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बांग्लादेश से हमला कराएगा चीन? लालमोनिरहाट एयरबेस से भारत के खिलाफ रच रहा नई साजिश, इस बार निशाने पर है इंडिया की 'लाइफलाइन'!
Lalmonirhat Airbase Bangladesh: हाल में सामने आई सैटेलाइट तस्वीरें और खुफिया रिपोर्ट इस बात की पुष्टि करती हैं कि चीन बांग्लादेश के लालमोनिरहाट एयरबेस को फिर से एक्टिव करने की योजना बना रहा है एक ऐसा एयरफील्ड जो भारत की सीमा से मात्र 12 किलोमीटर की दूरी पर है
Lalmonirhat Airbase Bangladesh: कल्पना कीजिए, सुबह-सुबह न्यूज़ चैनल पर ब्रेकिंग आती है “भारत के नॉर्थ ईस्ट में सैटेलाइट से देखी गई संदिग्ध चीनी मूवमेंट!” देश स्तब्ध रह जाता है. सबकी निगाहें उत्तर-पूर्व की ओर घूम जाती हैं, जहां बर्फीली पहाड़ियों के बीच से एक पतली-सी पट्टी पूरे नॉर्थ ईस्ट को शेष भारत से जोड़ती है सिलिगुड़ी कॉरिडोर, जिसे रणनीतिक रूप से ‘चिकन नेक’ कहा जाता है. यही भारत की वह ‘लाइफलाइन’ है, जिसे अगर कोई काट दे, तो आठ राज्यों से संपर्क टूट सकता है. और अब, चीन इस ‘गर्दन’ पर चाकू रखने की तैयारी कर रहा है बांग्लादेश की मदद से! हाल में सामने आई सैटेलाइट तस्वीरें और खुफिया रिपोर्ट इस बात की पुष्टि करती हैं कि चीन बांग्लादेश के लालमोनिरहाट एयरबेस को फिर से एक्टिव करने की योजना बना रहा है एक ऐसा एयरफील्ड जो भारत की सीमा से मात्र 12 किलोमीटर की दूरी पर है और सिलिगुड़ी कॉरिडोर से लगभग 135 किमी दूर. सवाल उठता है क्या चीन वाकई भारत पर हमला कराने के लिए बांग्लादेश की धरती का इस्तेमाल करना चाहता है? और अगर हां, तो क्या भारत समय रहते इस खतरनाक साजिश को नाकाम कर पाएगा?
लालमोनिरहाट: चीन का नया गुप्त मोर्चा?
लालमोनिरहाट एयरबेस, जो दशकों से निष्क्रिय पड़ा था, आज अचानक चीन की दिलचस्पी का केंद्र कैसे बन गया? यह वही एयरफील्ड है जिसे ब्रिटिश सेना ने 1931 में दूसरे विश्व युद्ध के दौरान साउथ ईस्ट एशिया में रणनीतिक हवाई अड्डे के रूप में तैयार किया था. आज, लगभग एक सदी बाद, चीन इस वीरान रनवे को फिर से ‘जिंदा’ करने में बांग्लादेश की मदद कर रहा है. सूत्रों के अनुसार, हाल ही में चीनी अधिकारियों के एक प्रतिनिधिमंडल ने इस एयरबेस का निरीक्षण किया है. इन तस्वीरों में चीनी तकनीकी विशेषज्ञों को बांग्लादेशी अधिकारियों के साथ रनवे पर चलते हुए देखा गया. माना जा रहा है कि इस बेस को पहले असैन्य उड़ानों के लिए शुरू किया जाएगा, लेकिन विशेषज्ञों का मानना है कि यह 'सिविल कवर' चीन की उस पुरानी रणनीति का हिस्सा है जिसके तहत वह पहले शांतिपूर्ण इन्फ्रास्ट्रक्चर बनाता है और फिर उन्हें सैन्य उपयोग में ले आता है जैसे उसने श्रीलंका के हम्बनटोटा पोर्ट और पाकिस्तान के ग्वादर पोर्ट के साथ किया.
सिर्फ एयरबेस नहीं, निगरानी का केंद्र बनेगा लालमोनिरहाट?
रणनीतिक मामलों के जानकारों का कहना है कि लालमोनिरहाट केवल एक हवाई अड्डा नहीं रहेगा. यह एक निगरानी केंद्र के रूप में विकसित किया जा सकता है जिससे भारत की सेना की गतिविधियों पर नजर रखी जा सके. भारत की पूर्वोत्तर सीमाओं की जो भौगोलिक संवेदनशीलता है, वहां से चीन को खुफिया जानकारी जुटाना आसान हो सकता है. चीन को इस समय जो सबसे बड़ा सामरिक लाभ दिखता है, वह यह है कि यह बेस इतना करीब है कि वहां से भारत के नॉर्थ ईस्ट में प्रवेश करने वाले हर ट्रक, हर सैनिक मूवमेंट, हर ट्रेन की रफ्तार को ट्रैक किया जा सकता है. यहां तक कि मोबाइल नेटवर्क इंटरसेप्शन और ड्रोन के माध्यम से जासूसी करना भी संभव हो जाएगा.
