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ईरान इजरायल जंग में भारत किसके साथ? इंडिया के 5 दोस्त कर रहे है गद्दारी, आखिर दोस्त क्यों बन गए दुश्मन?
Israel Iran war: भारत ने इस तनाव के बीच फिलहाल खुद को न्यूट्रल रखा है। विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने साफ कहा कि भारत दोनों देशों के बीच चल रहे विवाद में किसी का पक्ष नहीं लेगा। भारत का यह रुख फिलहाल तो संतुलित लगता है, लेकिन आगे चलकर ये फैसला कितना सही साबित होगा, यह आने वाले दिनों में तय होगा।
Israel Iran war: मिडिल ईस्ट की वो आग जो बरसों से सुलग रही थी, अब दहक उठी है। इस बार सिर्फ धमकियां नहीं, असली जंग का आगाज़ हो चुका है। ईरान और इजराइल के बीच टकराव अब उस मोड़ पर पहुंच गया है जहां से पीछे हटना मुश्किल दिख रहा है। शुक्रवार रात जो कुछ हुआ, उसने न सिर्फ मिडिल ईस्ट बल्कि पूरी दुनिया को झकझोर कर रख दिया। इसराइल ने ‘ऑपरेशन राइजिंग लॉयन’ के तहत ईरान पर इतने जबरदस्त हमले किए कि ईरान की जमीन तक कांप गई। बैलिस्टिक मिसाइलों और ड्रोन से की गई बमबारी में ईरान के कई बड़े सैन्य अधिकारी और वैज्ञानिक मारे गए। जवाब में ईरान ने भी अपनी पूरी ताकत झोंक दी। अब ताबड़तोड़ ड्रोन हमले हो रहे हैं, बैलिस्टिक मिसाइलें एक-दूसरे की सरहदें चीर रही हैं और आसमान में बारूद का गुबार छाया हुआ है। जो जंग कभी शब्दों और धमकियों में चलती थी, वो अब बारूद और खून में बदल चुकी है। और सबसे बड़ा सवाल यही है — क्या यह जंग मिडिल ईस्ट के नक्शे को बदल देगी? क्या पूरी दुनिया इस आग में झुलसेगी? और भारत जैसे देश जो दोनों से रिश्ते रखते हैं, वो अब कहां खड़े होंगे?
भारत का रुख: कूटनीति की कड़ी परीक्षा
भारत ने इस तनाव के बीच फिलहाल खुद को न्यूट्रल रखा है। विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने साफ कहा कि भारत दोनों देशों के बीच चल रहे विवाद में किसी का पक्ष नहीं लेगा। भारत का यह रुख फिलहाल तो संतुलित लगता है, लेकिन आगे चलकर ये फैसला कितना सही साबित होगा, यह आने वाले दिनों में तय होगा। भारत के लिए चुनौती इसलिए बड़ी है क्योंकि उसके पांच पक्के दोस्त इस पूरे खेल में अलग-अलग खेमों में खड़े हैं। अमेरिका, रूस, सऊदी अरब, फ्रांस और कतर — ये पांचों देश भारत के कूटनीतिक साझेदार हैं, लेकिन अब इस जंग में उनके अपने-अपने हित हैं।
अमेरिका-इजराइल की दोस्ती: जंग की जमीन तैयार
अमेरिका इस जंग में खुलकर इजराइल के साथ खड़ा है। भले ही वाशिंगटन ईरान के साथ न्यूक्लियर डील की बातचीत कर रहा हो, लेकिन पर्दे के पीछे सबको पता है कि इजराइल को अमेरिका की शह मिली हुई है। ट्रंप प्रशासन की कोशिश थी कि बातचीत से मामला सुलझ जाए, लेकिन इजराइल ने इसराफील के सींग फूंक दिए। अब अमेरिका ईरान पर सीधे हमला करने से बच रहा है ताकि बातचीत की बची-खुची उम्मीदें जिंदा रहें, लेकिन अगर ईरान ने अमेरिकी ठिकानों पर पलटवार किया तो अमेरिका खुलकर मैदान में उतर सकता है।
सऊदी अरब: ईरान का समर्थन लेकिन…
सऊदी अरब की भूमिका बेहद दिलचस्प है। बाहर से वो संयम और शांति की बातें कर रहा है, लेकिन अंदरखाने ईरान का समर्थन कर रहा है। हालांकि सऊदी अरब ने खुले तौर पर इजराइल का विरोध नहीं किया, जिससे साफ है कि वो अभी खुद को ‘संतुलित’ दिखाना चाहता है। लेकिन जैसे-जैसे जंग आगे बढ़ेगी, सऊदी अरब को अपने पत्ते खोलने होंगे। क्या वो ईरान का साथ देगा या फिर अमेरिका और इजराइल के साथ जाएगा? यह आने वाला वक्त बताएगा।
