TRENDING TAGS :
इजरायल की जीत से भारत पर हमला तय? जानिए कैसे जल उठेगा इंडिया और खतरे में फंस जाएंगे करोड़ों भारतीय
Iran Israel war impact on India: कभी भारत और ईरान के बीच 905 किलोमीटर लंबी सरहद थी। साझी संस्कृति, भाषा और परंपराएं थीं। लेकिन 1947 में देश के विभाजन के बाद वह सीमाएं पाकिस्तान की तरफ मुड़ गईं। बावजूद इसके, भारत और ईरान के रिश्तों में वो ऐतिहासिक गर्माहट बरकरार रही, जिसे सिर्फ सरहदें मिटा नहीं सकती थीं।
Iran Israel war impact on India: दुनिया के नक्शे पर जब-जब बड़ी लड़ाइयों की आग भड़कती है, तब भारत को हमेशा दो रास्तों के बीच खड़ा देखा गया है। एक तरफ अंतरराष्ट्रीय दबाव, दूसरी तरफ अपने रणनीतिक हित। लेकिन इस बार मामला और भी उलझा हुआ है। क्योंकि आग कहीं और लगी है, लेकिन उसके धुएं की गंध अब दिल्ली तक पहुंचने लगी है। ईरान और इसराइल के बीच चल रही जंग ने भारत को ऐसी कूटनीतिक पहेली में डाल दिया है, जहां सही-गलत का फैसला करना आसान नहीं रहा। सवाल सिर्फ यह नहीं है कि भारत किसका साथ दे, असली सवाल यह है कि भारत जिस बहुध्रुवीय दुनिया की बात करता आया है, क्या वह सपना अब बिखरने वाला है?
कभी भारत और ईरान के बीच 905 किलोमीटर लंबी सरहद थी। साझी संस्कृति, भाषा और परंपराएं थीं। लेकिन 1947 में देश के विभाजन के बाद वह सीमाएं पाकिस्तान की तरफ मुड़ गईं। बावजूद इसके, भारत और ईरान के रिश्तों में वो ऐतिहासिक गर्माहट बरकरार रही, जिसे सिर्फ सरहदें मिटा नहीं सकती थीं। 15 मार्च 1950 को भारत ने ईरान के साथ राजनयिक संबंध स्थापित किए। लेकिन 1979 में जब ईरान में इस्लामिक क्रांति हुई तो सब कुछ बदल गया। क्रांति के बाद का ईरान अमेरिका के नेतृत्व वाली वैश्विक व्यवस्था के खिलाफ खड़ा हो गया। वहीं भारत ने शांति और संतुलन की अपनी परंपरा को निभाते हुए दोनों के साथ रिश्ते बनाए रखे। लेकिन 1992 में नरसिम्हा राव सरकार के दौरान भारत ने इजराइल से औपचारिक संबंध बनाकर एक बड़ा कूटनीतिक कदम उठाया, जो आज की परिस्थिति में भारत की नीति का आधार बन चुका है। अब सवाल यह है कि जब पश्चिम एशिया एक बार फिर सुलग रहा है और इस आग में ईरान अकेला पड़ता जा रहा है, तब भारत कहां खड़ा है?
बहुध्रुवीय दुनिया का सपना टूटता दिख रहा है?
भारत की विदेश नीति हमेशा से ‘मल्टीपोलर वर्ल्ड’ यानी बहुध्रुवीय दुनिया की पक्षधर रही है। भारत का मानना रहा कि दुनिया सिर्फ अमेरिका जैसे एक या दो देशों के इशारे पर न चले। सोवियत संघ के टूटने के बाद से अमेरिका ने दुनिया में दबदबा बनाया लेकिन चीन और रूस ने इस पर चुनौती पेश की। ईरान उन चुनौतियों में एक प्रतीक बन गया, जिसने खुलेआम अमेरिका को आंखें दिखाईं। लेकिन जैसे ही इसराइल ने ईरान पर हमले शुरू किए और अमेरिका ने खुलकर इसराइल का समर्थन किया, ईरान के साथ खड़े होने वाले देश गुमसुम हो गए। रूस और चीन भी सिर्फ औपचारिक निंदा कर रहे हैं, लेकिन कोई ठोस समर्थन नहीं दिखा रहे।
भारत ने भी इसराइल के हमले की आलोचना नहीं की। क्या भारत भी अब अमेरिका के खेमे में पूरी तरह झुक चुका है? और अगर ऐसा है तो क्या बहुध्रुवीय दुनिया का सपना महज एक नारा बनकर रह जाएगा? दिल्ली के जवाहरलाल नेहरू यूनिवर्सिटी में पश्चिम एशिया अध्ययन केंद्र के प्रोफेसर अश्विनी महापात्रा मानते हैं कि अगर ईरान कमजोर पड़ता है तो ये बहुध्रुवीय व्यवस्था के लिए बड़ा झटका होगा। लेकिन वो ये भी मानते हैं कि पश्चिम एशिया की जियोपॉलिटिक्स इतनी सरल नहीं कि अमेरिका सब कुछ अपने हिसाब से कर ले। इराक, लीबिया और सीरिया का उदाहरण हमारे सामने है—अमेरिका सत्ता तो बदलवा सका, लेकिन स्थिरता नहीं ला पाया।
भारत का असमंजस—दिलचस्पी विदेश नीति में या घरेलू राजनीति में?