भारत की ‘चिकन नेक’ पर चीन की सीधी नजर
लालमोनिरहाट से मात्र 135 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है भारत का वह जीवनरेखा सिलिगुड़ी कॉरिडोर. यह मात्र 22 किलोमीटर चौड़ी संकरी पट्टी भारत के नॉर्थ ईस्ट को बाकी देश से जोड़ती है. यदि युद्ध या संघर्ष की स्थिति बनती है और यह कॉरिडोर कट जाता है, तो भारत के 8 राज्य – असम, अरुणाचल, त्रिपुरा, मिजोरम, मणिपुर, नागालैंड, मेघालय और सिक्किम मुख्य भूमि से कट सकते हैं. भारत इस कॉरिडोर को लेकर पहले ही संवेदनशील है. 2017 में डोकलाम विवाद के दौरान भी चीन की यह कोशिश रही थी कि वह इस इलाके से भारत को अलग-थलग कर दे. लेकिन अब, चीन ने नया रास्ता चुना है — बांग्लादेश की सीमा के इतने करीब एक रणनीतिक हवाई ठिकाना.
बांग्लादेश की राजनीतिक अस्थिरता चीन के लिए अवसर
बांग्लादेश में हाल के महीनों में राजनीतिक अस्थिरता बढ़ी है. अंतरिम सरकार और विपक्ष के बीच गहमागहमी ने देश को अस्थिर कर रखा है. इस बीच चीन ने ‘मददगार’ का मुखौटा पहनकर ढाका को ‘आर्थिक व कूटनीतिक ऑफर’ देना शुरू किया है. मोहम्मद यूनुस जैसे अंतरिम नेताओं के चीन को दिए गए बयान “भारत के नॉर्थ ईस्ट राज्यों का कोई समुद्री संपर्क नहीं है...” यह संकेत देते हैं कि चीन को भीतर से एक संकेत मिल रहा है: “आइए, हम मिलकर भारत को घेरते हैं!” चीन के इस ‘स्ट्रैटेजिक दरवाजे’ को खोलने में बांग्लादेश के कुछ वर्ग भी अनजाने में मदद कर रहे हैं. कर्ज में डूबे ढाका को चीन इंफ्रास्ट्रक्चर, पोर्ट्स, और अब एयरबेस जैसे प्रोजेक्ट्स के माध्यम से अपनी ओर खींच रहा है.
क्या भारत तैयार है?
यह सवाल अब राष्ट्रीय सुरक्षा एजेंसियों के सामने है. क्या भारत ने समय रहते लालमोनिरहाट के इस संभावित खतरे को पहचान लिया है? क्या डोकलाम के अनुभव के बाद भारतीय खुफिया एजेंसियां और सेना इस तरह की गतिविधियों को रोकने के लिए तैयार हैं? भारत के कूटनीतिक हलकों में हलचल तेज है. NSA अजित डोभाल की अगुवाई में उच्चस्तरीय बैठकों का दौर जारी है. RAW, IB और मिलिट्री इंटेलिजेंस को बांग्लादेश की सीमा के आसपास जमीनी रिपोर्ट तैयार करने के निर्देश दिए गए हैं. साथ ही, भारत ने बांग्लादेश सरकार से इस मुद्दे पर औपचारिक चर्चा की योजना बनाई है.
चीन की ‘तीन-स्तरीय घेराबंदी’ रणनीति
एक बड़े रक्षा विशेषज्ञ के मुताबिक चीन भारत को तीन स्तरों पर घेरने की कोशिश कर रहा है — पश्चिम से पाकिस्तान, उत्तर से तिब्बत व अरुणाचल सीमा, और अब पूर्व से बांग्लादेश. इसे रणनीतिक भाषा में ‘थ्री-प्रॉन्ग एनसर्कलमेंट’ कहा जाता है. इस पैटर्न को अगर भारत समय रहते नहीं तोड़ता, तो आने वाले वर्षों में चीन भारत को सिर्फ युद्धभूमि पर नहीं, बल्कि रणनीतिक मोर्चों पर भी मात देने की स्थिति में आ सकता है.
यह सिर्फ एयरबेस नहीं, भारत की आत्मा पर हमला है
लालमोनिरहाट एयरबेस पर चीन की दिलचस्पी केवल रनवे की कहानी नहीं है. यह भारत की रणनीतिक आत्मा पर हमला है — एक चुपचाप फैलती साजिश, जो अगर अब नहीं रोकी गई तो कल बहुत देर हो सकती है. भारत को सिर्फ बॉर्डर पर ही नहीं, बांग्लादेश के भीतर भी आंखें खोलनी होंगी. क्योंकि अगला संघर्ष बंदूक से पहले दिमाग और चालों का होगा और चीन उस खेल का मास्टर है.
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