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ईरान इजराइल युद्ध: पृष्ठभूमि, कारण, वैश्विक शक्तियाँ और अमेरिका की भूमिका, एक समग्र विश्लेषण
Iran Israel War Update,: जानिए ईरान-इज़राइल युद्ध 2025 की पूरी पृष्ठभूमि, इसके कारण, वैश्विक शक्तियों की भूमिका, इस्लामिक देशों की स्थिति, और अमेरिका के हस्तक्षेप से बदलता परिदृश्य। पढ़ें यह विस्तृत रिपोर्ट।
Iran Israel War Update
Iran Israel War Update: पश्चिम एशिया का भूगोल सदियों से संघर्षों का केंद्र रहा है। यह क्षेत्र तेल-संपदा, धार्मिक महत्व और सामरिक स्थिति के कारण वैश्विक राजनीति में अत्यंत संवेदनशील है। वर्तमान में चल रहा ईरान-इज़राइल युद्ध केवल दो देशों की लड़ाई नहीं, बल्कि एक ऐसे संघर्ष की परिणति है जिसमें ऐतिहासिक शत्रुता, वैचारिक विरोधाभास, प्रॉक्सी लड़ाइयाँ और वैश्विक राजनीति के कई परतें एक साथ उलझी हुई हैं।
शत्रुता की जड़ें
ईरान और इज़राइल के संबंधों में खटास 1979 की ईरानी इस्लामिक क्रांति के बाद गहराई। इससे पहले ईरान (शाह रज़ा पहलवी के दौर में) इज़राइल के साथ कूटनीतिक संबंध रखता था। लेकिन क्रांति के बाद अयातुल्ला खुमैनी ने इज़राइल को ‘शैतान की औलाद’ कहा और उसे मध्य-पूर्व का अवैध राज्य घोषित कर दिया।
तब से ईरान की नीतियाँ फ़िलिस्तीन की मुक्ति और इज़राइल के विनाश की ओर केंद्रित रहीं। हिज़्बुल्लाह (लेबनान), हमास (गाज़ा) और इस्लामिक जिहाद जैसे संगठनों को ईरान की खुली आर्थिक, सैन्य और वैचारिक मदद मिलने लगी। वहीं इज़राइल को यह डर सताने लगा कि ईरान उसके अस्तित्व के लिए सबसे बड़ा ख़तरा है, विशेष रूप से ईरान के परमाणु कार्यक्रम के चलते।
मुख्य कारण
1. परमाणु कार्यक्रम: इज़राइल का दावा है कि ईरान गुप्त रूप से परमाणु हथियार विकसित कर रहा है। 2015 के ईरान न्यूक्लियर डील (JCPOA) से अमेरिका का 2018 में हटना और ईरान द्वारा पुनः यूरेनियम संवर्धन बढ़ाना इस तनाव की बड़ी वजह बनी।
2. प्रॉक्सी नेटवर्क: ईरान का उद्देश्य पूरे क्षेत्र में शिया प्रभाव बढ़ाना है। सीरिया, इराक, यमन और लेबनान में ईरानी हस्तक्षेप इज़राइल के लिए अस्वीकार्य है।
3. धार्मिक वैचारिक संघर्ष: शिया ईरान और यहूदी राष्ट्र इज़राइल के बीच धार्मिक-वैचारिक विरोध ने इस दुश्मनी को और उग्र बना दिया है।
4. भू-राजनीतिक प्रतिस्पर्धा: ईरान खुद को इस्लामी दुनिया का नेतृत्वकर्ता मानता है, जबकि इज़राइल अमेरिकी समर्थन से पश्चिम एशिया की रणनीतिक शक्ति बना रहना चाहता है।
ईरान का परमाणु कार्यक्रम: पूरी कहानी
ईरान का परमाणु कार्यक्रम इस पूरे संघर्ष का सबसे बड़ा कारण है। 1950 के दशक में अमेरिका और पश्चिमी देशों की मदद से शुरू हुआ यह कार्यक्रम 1979 की क्रांति के बाद सैन्य शक्ल लेता गया। 2015 में ज्वाइंट कॉम्प्रिहेंसिव प्लान ऑफ एक्शन (JCPOA) यानी ईरान न्यूक्लियर डील के तहत ईरान ने यूरेनियम संवर्धन सीमित करने पर सहमति दी। पर 2018 में अमेरिका के हटने के बाद ईरान ने फिर से संवर्धन तेज कर दिया, और आज यह परमाणु हथियार बनाने की दहलीज पर माना जा रहा है। इज़राइल इसी वजह से ईरान पर लगातार हमले करता रहा है।
इज़राइल-फिलिस्तीन संघर्ष का इतिहास
ईरान की इज़राइल-विरोधी नीति का एक बड़ा कारण फ़िलिस्तीन मुद्दा है। 1948 में इज़राइल की स्थापना के बाद से ही फ़िलिस्तीनियों के साथ उसका संघर्ष जारी है। कई युद्ध, जैसे 1967 का छह दिवसीय युद्ध और 1973 का योम किप्पुर युद्ध, और गाजा में हमास के साथ बार-बार झड़पें इस संघर्ष के पड़ाव रहे हैं। ईरान खुद को फ़िलिस्तीनियों का संरक्षक बताता है और हमास व इस्लामिक जिहाद जैसे संगठनों को मदद देकर इज़राइल पर दबाव बनाता रहा है।
वर्तमान युद्ध की चिंगारी