रूस: अमेरिका से अदावत, ईरान के साथ नज़दीकी
रूस के लिए यह मौका अमेरिका को घेरने का है। व्लादिमीर पुतिन पहले ही यूक्रेन युद्ध में अमेरिका और पश्चिमी देशों से नाराज हैं। ऐसे में अगर मिडिल ईस्ट में अमेरिका और इजराइल के खिलाफ मोर्चा खुलता है तो रूस इसे एक बड़े मौके की तरह इस्तेमाल कर सकता है। रूस की रणनीति यही होगी कि वो इस तनाव का इस्तेमाल पश्चिमी देशों पर दबाव बनाने के लिए करे। अगर ईरान ने रूस से खुलकर मदद मांगी तो पुतिन पीछे नहीं हटेंगे।
फ्रांस: संतुलन का खेल, झुकाव इजराइल की ओर
फ्रांस ने इस पूरी लड़ाई में अब तक न्यूट्रल रुख दिखाया है, लेकिन उसकी सहानुभूति इजराइल के साथ दिख रही है। फ्रांस सरकार का मानना है कि ईरान को बातचीत के रास्ते पर आना चाहिए और इस जंग को यहीं रोक देना चाहिए। लेकिन अगर ईरान अड़ा रहा और जंग तेज़ हुई तो फ्रांस के लिए भी साफ-साफ किसी एक पक्ष के साथ आना मजबूरी बन जाएगा। संकेत साफ हैं कि जब समय आएगा तो फ्रांस इजराइल का ही समर्थन करेगा।
कतर: मुस्लिम दुनिया का कार्ड, इजराइल के खिलाफ
कतर ने तो पहले ही साफ कर दिया है कि इस जंग के लिए इजराइल जिम्मेदार है। लेकिन कतर का रुख पूरी तरह से ईरान के पक्ष में नहीं गया है। वो अभी खुद को शांति के पक्षधर के तौर पर पेश कर रहा है। अगर जंग और भड़की तो कतर को तय करना होगा कि वो अपने धर्म और इलाके के देशों के साथ खड़ा रहेगा या फिर अपने कूटनीतिक हितों की खातिर खुद को तटस्थ बनाए रखेगा। कतर का रुख भी भारत के लिए अहम है क्योंकि भारत की ऊर्जा ज़रूरतों में कतर एक बड़ा खिलाड़ी है।
दुनिया पर मंडराता संकट और भारत की मुश्किलें
अगर यह जंग और भड़कती है तो तेल की कीमतें आसमान छू सकती हैं। भारत की 80 फीसदी ऊर्जा ज़रूरत आयात पर निर्भर करती है। ऐसे में मिडिल ईस्ट की ये जंग भारतीय अर्थव्यवस्था पर सीधा हमला होगी। कच्चे तेल की कीमतें बढ़ने का मतलब है महंगाई का उबाल और डॉलर के मुकाबले रुपये की हालत और खराब होना। भारत को सबसे ज्यादा डर इसी बात का है। भारत ने ईरान और इजराइल दोनों से रिश्ते बनाए रखे हैं। इजराइल भारत का रक्षा पार्टनर है तो ईरान से भारत का ऊर्जा और बंदरगाह परियोजनाओं में सहयोग है। इस युद्ध में कोई भी एक पक्ष चुनना भारत के लिए घाटे का सौदा साबित हो सकता है। भारत को एक-एक कदम फूंक-फूंक कर रखना होगा।
क्या मिडिल ईस्ट परमाणु युद्ध के मुहाने पर खड़ा है?
इस पूरे खेल का सबसे खतरनाक पहलू यह है कि मामला सिर्फ परंपरागत युद्ध का नहीं रह गया है। ईरान जिस तरह से खुद को घिरता देख रहा है, उसमें यह आशंका गहराई है कि वह परमाणु कार्यक्रम को तेज कर सकता है। अगर ऐसा हुआ तो इजराइल के लिए यह अस्तित्व का संकट होगा और वो ईरान के परमाणु ठिकानों पर बड़े पैमाने पर हमला कर सकता है। अगर ये सिलसिला टूटा नहीं तो मिडिल ईस्ट दुनिया का अगला परमाणु युद्ध का मैदान बन सकता है।अभी तो आग की सिर्फ शुरुआत हुई है। असली धमाके तो आने वाले दिनों में होंगे।
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