Iran-Israel War Update: क्या यहीं खत्म होगा युद्ध?

Iran-Israel Ceasefire Update: पश्चिम एशिया में ईरान और इज़राइल के बीच लम्बे समय से चल रहे संघर्ष का अंत फिलहाल एक संघर्षविराम के रूप में हुआ है।

Sonal Girhepunje
Published on: 24 Jun 2025 8:20 PM IST
Iran-Israel Ceasefire Full Information
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Iran-Israel Ceasefire: पश्चिम एशिया में ईरान और इज़राइल के बीच लम्बे समय से चल रहे संघर्ष का अंत फिलहाल एक संघर्षविराम के रूप में हुआ है। बीते कई महीनों में पूरे क्षेत्र में तनाव चरम पर पहुंच गया था, क्योंकि दोनों पक्षों ने एक दूसरे को रॉकेट, ड्रोन और सैन्य चेतावनी भेजी। लेकिन अब स्थिति थोड़ी ठंडी लगती है।

लेकिन मूल प्रश्न यही है-क्या यह अवधि स्थायी शांति का संकेत है या फिर एक और भयानक युद्ध से पहले की चुप्पी?

भारत जैसे देशों के लिए यह संघर्ष सिर्फ विदेश नीति का मुद्दा नहीं है; यह हमारी अर्थव्यवस्था पर भी सीधा असर डालता है, खासकर कच्चे तेल की कीमतों पर। भारत जैसे आयात-निर्भर देशों पर जबरदस्त आर्थिक दबाव आता है जब इस क्षेत्र में तनाव बढ़ता है और वैश्विक बाजार में तेल महंगा होने लगता है। यही कारण है कि भारत इस लड़ाई को बहुत गंभीरता से ले रहा है।

संघर्ष की पृष्ठभूमि :

ईरान और इज़राइल का यह टकराव नया नहीं है। यह वर्षों पुरानी धार्मिक, राजनीतिक और रणनीतिक दुश्मनी का परिणाम है। लेकिन 2025 में इस टकराव ने नया मोड़ तब लिया, जब इज़राइल ने सीरिया में ईरान समर्थित ठिकानों पर हमले तेज किए, और ईरान ने प्रत्यक्ष रूप से जवाबी कार्रवाई की।

इस क्षेत्र में सीधा युद्ध किसी भी वक्त एक बड़े अंतरराष्ट्रीय संघर्ष में बदल सकता था, जिसमें अमेरिका, रूस और खाड़ी देश भी खिंच सकते थे। ऐसे में संघर्षविराम को एक बड़ी कूटनीतिक सफलता माना जा रहा है।

भारत के लिए क्यों है ये मुद्दा बेहद अहम?

भारत दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा तेल आयातक देश है और इसकी 85% से ज़्यादा ज़रूरतें विदेशी तेल पर निर्भर करती हैं। भारत का एक बड़ा हिस्सा तेल मध्य-पूर्व के देशों से आयात करता है – जिसमें ईरान, इराक, सऊदी अरब और यूएई जैसे देश शामिल हैं।

जब भी ईरान और इज़राइल के बीच तनाव बढ़ता है, तो हॉर्मुज की खाड़ी जैसी महत्वपूर्ण शिपिंग रूट पर खतरा मंडराने लगता है। इससे सप्लाई बाधित होती है और अंतरराष्ट्रीय बाजार में तेल की कीमतें तेजी से बढ़ जाती हैं।

तेल की कीमतें और भारतीय अर्थव्यवस्था का सीधा रिश्ता :

