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दुनिया के बड़े हिंसक प्रदर्शन - नेपाल से श्रीलंका तक की कहानी
Duniya Ke Bade Pradarshan: इस लेख में हम दुनिया के उन बड़े हिंसक जनआंदोलनों की बात करेंगे जिनके बाद सत्ता में बदलाव आया।
Major Violent Mass Movements History: जब-जब दुनिया में जनता का गुस्सा अपनी चरम सीमा पर पहुंचा तब लोगों ने बड़े आंदोलनों के जरिए सत्ता को बदलने के लिए आवाज उठाई। कई बार ये आंदोलन शांतिपूर्ण होते हैं, लेकिन कई बार यह हिंसक रूप ले लेते हैं। ऐसे आंदोलनों ने कई बार सरकारों को गिरा दिया और सत्ता परिवर्तन को मजबूर कर दिया। हाल ही में नेपाल में हुए हिंसक प्रदर्शनों के बाद प्रधानमंत्री ओली को इस्तीफा देना पड़ा।
नेपाल में हुए हालिया हिंसक प्रदर्शन
हाल ही में नेपाल में बड़ा राजनीतिक और सामाजिक संकट खड़ा हो गया। यह संकट तब शुरू हुआ जब सरकार ने व्हाट्सऐप, इंस्टाग्राम और यूट्यूब जैसी 26 सोशल मीडिया साइट्स पर बैन लगा दिया। इस फैसले के खिलाफ हजारों युवा और छात्र 8 सितंबर 2025 को काठमांडू और अन्य शहरों में सड़कों पर उतर आए। शुरुआत में विरोध शांतिपूर्ण था लेकिन पुलिस की सख्त कार्रवाई, लाठीचार्ज और गोलीबारी के बाद हालात बिगड़ गए। देशभर में हिंसा फैल गई, कई सरकारी इमारतें और नेताओं के घर जला दिए गए, यहां तक कि काठमांडू में संसद भवन भी आग के हवाले कर दिया गया। हालात इतने गंभीर हो गए कि प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली को 9 सितंबर को इस्तीफा देना पड़ा और सेना ने देश की सुरक्षा अपने हाथ में ले ली। अब भी कई शहरों में कर्फ्यू लगा है और सेना शांति बनाए रखने की कोशिश कर रही है। इस आंदोलन में 22 से ज्यादा लोगों की जान गई और सैकड़ों घायल हुए। आंदोलन की खास बात यह रही कि यह किसी राजनीतिक दल का नहीं बल्कि युवाओं और छात्रों का स्वचालित जनआंदोलन था।
फ्रांसीसी क्रांति (1789 - 1799)
1789 में फ्रांस की आम जनता ने अन्याय और भ्रष्टाचार के खिलाफ बड़ा विद्रोह शुरू किया। यह असंतोष खासकर तीसरे वर्ग (साधारण जनता) के साथ हो रहे अत्याचार, भारी कर और सामाजिक असमानता के कारण पनपा। 14 जुलाई 1789 को पेरिस की जनता ने बास्तील किले पर हमला किया जिसे फ्रांसीसी क्रांति की शुरुआत माना जाता है और आज भी इसे फ्रांस का स्वतंत्रता दिवस मनाया जाता है। इस क्रांति ने राजशाही को खत्म कर दिया और राजा लुई सोलहवें व रानी मैरी अंतोनिएत को मृत्युदंड दिया गया। क्रांति के दौरान ‘मानव और नागरिक अधिकारों की घोषणा’ की गई जिसमें स्वतंत्रता, समानता और बंधुत्व के सिद्धांत स्थापित हुए। इसके बाद फ्रांस में गणराज्य की स्थापना हुई। हालांकि क्रांति का एक दौर बहुत हिंसक रहा जिसे ‘आतंक का शासन’ कहा जाता है जिसमें हजारों लोगों को मौत के घाट उतारा गया। इस क्रांति ने फ्रांस की सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक व्यवस्था को पूरी तरह बदल दिया और लोकतंत्र की नींव मजबूत की।
रूस - अक्टूबर क्रांति (1917)