ईरान भारत के लिए रणनीतिक तौर पर क्यों अहम है? वजह साफ है। पाकिस्तान को बायपास कर भारत अगर अफगानिस्तान और मध्य एशिया तक सीधा पहुंचना चाहता है तो ईरान के चाबहार पोर्ट से बेहतर कोई रास्ता नहीं। यही वजह है कि भारत ने चाबहार बंदरगाह परियोजना में निवेश भी किया था। लेकिन आज हालात ये हैं कि ईरान के साथ भारत का व्यापार घटकर 1 अरब डॉलर से नीचे आ गया है। अमेरिका के प्रतिबंधों और घरेलू राजनीतिक प्राथमिकताओं के कारण भारत ने धीरे-धीरे ईरान से दूरी बना ली है। भारत के पूर्व राजदूत तलमीज अहमद का कहना है कि भारत का रुख इसराइल और अमेरिका के पक्ष में झुकता दिख रहा है। उनका आरोप है कि मौजूदा सरकार की विदेश नीति में स्पष्टता नहीं है क्योंकि उसका ध्यान घरेलू राजनीति पर ज्यादा है। यही वजह है कि इसराइल-ईरान युद्ध में भारत का रुख भ्रमित करने वाला लग रहा है।
पूर्व एनएसए शिवशंकर मेनन भी मानते हैं कि भारत की विदेश नीति पर घरेलू राजनीति का असर अब पहले से ज्यादा दिखने लगा है। मेनन ने हाल ही में कहा था कि गल्फ देशों में करीब 90 लाख भारतीय रहते हैं, जो अरबों डॉलर भारत भेजते हैं। अगर इस इलाके में युद्ध भड़कता है तो इसका सीधा असर भारतीयों और भारत की अर्थव्यवस्था पर पड़ेगा।
ईरान—भारतीय विदेश नीति के लिए बोझ या जरूरत?
असल चुनौती ये है कि भारत के लिए ईरान एक रणनीतिक ‘संपत्ति’ तो है, लेकिन पर्शियन गल्फ की राजनीति में वह अक्सर भारत के लिए ‘बोझ’ बन जाता है। सऊदी अरब, यूएई और इसराइल जैसे देशों के साथ भारत के रिश्ते गहरे हो चुके हैं, जो ईरान को पसंद नहीं करते। ऐसे में भारत के सामने दुविधा है कि वह किस तरफ जाए। डॉ. मुदस्सिर क़मर कहते हैं कि भारत का इसराइल के साथ रिश्ता रक्षा और तकनीक के स्तर पर मजबूत हुआ है, लेकिन ईरान का महत्व भौगोलिक और व्यापारिक है। भारत के लिए सबसे बड़ी चुनौती यही है कि वो इस संतुलन को कैसे साधे।
क्या भारत को अब साफ स्टैंड लेना होगा?
भारत ने हाल ही में शंघाई सहयोग संगठन (SCO) के उस बयान पर हस्ताक्षर करने से इनकार कर दिया, जिसमें इसराइल की आलोचना की गई थी। ये भारत के झुकाव का संकेत था। लेकिन क्या भारत लंबे समय तक इस संतुलन को बनाए रख पाएगा? जब दुनिया दो हिस्सों में बंट रही है—अमेरिका और उसके सहयोगी बनाम चीन-रूस-ईरान धड़ा—तो भारत कब तक ‘संतुलनवादी’ बना रह सकता है? इतिहास गवाह है कि भारत हमेशा जटिल हालात में ‘निंदा’ से बचता आया है। नेहरू से लेकर मोदी तक की नीति रही है कि जब तक जरूरी न हो, किसी एक पक्ष में खुलकर खड़ा न हुआ जाए। लेकिन इस बार हालात अलग हैं। ईरान कमजोर हुआ तो भारत का मध्य एशिया में प्रवेश मुश्किल हो जाएगा। वहीं इसराइल मजबूत हुआ तो अमेरिका का दबदबा और बढ़ेगा और भारत पर दबाव भी।
क्या ईरान फिर उठ खड़ा होगा?
इतिहास कहता है कि ईरान बार-बार संकटों से उठा है। 1980 के दशक में सद्दाम हुसैन ने हमला किया था, लाखों ईरानी मारे गए, लेकिन ईरान फिर खड़ा हुआ। अब भी ईरान अकेला जरूर दिखता है, लेकिन टूटेगा नहीं। भारत के लिए खतरा यही है कि अगर उसने इस वक्त संतुलन नहीं साधा तो ईरान भविष्य में भारत को रणनीतिक रूप से भरोसेमंद नहीं मानेगा। अभी खेल खत्म नहीं हुआ है। लेकिन भारत को तय करना होगा कि वह इतिहास में एक संतुलनकारी शक्ति के तौर पर याद किया जाएगा या फिर अमेरिका और इसराइल के खेमे में शामिल एक और सहयोगी के तौर पर? आग पश्चिम एशिया में लगी है, लेकिन उसकी गर्मी अब भारत की रणनीतिक दीवारों तक पहुंचने लगी है। सवाल ये है—क्या भारत इस तपिश में संतुलन साध पाएगा या बहुध्रुवीय दुनिया का सपना धुएं में बदल जाएगा?
Start Quiz
This Quiz helps us to increase our knowledge