिरता बनाए रखना: तानाशाही शासन को किसी भी तरह की चुनौती से बचाना।
जासूसी और संचार माध्यमों पर रोक लगाना: जिससे सरकारी गतिविधियों पर निगरानी करना कठिन हो जाए।
प्रभाव
1. नागरिकों पर असर
- नागरिक पूरी तरह से सरकारी सूचना तंत्र पर निर्भर हो गए।
- बाहरी दुनिया से संवाद लगभग असंभव हो गया।
- तकनीकी प्रगति से कोरियाई समाज और अधिक पीछे हो गया।
2. आर्थिक गतिविधियों पर असर
संचार के अभाव में व्यापार, परिवहन, आपूर्ति श्रृंखला और रोजमर्रा के काम बाधित हुए।
मोबाइल फोन के अभाव ने विदेशी निवेशकों की रुचि को भी कमजोर किया।
3. अंतरराष्ट्रीय प्रतिक्रिया
मानवाधिकार संगठनों ने इस निर्णय की कड़ी आलोचना की।
इसे अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और नागरिक अधिकारों के विरुद्ध बताया गया।
क्या प्रतिबंध स्थायी था?
नहीं। यह प्रतिबंध लगभग चार वर्षों तक चला। फिर 2008 में उत्तर कोरिया ने Orascom Telecom के साथ दोबारा समझौता करके "Koryolink" नाम से मोबाइल नेटवर्क सेवा शुरू की। यह सेवा सीमित क्षेत्रों तक ही सीमित रही, और इसमें विदेशी कॉल्स, इंटरनेट या अंतरराष्ट्रीय सिम का उपयोग सख्ती से प्रतिबंधित था।
आज भी, उत्तर कोरिया में मोबाइल सेवा:
- केवल स्थानीय नेटवर्क के लिए होती है।
- सरकार द्वारा पूर्ण निगरानी में होती है।
- आम नागरिक किसी भी विदेशी संचार या वेबसाइट तक नहीं पहुँच सकते।
पृष्ठभूमि: मोबाइल सेवा की शुरुआत
उत्तर कोरिया में मोबाइल सेवा की शुरुआत वर्ष 2002 में हुई थी जब मिस्र की टेलीकॉम कंपनी Orascom Telecom को वहां एक सीमित मोबाइल नेटवर्क स्थापित करने की अनुमति दी गई। यह सेवा मुख्यतः राजधानी प्योंगयांग और कुछ चुनिंदा क्षेत्रों में शुरू की गई थी। हालांकि, सेवा की पहुंच आम जनता तक नहीं थी। केवल सरकारी अधिकारी, सेना के उच्च पदाधिकारी, और सत्ता से जुड़े चुनिंदा लोग ही इसका उपयोग कर सकते थे।
र्योंचॉन विस्फोट और प्रतिबंध की वजह
उत्तर कोरिया द्वारा मोबाइल फोन पर प्रतिबंध लगाए जाने के पीछे मुख्य कारण माना जाता है. 22 अप्रैल 2004 को र्योंचॉन रेलवे स्टेशन पर हुआ एक भीषण विस्फोट, जिसमें अनुमानतः 160 से अधिक लोग मारे गए और हजारों घायल हुए। हालांकि इस विस्फोट के पीछे की असली वजह कभी स्पष्ट नहीं हुई, लेकिन कहा जाता है कि इसे मोबाइल फोन के जरिए रिमोट से ट्रिगर किया गया था। शासन ने इसे एक गंभीर सुरक्षा खतरे के रूप में देखा और जल्द ही मोबाइल नेटवर्क को पूरी तरह बंद कर दिया गया।
इस घटना ने उत्तर कोरियाई नेतृत्व को यह सोचने पर मजबूर कर दिया कि मोबाइल संचार न केवल आतंरिक असंतोष फैलाने का माध्यम बन सकता है, बल्कि विदेशी जासूसी या आतंकवाद का भी जरिया हो सकता है। इसी आशंका के आधार पर सरकार ने देश में मौजूद सभी मोबाइल फोन जब्त कर लिए और टावरों को निष्क्रिय कर दिया।
सरकार की कठोर नीतियाँ
उत्तर कोरिया की सरकार ने न केवल सेवा बंद की बल्कि उस पर कानूनी प्रतिबंध भी लगाए। जो व्यक्ति प्रतिबंध के बावजूद मोबाइल फोन का उपयोग करता पाया गया, उसे कठोर दंड दिए गए, जिनमें जबरन श्रम, नजरबंदी या जेल शामिल थे। साथ ही, विदेशों से आने वाले पर्यटकों और राजनयिकों को भी मोबाइल फोन उत्तर कोरिया में लाने की अनुमति नहीं दी गई।