20वीं सदी में रूस में 1917 की अक्टूबर क्रांति ने पूरी राजनीतिक व्यवस्था बदल दी। पहला विश्व युद्ध रूस के लिए भारी आर्थिक और सामाजिक संकट लेकर आया था। जनता भूख और गरीबी से परेशान थी और सेना में भी असंतोष बढ़ रहा था। मार्च 1917 में सेंट पीटर्सबर्ग (पेट्रोग्राद) में मजदूरों का गुस्सा हिंसक विद्रोह में बदल गया। सैनिकों ने भी जार के आदेश मानने से इनकार कर दिया, जिससे जार निकोलस द्वितीय को मजबूरन पद छोड़ना पड़ा। इसके बाद अक्टूबर 1917 में बोल्शेविक पार्टी ने सत्ता पर कब्जा कर लिया और रूस में समाजवादी शासन की नींव रखी गई। यह क्रांति रूस को राजशाही से निकालकर एक नए समाजवादी युग में ले गई।
ईरान - इस्लामी क्रांति (1979)
1979 में ईरान में हुई इस्लामी क्रांति ने देश की राजनीति पूरी तरह बदल दी। लोग शाह की तानाशाही, बेरोजगारी, बढ़ती असमानता और धार्मिक नाराजगी से परेशान थे। 1978-79 के दौरान लाखों लोगों ने सड़कों पर उतरकर बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन किए। पुलिस और सेना की सख्ती के बावजूद आंदोलन तेज होता गया और आखिरकार फरवरी 1979 में शाह को सत्ता छोड़नी पड़ी। इसके बाद ईरान में इस्लामी गणराज्य की स्थापना हुई और अयातुल्लाह खोमैनी देश के नए नेता बने। इस क्रांति ने पश्चिम समर्थक शाह के शासन का अंत कर दिया और ईरान को एक नए धार्मिक-राजनीतिक दौर में प्रवेश कराया।
बर्लिन की दीवार का गिरना (1989)
1989 में जर्मनी में बर्लिन की दीवार का गिरना दुनिया के इतिहास में एक बड़ा मोड़ साबित हुआ। यह दीवार पूर्वी और पश्चिमी जर्मनी को अलग करती थी और शीत युद्ध के दौरान दो विचारधाराओं के बीच विभाजन का प्रतीक थी। पूर्वी जर्मनी की तानाशाही सरकार द्वारा लोगों की स्वतंत्रता पर लगाए गए प्रतिबंध, राजनीतिक असंतोष और आर्थिक मुश्किलों के कारण जनता का गुस्सा बढ़ता गया। 9 नवंबर 1989 को हजारों लोग दीवार के पास इकट्ठा हुए और विरोध प्रदर्शन करने लगे। इस दौरान गलती से सीमा खोल दी गई, जिससे लोग बड़ी संख्या में पश्चिमी बर्लिन में प्रवेश कर गए। लोगों ने दीवार के हिस्से तोड़ दिए और आजादी का जश्न मनाया। इस घटना के बाद पूर्व और पश्चिम जर्मनी के एकीकरण की प्रक्रिया शुरू हुई और 3 अक्टूबर 1990 को जर्मनी आधिकारिक रूप से एक देश बन गया।
अरब स्प्रिंग (2010 - 2012)
21वीं सदी की सबसे बड़ी जनलहरों में से एक थी अरब स्प्रिंग (2010–2012) जिसने कई अरब देशों की राजनीति हिला दी। ट्यूनीशिया, मिस्र, लीबिया, यमन और सीरिया में लोगों का गुस्सा आर्थिक परेशानियों, भ्रष्टाचार और आज़ादी की कमी के कारण फूटा। 18 दिसंबर 2010 को ट्यूनीशिया के मोहम्मद बउज़ीज़ी ने आत्मदाह किया। जिससे आंदोलन की शुरुआत हुई और ट्यूनीशिया के शासक बेन अली को भागना पड़ा। मिस्र में 2011 की शुरुआत में तहरीर चौक पर लाखों लोग इकट्ठा हुए और सिर्फ 18 दिनों में राष्ट्रपति होस्नी मुबारक को इस्तीफा देना पड़ा। लीबिया, यमन और अन्य देशों में भी हिंसक विरोध के चलते सत्ता बदली, जबकि सीरिया में स्थिति गृहयुद्ध में बदल गई। सोशल मीडिया ने इन आंदोलनों को तेजी से फैलाने और संगठित करने में अहम भूमिका निभाई।
भारत - जेपी आंदोलन (1974 - 1977)
