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चीन के 'विक्ट्री डे' परेड में PM मोदी क्यों नहीं हुए शामिल, ट्रंप से हैं सीधा कनेक्शन
चीन की 'विक्ट्री डे' परेड में पीएम मोदी क्यों नहीं शामिल हुए? जानिए ट्रंप, जिनपिंग और वैश्विक राजनीति से जुड़ा पूरा मामला।
Modi skips Victory Day Parade: चीन में जापान पर दूसरे विश्व युद्ध की जीत की 80वीं वर्षगांठ के मौके पर एक भव्य 'विक्ट्री डे परेड' का आयोजन हुआ। इस परेड में चीन ने अपनी सैन्य ताकत का प्रदर्शन किया, लेकिन दुनिया का ध्यान सबसे ज्यादा राष्ट्रपति शी जिनपिंग, रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन और उत्तर कोरिया के शीर्ष नेता किम जोंग उन की जुगलबंदी ने खींचा। यह पहली बार था कि ये तीनों नेता सार्वजनिक रूप से एक साथ दिखाई दिए, जो अमेरिका और पश्चिमी देशों के लिए एक कड़ा संदेश था। लेकिन इस महत्वपूर्ण वैश्विक आयोजन में एक बड़ा सवाल खड़ा हो गया: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इस परेड में शामिल क्यों नहीं हुए?
जिनपिंग का 'ट्रंप' को कड़ा जवाब
परेड से पहले, अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने ट्रुथ सोशल पर एक पोस्ट में आरोप लगाया था कि शी जिनपिंग रूस और उत्तर कोरिया के साथ मिलकर अमेरिका के खिलाफ साजिश रच रहे हैं। ट्रंप का यह आरोप उनकी टैरिफ नीतियों और चीन के साथ व्यापार युद्ध के बीच आया था। इस पर शी जिनपिंग ने अपने भाषण में बिना ट्रंप का नाम लिए स्पष्ट कहा कि "चीन किसी की धौंस से डरता नहीं है।" ओपी जिंदल यूनिवर्सिटी में चाइना स्टडीज की प्रोफेसर श्रीपर्णा पाठक ने बताया कि अमेरिका इस परेड से थोड़ा सदमे में है, और इसीलिए ट्रंप ने यह पोस्ट किया।
पीएम मोदी की चीन यात्रा: रिश्ते में गर्माहट?
अमेरिका और भारत के बीच टैरिफ तनाव के बीच, भारत और चीन के संबंधों में पिछले पांच सालों में पहली बार थोड़ी गर्मजोशी देखने को मिली है। 2020 में गलवान घाटी में सैन्य झड़प के बाद दोनों देशों के रिश्ते खराब हो गए थे, लेकिन अब इसमें सुधार देखने को मिल रहा है। हाल ही में, भारत के विदेश मंत्री एस जयशंकर चीन की यात्रा पर गए थे, और सात साल बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी चीन का दौरा किया। शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) की बैठक में पीएम मोदी, शी जिनपिंग और व्लादिमीर पुतिन के बीच भी अच्छी केमिस्ट्री देखने को मिली, जिसे भारत-चीन संबंधों में एक महत्वपूर्ण मोड़ माना जा रहा है।
भारत का 'कूटनीतिक संतुलन': क्यों नहीं गए पीएम मोदी?
सवाल उठता है कि जब पीएम मोदी चीन में ही थे, तो वह इस परेड में शामिल क्यों नहीं हुए? इस पर विशेषज्ञों ने कई महत्वपूर्ण कारण बताए हैं:
1. जापान से दोस्ती: जवाहरलाल नेहरू यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर अरविंद येलेरी ने बताया कि यह परेड दूसरे विश्व युद्ध में जापानी आक्रामकता के खिलाफ थी। भारत जापान का अच्छा दोस्त है और वह जापान के खिलाफ कोई संदेश नहीं देना चाहता था। भारत ब्रिटिश साम्राज्यवाद के खिलाफ रहा है, न कि जापान के खिलाफ।
2. चीन का शक्ति प्रदर्शन: प्रोफेसर येलेरी ने यह भी कहा कि अगर भारत इस परेड में शामिल होता, तो यह चीन के सैन्य प्रदर्शन को समर्थन देने जैसा होता। उन्होंने कहा, "चीन और पीएलए जिस तरह अपना सैन्य वर्चस्व बढ़ा रहे हैं, उसमें पीएम मोदी के इस तरह की परेड में शामिल होने को चीन अपने हित में इस्तेमाल करता।"
3. लोकतांत्रिक मूल्यों का समर्थन: जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के प्रोफेसर अमिताभ सिंह ने एक और तर्क जोड़ा। उन्होंने कहा कि भारत उन शक्तियों के साथ खड़े होते नहीं दिखना चाहता है, जो उदारवादी और लोकतांत्रिक नहीं हैं। उन्होंने कहा कि परेड में शामिल होने वाले देशों की अगर सूची बनाई जाए, तो उनमें से अधिकतर उदारवादी और लोकतांत्रिक मूल्यों के मामलों में नीचे आते हैं। यह परेड शक्ति प्रदर्शन के साथ-साथ एक वैकल्पिक वैश्विक व्यवस्था (वर्ल्ड ऑर्डर) को भी दिखा रही थी।
क्या ट्रंप की नाराजगी का डर था?
क्या पीएम मोदी ने यह फैसला डोनाल्ड ट्रंप को और नाराज न करने के लिए किया? प्रोफेसर अमिताभ सिंह को ऐसा नहीं लगता। उन्होंने कहा कि यह फैसला ट्रंप की वजह से नहीं लिया गया। उन्होंने कहा, "पीएम मोदी पहले जापान गए, जो एक प्रतीकात्मक दौरा था। यह जमावड़ा उन देशों का था, जो चीनी वर्ल्ड ऑर्डर में शामिल होना चाहते हैं, इसलिए भारत इसमें शामिल नहीं हुआ।"
मोदी की चीन यात्रा सिर्फ एक द्विपक्षीय दौरा था, जो एक संदेश देने के लिए था। भारत जानता है कि उसके चीन के साथ इतने मतभेद हैं, जो सिर्फ एक दौरे से नहीं सुलझ सकते। यह घटना दिखाती है कि भारत अंतरराष्ट्रीय संबंधों में कूटनीतिक संतुलन बनाए रखने की कोशिश कर रहा है, और वह किसी भी गुट का हिस्सा बनने से बच रहा है।
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