TRENDING TAGS :
"शांतिपूर्ण प्रदर्शन को पुलिस ने..." नेपाल के 'पूर्व PM के पोते' ने बताया Gen-Z प्रोटेस्ट का असली सच
नेपाल में सोशल मीडिया बैन के खिलाफ शुरू हुआ शांतिपूर्ण आंदोलन हिंसक हो गया, जिसमें 20 से ज्यादा लोगों की मौत हुई। पूर्व PM के.आई. सिंह के पोते यशवंत शाह ने इसे अलोकतांत्रिक बताया और कहा कि सरकार ने जानबूझकर प्रदर्शन को हिंसक बनाया।
Nepal former PM grandson: नेपाल में मची राजनीतिक और सामाजिक उथल-पुथल के बीच एक बड़ा और एक्सक्लूसिव खुलासा सामने आया है। पूर्व प्रधानमंत्री डॉ. के.आई. सिंह के पोते यशवंत भुशाह ने पहली बार नेपाल की भयावह स्थिति पर अपनी राय रखी है। उन्होंने सीधे तौर पर पुलिस पर "अत्यधिक बल प्रयोग" करने का आरोप लगाया और कहा कि जो विरोध प्रदर्शन शांतिपूर्ण होने वाला था, उसे पुलिस की गोलीबारी ने एक खूनी संघर्ष में बदल दिया। उनके इस बयान ने एक बार फिर नेपाल में हो रही हिंसा पर कई सवाल खड़े कर दिए हैं।
भ्रष्टाचार के खिलाफ थी आवाज
यशवंत भुशाह ने बताया कि 8 सितंबर को जो प्रदर्शन शुरू हुआ था, वह सोशल मीडिया बैन के खिलाफ नहीं, बल्कि भ्रष्टाचार के खिलाफ था। उन्होंने कहा कि यह एक बहुत ही शांतिपूर्ण प्रदर्शन था, जिसके लिए काठमांडू के मैतीघर में 12,000 से अधिक लोगों के इकट्ठा होने की योजना थी। लेकिन, जब इतनी बड़ी संख्या में लोग जमा होने लगे, तो सरकार घबरा गई। सरकार को लगा कि यह विरोध सोशल मीडिया पर वायरल हो जाएगा और इससे सत्तारूढ़ दल की छवि खराब होगी। इसी डर से, पुलिस ने अत्यधिक बल का प्रयोग किया।
पुलिस की गोलीबारी और बेकाबू आक्रोश
भुशाह ने कहा कि पुलिस द्वारा बल प्रयोग और गोलीबारी ने "प्रतिक्रियात्मक कार्रवाई" को जन्म दिया। उन्होंने बताया कि पुलिस की गोलीबारी एक गैर-जरूरी कार्रवाई थी, और उन्हें नहीं पता कि किस पुलिस अधिकारी ने गोली चलाने का आदेश दिया। उनके मुताबिक, 20 से ज्यादा लोग मारे गए हैं और 500 से ज्यादा लोग काठमांडू के विभिन्न अस्पतालों में भर्ती हैं। उन्होंने कहा कि निर्दोष जनता पर गोली चलाना दुनिया के किसी भी हिस्से में गैर-लोकतांत्रिक है। पुलिस के इस कदम ने शुरुआती तौर पर सिर्फ Gen Z द्वारा किए जा रहे प्रदर्शन को समाज के सभी वर्गों का समर्थन दिला दिया, जिससे यह आंदोलन और भी बड़ा हो गया।
युवाओं का गुस्सा और सरकार की गलती
यशवंत भुशाह का यह बयान इस बात की पुष्टि करता है कि नेपाल में फैली अशांति सिर्फ एक सोशल मीडिया बैन का नतीजा नहीं है। यह भ्रष्टाचार, बेरोजगारी और सरकार के निरंकुश रवैये के खिलाफ कई सालों से जमा हो रहे गुस्से का परिणाम है। सरकार ने स्थिति को संभालने के बजाय, उस पर काबू पाने के लिए हिंसा का सहारा लिया, जिससे हालात और बिगड़ गए। पूर्व प्रधानमंत्री के पोते का यह एक्सक्लूसिव बयान न सिर्फ नेपाल के लोगों के दर्द को सामने लाता है, बल्कि यह भी दिखाता है कि कैसे एक सरकार ने अपनी छवि बचाने के लिए जनता की जान की परवाह नहीं की। अब यह देखना होगा कि इस खूनी हिंसा की जांच के लिए बनाई जाने वाली समिति क्या निष्कर्ष निकालती है और क्या दोषियों को सजा मिलती है।
AI Assistant
Online👋 Welcome!
I'm your AI assistant. Feel free to ask me anything!