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चीन ने कर दिया जंग का ऐलान, ट्रेड वॉर ने लिया खतरनाक मोड़, ट्रंप को ड्रैगन ने दी सीधी चुनौती
चीन ने अमेरिका पर ट्रेड वार की घोषणा कर दी है और अमेरिकी जहाजों पर अतिरिक्त पोर्ट फीस लगाने का ऐलान किया है। यह कदम अमेरिका के शुल्क के जवाब में उठाया गया है, जिससे वैश्विक शिपिंग और अर्थव्यवस्था पर बड़ा असर पड़ने की आशंका है।
China declares trade war: दुनिया की दो सबसे बड़ी आर्थिक शक्तियाँ चीन और अमेरिका अब ट्रेड वॉर (व्यापार युद्ध) को एक नए और खतरनाक मोड़ पर ले आई हैं। चीन ने अमेरिका को सीधे उसी की भाषा में जवाब देते हुए, अब उसके सभी जहाजों पर अतिरिक्त पोर्ट फीस लगाने की बड़ी घोषणा कर दी है। यह फैसला सीधा पलटवार है, क्योंकि अमेरिका ने भी चीनी जहाजों पर इसी तरह का शुल्क लगाने का ऐलान किया था। चीन के परिवहन मंत्रालय ने शुक्रवार को यह घोषणा करते हुए कहा कि अमेरिकी फर्मों और व्यक्तियों के स्वामित्व या संचालन वाले जहाज जितनी बार चीनी बंदरगाहों पर आएँगे, उन्हें यह भारी पोर्ट फीस देनी होगी। इतना ही नहीं, यह फीस अमेरिका में बने या अमेरिकी झंडा लगे सभी जहाजों पर भी लागू होगी। यह तल्खी भरा फैसला अगले हफ्ते मंगलवार, 14 अक्टूबर से लागू हो जाएगा, जिससे वैश्विक शिपिंग उद्योग में बड़ी हलचल मच गई है।
आमने-सामने की जंग: क्यों लगा यह टैक्स?
समाचार एजेंसी रॉयटर्स के अनुसार, चीनी परिवहन मंत्रालय ने साफ किया है कि यह कदम इसलिए उठाया गया है क्योंकि अमेरिका ने भी ठीक ऐसा ही एक फैसला लिया है। अमेरिका का पोर्ट फीस शुल्क भी 14 अक्टूबर से ही लागू हो रहा है। इसके तहत चीन में बने जहाजों, या चीनी संस्थाओं के स्वामित्व या उनकी तरफ से ऑपरेट किए जाने वाले जहाजों को अमेरिका में अपने पहले बंदरगाह पर यह फीस देनी होगी।
चीन को क्यों रोक रहा अमेरिका?
अमेरिका यह फैसला घरेलू जहाज निर्माण उद्योग को पुनर्जीवित करने और चीन की नौसैनिक और वाणिज्यिक शिपिंग शक्ति को कम करने के लिए उठा रहा है। पिछले दो दशकों में, चीन ने खुद को जहाज निर्माण की दुनिया में नंबर 1 बनाया है, जिसके सबसे बड़े शिपयार्ड अब कमर्शियल और मिलिट्री दोनों तरह के प्रोजेक्ट्स संभालते हैं।
चीन पर भारी पड़ेगा अमेरिकी शुल्क
विश्लेषकों का मानना है कि अमेरिका द्वारा चीनी जहाजों पर लगाया गया यह शुल्क चीन को ज्यादा नुकसान पहुँचा सकता है। चीनी फर्मों के स्वामित्व या संचालन वाले जहाज जब भी अमेरिकी पोर्ट पर आएँगे, उन्हें हर बार 80 डॉलर प्रति टन की एक निश्चित फीस देनी होगी। विश्लेषकों का अनुमान है कि 10,000 से अधिक कंटेनर ले जाने वाले एक बड़े जहाज के लिए यह शुल्क $1 मिलियन (लगभग 8.3 करोड़ भारतीय रुपये) तक हो सकता है। यह शुल्क 2028 तक सालाना बढ़ता जाएगा, जिससे चीन के शिपिंग उद्योग पर भारी वित्तीय दबाव आएगा। सैन्य और उद्योग मामलों के विश्लेषकों के अनुसार, पिछले साल चीनी शिपयार्ड ने 1,000 से अधिक कमर्शियल जहाजों का निर्माण किया, जबकि अमेरिका ने 10 से भी कम जहाजों का निर्माण किया। यह अंतर साफ दिखाता है कि इस वार-पलटवार की लड़ाई में चीन को नुकसान ज्यादा होने की आशंका है।
चीन का पलटवार: अमेरिकी जहाजों पर फीस बढ़ती जाएगी
चीन के परिवहन मंत्रालय ने भी अमेरिकी जहाजों पर शुल्क लगाकर जवाबी कार्रवाई की है। यह शुल्क भी समय के साथ लगातार बढ़ता जाएगा:
शुरुआत (14 अक्टूबर): चीनी बंदरगाहों पर ठहरने वाले अमेरिकी जहाजों के लिए प्रति टन 400 युआन ($56.13) की फीस लगेगी।
पहला उछाल (17 अप्रैल, 2026): पोर्ट फीस बढ़कर 640 युआन ($89.81) हो जाएगी।
दूसरा उछाल (17 अप्रैल, 2027): फीस बढ़कर 880 युआन हो जाएगी।
अंतिम चरण (17 अप्रैल, 2028): चीनी बंदरगाहों पर आने वाले अमेरिकी जहाजों को प्रति टन 1,120 युआन ($157.16) पोर्ट फीस देना होगा।
चीन की यह रणनीति साफ दर्शाती है कि वह इस व्यापारिक लड़ाई में पीछे हटने को तैयार नहीं है, बल्कि धीरे-धीरे शुल्क बढ़ाकर अमेरिका पर दबाव बनाने की कोशिश कर रहा है। यह ट्रेड वॉर, जो पहले केवल टैरिफ तक सीमित था, अब शिपिंग और लॉजिस्टिक्स के क्षेत्र में भी प्रवेश कर चुका है, जिससे आने वाले दिनों में वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला (Global Supply Chain) और व्यापारिक लागतों पर बड़ा असर पड़ना तय है। दोनों देशों के बीच यह आर्थिक खींचतान, वैश्विक अर्थव्यवस्था के लिए चिंता का नया सबब बन गई है।
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