2025 में इज़राइल ने ईरान के दमावंद स्थित एक परमाणु साइट और रिवोल्यूशनरी गार्ड के हेडक्वार्टर पर हमला किया। इसके जवाब में ईरान ने हजारों ड्रोन और मिसाइलें इज़राइल पर दागीं। इनमें से अधिकांश को इज़राइल के आयरन डोम और अमेरिका के THAAD और पैट्रियट सिस्टम ने नष्ट कर दिया। लेकिन दोनों देशों में जन और धन की भारी हानि हुई।
किसके साथ कौन है? (Global Powers in Iran Israel Conflict)
अमेरिका (USA)
अमेरिका इज़राइल का सबसे मजबूत समर्थक है। अमेरिका ने इज़राइल को सैन्य और तकनीकी मदद के साथ-साथ अपनी नौसेना और वायु सेना की तैनाती भी बढ़ा दी है।
रूस
रूस ईरान का रणनीतिक सहयोगी रहा है, विशेषकर सीरिया में। रूस ने इस युद्ध में अमेरिका की भूमिका की आलोचना की है।
चीन
चीन ने कूटनीतिक समाधान की अपील की है और संघर्षविराम की आवश्यकता पर जोर दिया है।
यूरोपियन यूनियन
यूरोप ने क्षेत्रीय शांति की अपील की है।
इस्लामिक देश
अधिकांश सुन्नी इस्लामिक देश- जैसे सऊदी अरब, यूएई, बहरीन) ईरान के विस्तारवादी एजेंडे से चिंतित हैं और इज़राइल के विरोध में खुलकर नहीं आए हैं।ईरान की शिया नीतियाँ, क्रांतिकारी विस्तारवाद और प्रॉक्सी हस्तक्षेपों ने सुन्नी बहुल देशों में अविश्वास पैदा किया है। सऊदी अरब, यूएई और बहरीन जैसे देश ईरान को खतरा मानते हैं।
अमेरिका के हस्तक्षेप का प्रभाव
अमेरिका की भागीदारी ने इस संघर्ष को एक नए स्तर पर पहुँचा दिया:
- युद्ध का विस्तार: अब यह केवल ईरान-इज़राइल की लड़ाई नहीं रही। लेबनान, सीरिया और यमन में प्रॉक्सी मोर्चे और भड़क सकते हैं।
- ऊर्जा आपूर्ति पर खतरा: स्ट्रेट ऑफ होर्मुज़ से तेल आपूर्ति ठप पड़ने लगी है। दुनिया में कच्चे तेल की कीमतें 150 डॉलर प्रति बैरल तक पहुँच गई हैं।
- वैश्विक आर्थिक संकट: महंगाई बढ़ रही है, विशेषकर यूरोप और एशिया में।
- नया शीत युद्ध? अमेरिका-इज़राइल बनाम रूस-चीन-ईरान गुटबंदी उभर रही है।
- मानवीय त्रासदी: यूएन रिपोर्ट के मुताबिक अब तक 50,000 से अधिक लोग विस्थापित हो चुके हैं। सैकड़ों नागरिक हताहत हुए हैं।
इसी के साथ अमेरिका के इस युद्ध में शामिल होने के चलते युद्ध का विस्तार और नए मोर्चों का खुलना, वैश्विक महंगाई और आर्थिक अस्थिरता, मानवाधिकार संकट और शरणार्थी समस्या, दुनिया में नए ध्रुवीकरण की आशंका (New Cold War Scenario) जन्म ले सकती हैं।
विशेषज्ञों की राय और समाधान की राह
यूएन महासचिव एंटोनियो गुटेरेस ने कहा: “यह युद्ध मानवता के लिए तबाही है। शांति ही एकमात्र रास्ता है।” राजनीतिक विश्लेषक फैज़ल अब्बास के अनुसार: “ईरान को अपनी आक्रामक नीतियों पर पुनर्विचार करना होगा और इज़राइल को चाहिए कि वह कूटनीतिक समाधान का रास्ता अपनाए। अमेरिका को शांति वार्ता में नेतृत्व दिखाना चाहिए, न कि युद्ध में।”
समाधान
• एक तटस्थ मध्यस्थता मंच (जैसे संयुक्त राष्ट्र, या चीन की पहल पर शांति सम्मेलन) बनाया जाए।
• ईरान को परमाणु कार्यक्रम पर पारदर्शिता लानी होगी।
• इज़राइल को क्षेत्रीय आक्रामकता रोकनी होगी।
• वैश्विक शक्तियों को सैन्य हस्तक्षेप की बजाय मानवीय सहायता और कूटनीतिक दबाव पर ध्यान देना होगा।
ईरान-इज़राइल युद्ध किसी एक देश की समस्या नहीं। यह संघर्ष पूरी दुनिया को प्रभावित कर रहा है — चाहे वह ऊर्जा सुरक्षा हो, वैश्विक शांति हो या आर्थिक स्थिरता। यदि शीघ्र समाधान नहीं निकला, तो यह युद्ध वैश्विक टकराव का कारण बन सकता है।लगता है कि शांति की राह मुश्किल है, लेकिन असंभव नहीं। इसके लिए ज़रूरत है साहसी नेतृत्व, कूटनीतिक इच्छाशक्ति और वैश्विक सहयोग की।
क्योंकि ईरान-इज़राइल युद्ध 2025 केवल पश्चिम एशिया नहीं, पूरी दुनिया के लिए चिंता का विषय बन चुका है। ऊर्जा संकट, आर्थिक अस्थिरता और मानवीय त्रासदी को रोकने के लिए वैश्विक समुदाय को त्वरित और साहसी कूटनीतिक प्रयास करने होंगे।
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