भारत में 1974 से 1977 के बीच चला जेपी आंदोलन देश के इतिहास का बड़ा जनआंदोलन माना जाता है। बिहार में भ्रष्टाचार, महंगाई और बेरोजगारी के खिलाफ छात्रों ने आंदोलन शुरू किया जिसे बाद में जयप्रकाश नारायण ने नेतृत्व दिया और इसे ‘संपूर्ण क्रांति’ का नाम दिया। यह आंदोलन तेजी से पूरे देश में फैल गया और इंदिरा गांधी सरकार के खिलाफ बड़े पैमाने पर प्रदर्शन होने लगे। हालात संभालने के लिए सरकार ने आपातकाल लगा दिया और हजारों लोगों को जेल में डाल दिया। आखिरकार 1977 में हुए आम चुनाव में जनता पार्टी ने ऐतिहासिक जीत हासिल की और पहली बार केंद्र की सत्ता बदली। यह आंदोलन लोकतांत्रिक ढंग से सत्ता परिवर्तन का बड़ा उदाहरण बना।
सर्बिया - बुलडोजर क्रांति (2000)
2000 में सर्बिया में हुई ‘बुलडोजर क्रांति’ एक बड़ा जनआंदोलन था जिसने देश की राजनीति बदल दी। लंबे समय से शासन कर रहे स्लोबोडान मिलोसेविच पर चुनावी धांधली और भ्रष्टाचार के आरोप लगे, जिससे जनता का गुस्सा फूट पड़ा। 29 सितंबर से 5 अक्टूबर 2000 तक चले इस आंदोलन में हजारों लोग सड़कों पर उतर आए और बेलग्रेड की संसद और सरकारी टीवी स्टेशन पर कब्जा कर लिया। प्रदर्शन के दौरान एक बड़े बुलडोजर का इस्तेमाल प्रतीक के रूप में किया गया जिससे इसे ‘बुलडोजर क्रांति’ कहा जाने लगा। आखिरकार बढ़ते जनदबाव के कारण मिलोसेविच को इस्तीफा देना पड़ा और सर्बिया में लोकतंत्र की बहाली हुई।
श्रीलंका आर्थिक संकट आंदोलन (2022)
2022 में श्रीलंका में हुआ यह आंदोलन हाल के इतिहास का एक बड़ा जनसंघर्ष माना जाता है। गंभीर आर्थिक संकट, बढ़ती महंगाई, ईंधन और खाद्य पदार्थों की कमी ने लोगों का जीवन बहुत कठिन बना दिया था। विदेशी मुद्रा खत्म होने, कर्ज बढ़ने और कोविड-19 के बाद पर्यटन में गिरावट से हालात और बिगड़ गए। इन सबके खिलाफ हजारों लोग राजधानी कोलंबो और अन्य शहरों में सड़कों पर उतर आए। 'अरागलया' नाम से चले इस आंदोलन में प्रदर्शनकारियों ने राष्ट्रपति गोटाबाया राजपक्षे के सरकारी आवास तक पर कब्जा कर लिया। कई जगह विरोध हिंसक भी हुआ। जनता के भारी दबाव के कारण राष्ट्रपति देश छोड़कर भाग गए और बाद में नई सरकार बनी। IMF से मदद लेकर संकट से बाहर निकलने की कोशिशें शुरू हुईं।
कज़ाखस्तान विरोध प्रदर्शन (2022)
कजाखस्तान में हाल ही में हुए विरोध प्रदर्शन देश के इतिहास की बड़ी घटनाओं में गिने जाते हैं। यह आंदोलन तब शुरू हुआ जब LPG, जो वहां वाहनों के लिए मुख्य ईंधन है, की कीमत अचानक दोगुनी कर दी गई। महंगाई, आर्थिक असमानता और सरकार से बढ़ते असंतोष ने लोगों का गुस्सा और भड़का दिया। अल्माटी और अन्य बड़े शहरों में हजारों लोग सड़कों पर उतरे और आंदोलन हिंसक हो गया। सरकारी इमारतों में आग लगा दी गई और सुरक्षा बलों के साथ झड़पों में कई लोग मारे गए। दबाव बढ़ने पर राष्ट्रपति कासिम-जोमार्ट टोकायेव ने मंत्रिमंडल समेत पूरी सरकार को इस्तीफा देने के लिए मजबूर कर दिया। आपातकाल घोषित किया गया और सेना की मदद से हालात काबू में किए गए, यहां तक कि रूसी सेना को भी सहायता के लिए बुलाया गया।
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