यह प्रतिबंध केवल तकनीकी नियंत्रण नहीं था, बल्कि यह जनता को दुनिया से कटे रहने, विचारों और सूचनाओं को नियंत्रित करने का एक राजनीतिक साधन बन गया।
प्रतिबंध के सामाजिक और आर्थिक प्रभाव
इस प्रतिबंध का सीधा असर उत्तर कोरियाई समाज पर पड़ा। लोग पूरी तरह से सरकार नियंत्रित मीडिया जैसे कि रेडियो, सरकारी अखबार और नियंत्रित टेलीविजन चैनलों पर निर्भर हो गए। किसी भी बाहरी सूचना या विचार तक उनकी पहुंच लगभग असंभव हो गई। आर्थिक दृष्टि से, व्यापार और निजी उद्यमों को भारी नुकसान हुआ क्योंकि वे संचार साधनों से वंचित हो गए थे। संचार की कमी ने व्यापारिक लेन-देन, समन्वय और विकास को जड़ से रोक दिया।
पुनः मोबाइल सेवा की शुरुआत
लगभग चार वर्षों के प्रतिबंध के बाद, वर्ष 2008 में उत्तर कोरिया ने मोबाइल सेवाएं दोबारा शुरू कीं, लेकिन बहुत सीमित रूप में। मिस्र की Orascom के साथ मिलकर “Koryolink” सेवा की शुरुआत की गई। हालांकि, यह सेवा केवल स्थानीय कॉल के लिए थी। विदेशों में कॉल करना, एसएमएस भेजना, या इंटरनेट का उपयोग करना पूरी तरह से प्रतिबंधित था।
केवल वे लोग जिन पर सरकार को पूर्ण विश्वास था, जैसे व्यापारी, अधिकारी या पार्टी के सदस्य, उन्हीं को मोबाइल फोन रखने की अनुमति दी गई। इस प्रणाली में सरकार द्वारा सभी कॉल, संदेश और उपयोग की निगरानी की जाती थी
उत्तर कोरिया द्वारा 2004 में लगाया गया मोबाइल फोन प्रतिबंध केवल तकनीकी नियंत्रण का मामला नहीं था, बल्कि यह शासन की उस गहराई से उपजी सोच थी जिसमें सूचना, विचार और संचार को नियंत्रण में रखना राज्य के अस्तित्व के लिए आवश्यक माना गया। जहां दुनिया मोबाइल और इंटरनेट के ज़रिए ज्ञान और सहयोग की दिशा में बढ़ रही थी, उत्तर कोरिया ने एक ऐसी दीवार खड़ी कर दी जिसमें तकनीक को खतरा माना गया।
यह घटना आज भी एक मिसाल के रूप में देखी जाती है कि कैसे तकनीक को स्वतंत्रता और सुरक्षा दोनों के रूप में उपयोग किया जा सकता है — यह इस पर निर्भर करता है कि सत्ता में बैठे लोग उसे कैसे परिभाषित करते हैं। उत्तर कोरिया ने 2004 में उसे खतरे के रूप में देखा, और अपनी जनता को आधुनिक संचार से वंचित कर दिया। यह प्रतिबंध एक स्पष्ट संकेत था कि उत्तर कोरियाई शासन के लिए सत्ता की रक्षा, स्वतंत्रता से अधिक महत्वपूर्ण है।
2004 में उत्तर कोरिया द्वारा मोबाइल फोन पर लगाया गया प्रतिबंध, केवल एक तकनीकी निर्णय नहीं था, बल्कि यह देश की राजनीतिक संरचना, भय और नियंत्रण की मानसिकता का प्रतीक था। जहां दुनिया तकनीकी स्वतंत्रता को प्रोत्साहित कर रही थी, वहीं उत्तर कोरिया इसे खतरे के रूप में देख रहा था।
यह घटना बताती है कि किसी भी राष्ट्र के लिए तकनीक केवल विकास का माध्यम नहीं होती, बल्कि वह शासन के लिए चुनौती या नियंत्रण का उपकरण भी बन सकती है—यह निर्भर करता है उस देश की राजनीति और विचारधारा पर।
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