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अब और बर्दाश्त नहीं!’ सीजफायर के बाद फिर बमबारी, ट्रंप की शांति योजना फेल, इजराइल-ईरान जंग में राउंड-2 शुरू?
Israel Iran war round 2: ट्रंप के इस शांति ऐलान से पहले ही ईरान ने कतर में अमेरिका के सैन्य अड्डे पर मिसाइलें बरसा दी थीं। ये हमला जैसे अमेरिका को चुनौती देने जैसा था — और फिर ट्रंप पर दबाव था कि किसी तरह से इस आग को शांत किया जाए। लेकिन शांत हुआ क्या? इजरायल ने दो घंटे भी नहीं लगाए और फिर से ईरान पर मिसाइलें दाग दीं।
Israel Iran war round 2: दुनिया ने अभी चैन की सांस भरनी शुरू ही की थी कि एक बार फिर मध्य पूर्व की रात मिसाइलों की आवाज़ से गूंज उठी। डोनाल्ड ट्रंप की बड़ी-बड़ी बातों और ‘सीजफायर ऐलान’ के कुछ ही घंटों बाद मौत फिर से आसमान से बरसने लगी। सोशल मीडिया से लेकर न्यूज़ स्टूडियो तक हर जगह सिर्फ एक ही सवाल गूंज रहा है — क्या ये शांति का ढोंग था या तीसरे विश्व युद्ध की पटकथा लिखी जा रही है? अभी दो दिन पहले तक दुनिया ट्रंप के बयान पर भरोसा कर रही थी। उन्होंने गर्व से एलान किया — ‘अब बस… शांति आ गई है… ईरान-इजराइल अब लड़ाई नहीं करेंगे।’ लेकिन बीरशीबा की सड़कों पर जब चार निर्दोष नागरिकों की लाशें बिछीं, तब दुनिया ने समझ लिया कि ये सिर्फ कैमरों के सामने बोली गई बातें थीं, असलियत कहीं और थी। दरअसल, ट्रंप के इस शांति ऐलान से पहले ही ईरान ने कतर में अमेरिका के सैन्य अड्डे पर मिसाइलें बरसा दी थीं। ये हमला जैसे अमेरिका को चुनौती देने जैसा था — और फिर ट्रंप पर दबाव था कि किसी तरह से इस आग को शांत किया जाए। लेकिन शांत हुआ क्या? इजरायल ने दो घंटे भी नहीं लगाए और फिर से ईरान पर मिसाइलें दाग दीं। वजह? इजरायली रक्षा मंत्रालय का आरोप था कि ईरान ने पहले सीजफायर तोड़ा। ईरान ने साफ इनकार कर दिया। उसके मुताबिक, उन्होंने कोई उल्लंघन नहीं किया। सवाल ये कि कौन सच बोल रहा है? या सच ये है कि मिडिल ईस्ट अब खुद भी नहीं जानता कि वो जिंदा रहेगा या अगले धमाके में जलकर खाक हो जाएगा?
ट्रंप का खोखला क्रेडिट कार्ड
पूरे घटनाक्रम में सबसे ज्यादा किरकिरी अगर किसी की हुई है तो वो है अमेरिका और ट्रंप की। डोनाल्ड ट्रंप, जो खुद को ‘डीलमेकर’ कहते हैं, इस पूरे संकट में बुरी तरह फेल होते नजर आए। पहले ट्रंप ने ऐलान किया कि ईरान-इजरायल दोनों ही मेरे कहने पर राजी हुए हैं। उन्होंने दुनिया के सामने यह दिखाने की कोशिश की कि मध्य पूर्व की शांति का सेहरा उनके सिर बंधेगा। लेकिन हकीकत ये निकली कि ना तो ईरान ने उनकी सुनी, और ना ही नेतन्याहू ने। उल्टा इजराइल ने तो साफ-साफ कह दिया कि हम अमेरिका की मर्जी से नहीं, अपने हिसाब से लड़ेंगे। यानी ट्रंप की शांति योजना का हश्र वही हुआ, जो किसी फटे पुराने नोट का बाजार में होता है — कोई लेने को तैयार नहीं।
सीजफायर या झांसा?