  • भारत में पेट्रोल-डीजल की कीमतें अंतरराष्ट्रीय बाजार पर निर्भर हैं। जैसे ही कच्चे तेल की कीमतें बढ़ती हैं:
  • परिवहन खर्च बढ़ता है, जिससे हर चीज़ महंगी हो जाती है – चाहे वो सब्ज़ी हो या मोबाइल फोन।
  • सरकार को तेल पर सब्सिडी का बोझ बढ़ता है, जिससे बजट प्रभावित होता है।
  • महंगाई दर (Inflation) तेज़ी से बढ़ती है।
  • व्यापार घाटा (Trade Deficit) और चालू खाता घाटा (CAD) भी गहराता है।
  • रुपये की कीमत डॉलर के मुकाबले कमजोर हो जाती है।

2025 में भारत पर पड़ा प्रभाव :

ईरान-इज़राइल युद्ध के दौरान:

  • ब्रेंट क्रूड ऑयल की कीमतें $90 प्रति बैरल से ऊपर पहुंच गई थीं।
  • भारत में पेट्रोल ₹110 और डीज़ल ₹100 तक पहुंचने की आशंका जताई जा रही थी।
  • विमानन ईंधन (ATF), LPG और खाद्य वस्तुओं की लागत भी प्रभावित हुई।
  • केंद्र सरकार और RBI को महंगाई काबू में रखने के लिए अतिरिक्त कदम उठाने पड़े।

संघर्षविराम से क्या मिला भारत को?

  1. तेल की कीमतों में राहत: संघर्षविराम के बाद तेल की कीमतें $82–$85 प्रति बैरल पर स्थिर हो रही हैं, जिससे भारत को राहत मिली है।
  2. रुपये में मजबूती: डॉलर के मुकाबले रुपया कुछ हद तक मजबूत हुआ है, जिससे आयात सस्ता हुआ।
  3. महंगाई पर नियंत्रण: सरकार को अब डीज़ल-पेट्रोल के दाम में कटौती का मौका मिल सकता है।
  4. विदेश नीति में संतुलन: भारत ने इस संघर्ष में किसी एक पक्ष का समर्थन नहीं किया, जिससे दोनों देशों के साथ उसके संबंध सुरक्षित रहे।

क्या यह संघर्षविराम स्थायी होगा?

इस सवाल का उत्तर फिलहाल स्पष्ट नहीं है। विशेषज्ञ मानते हैं कि:

  • ईरान और इज़राइल की पुरानी दुश्मनी किसी भी समय फिर से भड़क सकती है।
  • इज़राइल के घरेलू राजनीतिक हालात और ईरान के कट्टरपंथी नेतृत्व में कोई स्थायी शांति संभव नहीं दिखती।
  • अमेरिका और रूस जैसी वैश्विक शक्तियों की भूमिका भी इस शांति को बनाए रखने में निर्णायक होगी।

भारत को क्या करना चाहिए?

  1. ऊर्जा के नए स्रोत खोजे जाएं – सौर, पवन और हाइड्रोजन पर निवेश बढ़े।
  2. रणनीतिक तेल भंडारण (Strategic Reserve) को और मजबूत किया जाए।
  3. दीर्घकालिक तेल अनुबंध (Long-term Oil Contracts) पर ध्यान केंद्रित किया जाए जिससे अस्थिरता कम हो।
  4. कूटनीतिक स्तर पर भारत को दोनों पक्षों से संवाद बनाए रखना होगा ताकि आपूर्ति बाधित न हो।

क्या यह सिर्फ एक विराम है?

ईरान और इज़राइल के बीच यह संघर्षविराम एक शांति का संकेत जरूर है, लेकिन स्थायी समाधान नहीं। भारत जैसे देश के लिए यह एक चेतावनी है कि ऊर्जा नीति को बहुआयामी बनाना ही दीर्घकालिक समाधान है।

क्योंकि जब-जब पश्चिम एशिया में युद्ध की आग भड़की है, भारत की जेब पर सीधा असर पड़ा है। इसीलिए भारत को सिर्फ शांतिपूर्ण रास्तों की कामना नहीं, ऊर्जा आत्मनिर्भरता की दिशा में ठोस कदम भी उठाने होंगे।

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