दुनिया भर के सामरिक विश्लेषक इस पूरे सीजफायर को ‘ऑन कैमरा झांसा’ बता रहे हैं। दरअसल, दोनों देशों ने सिर्फ औपचारिकता निभाई। इजराइल ने कहा, ‘अगर ईरान हमला नहीं करेगा तो हम भी शांत रहेंगे।’ ईरान ने कहा, ‘अगर इजराइल हमला नहीं करेगा तो हम भी शांत रहेंगे।’ यानी दोनों देशों ने शांति को हाथ में तलवार लेकर गले लगाया। और जैसे ही किसी को मौका मिला, तलवार चल गई। ईरान की सुप्रीम काउंसिल ने तो यहां तक दावा कर दिया कि इजराइल को मजबूर होकर सीजफायर पर आना पड़ा, क्योंकि उनके जवाबी हमलों ने इजराइल को झुका दिया। दूसरी तरफ इजराइल का दावा है कि ईरान झूठ बोल रहा है और वही युद्ध जारी रखना चाहता है। सच्चाई? मिडिल ईस्ट में धुएं के गुबार में अब सच और झूठ का फर्क मिट चुका है।
कतर पर हमला, लेकिन कतर दोस्त!
सबसे दिलचस्प बात यह रही कि ईरान ने जिस कतर में अमेरिकी सैन्य बेस पर हमला किया, उसी कतर को दोस्त भी बताया। ये कैसी दोस्ती है जिसमें मिसाइलें भेजी जाती हैं? दरअसल, ईरान का संदेश साफ था — ‘हम अमेरिका को दिखाना चाहते थे कि हम कमजोर नहीं हैं।’ अमेरिका भी समझ चुका है कि अब उसकी हैसियत ‘शांति रक्षक’ जैसी नहीं रह गई। जो ट्रंप दुनिया भर में खुद को ‘सुपर डीलमेकर’ साबित करने निकले थे, उनके चेहरे पर इस हमले के बाद साफ झल्लाहट नजर आई। उन्होंने प्रेस से कहा — “मैं न ईरान से खुश हूं, न इजराइल से। किसी को नहीं पता ये क्या कर रहे हैं।” लेकिन सवाल ये है कि क्या ट्रंप वाकई कुछ नहीं जानते या फिर जानबूझकर अंजान बनने का नाटक कर रहे हैं?
युद्ध का राउंड-2 — बस शुरुआत हुई है
अब सवाल ये है कि क्या ईरान-इजराइल संघर्ष यहीं खत्म हो जाएगा? हकीकत तो ये है कि ये महज राउंड-1 था। असली लड़ाई तो अभी बाकी है। इजराइल का गुस्सा अभी ठंडा नहीं हुआ। ईरान की सुप्रीम काउंसिल खुलेआम कह चुकी है कि अगला हमला हुआ तो ‘निर्णायक और भयानक’ जवाब दिया जाएगा। और जिस तरह से दोनों देश अब खुलेआम एक-दूसरे की सैन्य प्रतिष्ठानों पर हमले कर रहे हैं, ये कहना गलत नहीं होगा कि युद्ध का असली चेहरा अभी दुनिया ने देखा ही नहीं। ट्रंप भले ही शांति का ढोंग कर लें, इजराइल भले ही अमेरिका की बातें सुनने का दिखावा कर ले, और ईरान भले ही खुद को ‘मजबूर’ दिखाए, लेकिन सच यही है कि ये आग बुझने वाली नहीं है। ये सिर्फ मिसाइलों का युद्ध नहीं, ये ‘साख’ और ‘जिद’ का युद्ध है। और जिद जब हावी होती है, तब शांति सिर्फ एक कहानी बन जाती है। और इस बार कहानी का अंत कोई खुशहाल नहीं होगा — ये दुनिया के लिए तीसरे विश्व युद्ध का प्रील्यूड भी बन सकता है। अब बस इंतजार है उस एक धमाके का — जो दुनिया के नक्शे को फिर से खून से रंग सकता है।
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