TRENDING TAGS :
दिवाली की रात क्यों जलते हैं दीये? जानिए दो युगों से जुड़ी है भगवान राम और श्रीकृष्ण की कथा
Diwali Ki Kahani in Hindi दीपावली की शुरुआत कब और कैसे हुई? जानिए पांडवों, श्रीकृष्ण, धनतेरस और राम से लेकर कृष्ण तक:जानिए क्यों जलते हैं दीये दिवाली की रात और क्या है इसके पीछे की दो युगों की कथा
Diwali Ki Kahani: दिवाली या दीपावली दीपों का त्योहार यानी खुशियों, रोशनी और उल्लास का त्योहार। यह ऐसा पर्व है जो हर दिल में उत्साह जगा देता है। घर-घर में सफाई होती है, मिठाइयां बनती हैं, दीपक जलते हैं और वातावरण खुशियों से भर जाता है। लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि आखिर दीपावली की शुरुआत कब और कैसे हुई थी? क्यों हर साल हम दीपों की इतनी सुंदर कतारें सजाते हैं? जानते हैं इस त्योहार से जुड़ी कथाएं और धार्मिक मान्यताएं।
दीपावली शब्द का अर्थ और महत्व
‘दीपावली’ शब्द संस्कृत के दो शब्दों से मिलकर बना है – ‘दीप’ यानी दिया या प्रकाश और ‘आवली’ यानी पंक्ति या कतार। इस तरह दीपावली का अर्थ हुआ – दीपों की पंक्ति। इसीलिए इस दिन दीप जलाना, घरों को रोशन करना और हर ओर उजाला फैलाना शुभ माना जाता है।
कहा जाता है कि यह त्योहार अंधकार पर प्रकाश की, बुराई पर अच्छाई की और अज्ञान पर ज्ञान की विजय का प्रतीक है। यही कारण है कि दीपावली सिर्फ एक धार्मिक उत्सव नहीं, बल्कि जीवन में सकारात्मकता जगाने का प्रतीक बन गई है।
दीपावली पर दीप जलाने की परंपरा की शुरुआत कब और कैसे हुई? दिवाली का इतिहास केवल एक युग से नहीं, बल्कि दो अलग-अलग युगों — त्रेता और द्वापर युग से जुड़ा हुआ है। आइए जानते हैं इन दोनों युगों से जुड़ी दिवाली की पौराणिक कथाएं और इनके पीछे का गहरा संदेश।
पांडवों के वनवास से जुड़ी कथा
महाभारत काल से जुड़ी एक प्रसिद्ध कथा के अनुसार दीपावली का संबंध पांडवों के जीवन से भी बताया जाता है। कहते हैं कि जब पांडवों को 13 वर्ष के वनवास की सजा हुई थी, तब उन्हें अपना राज्य छोड़कर जंगलों में रहना पड़ा। जब उनका वनवास पूरा हुआ और वे अपने राज्य हस्तिनापुर लौटे, तो नगरवासियों ने उनके स्वागत में घरों के बाहर दीपक जलाए।
चारों ओर दीपों की रोशनी से पूरा नगर जगमगा उठा। यह खुशी और स्वागत का प्रतीक बन गया। तब से लोगों ने दीप जलाकर सुख, समृद्धि और विजय का संदेश देने की परंपरा शुरू की। यही दिन आगे चलकर दीपावली के रूप में मनाया जाने लगा।
श्रीकृष्ण और नरकासुर की कथा
दीपावली से जुड़ी दूसरी प्रसिद्ध कथा भगवान श्रीकृष्ण और असुर राजा नरकासुर की है।कथा के अनुसार, नरकासुर नामक दैत्य अत्यंत शक्तिशाली था और उसने स्वर्ग लोक से लेकर पृथ्वी तक आतंक मचा रखा था। देवता, ऋषि-मुनि और निर्दोष लोग उसके अत्याचारों से परेशान थे।
नरकासुर को यह वरदान मिला था कि उसकी मृत्यु किसी नारी के हाथों ही होगी। भगवान श्रीकृष्ण ने अपनी पत्नी सत्यभामा की सहायता से इस दैत्य का वध किया। यह घटना कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को हुई थी, जिसे आज हम नरक चतुर्दशी या छोटी दीपावली के रूप में मनाते हैं।
नरकासुर के मारे जाने पर लोगों ने हर्ष व्यक्त किया, घरों में दीप जलाए और प्रसन्नता मनाई। अगले दिन, यानी अमावस्या को, दीपावली का पर्व मनाया गया। यह कथा बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक मानी जाती है।
धनतेरस और धनवन्तरि की कथा
दीपावली से पहले आने वाला दिन धनतेरस कहलाता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, कार्तिक मास की त्रयोदशी तिथि को समुद्र मंथन हुआ था।समुद्र मंथन से सबसे पहले भगवान धनवन्तरि प्रकट हुए थे, जो देवताओं के वैद्य माने जाते हैं। वे अपने हाथों में अमृत का कलश लेकर प्रकट हुए थे।उसी दिन से धनतेरस मनाने की परंपरा शुरू हुई। यह दिन स्वास्थ्य, दीर्घायु और समृद्धि का प्रतीक माना जाता है।
कहा जाता है कि समुद्र मंथन के बाद ही देवी लक्ष्मी का भी प्राकट्य हुआ था। तब देवताओं और ऋषि-मुनियों ने उनके स्वागत में दीप जलाए थे। यही दीप उत्सव बाद में दीपावली के नाम से प्रसिद्ध हुआ।
लक्ष्मी और गणेश पूजा का रहस्य
दीपावली की रात हम सभी घरों में माता लक्ष्मी और भगवान गणेश की पूजा करते हैं। इसके पीछे गहरा अर्थ छिपा है।माता लक्ष्मी धन और समृद्धि की देवी हैं, जबकि भगवान गणेश बुद्धि और विवेक के प्रतीक हैं।ऐसा कहा जाता है कि केवल धन हो लेकिन बुद्धि न हो, तो वह धन टिक नहीं सकता। उसी तरह केवल बुद्धि हो और साधन न हों, तो जीवन कठिन बन जाता है।
इसी कारण दीपावली पर लक्ष्मी-गणेश की संयुक्त पूजा की जाती है, ताकि जीवन में धन और बुद्धि दोनों का संतुलन बना रहे।
भगवान राम की अयोध्या वापसी से जुड़ी प्रसिद्ध कथा
दीपावली की सबसे लोकप्रिय कथा रामायण काल से जुड़ी है।कथा के अनुसार, जब भगवान श्रीराम ने रावण का वध कर सीता माता और भाई लक्ष्मण के साथ 14 वर्ष का वनवास पूरा किया, तब वे अयोध्या लौटे।उनकी वापसी पर पूरे अयोध्या नगर में खुशियों की लहर दौड़ गई। हर घर के बाहर दीपक जलाए गए, गलियों और महलों में सजावट की गई।
उस दिन पूरी अयोध्या नगरी दीपों से जगमगा उठी। इसी दिन को दीपोत्सव के रूप में मनाया गया और तब से हर वर्ष यह परंपरा जारी है।यह दिन अंधकार पर प्रकाश की विजय का प्रतीक बना। भगवान राम की यह कथा आज भी दीपावली के मूल भाव को समझाती है, जब जीवन में अच्छाई, सत्य और धर्म की जीत होती है, तब प्रकाश अपने आप अंधकार को मिटा देता है।
दीपावली केवल एक धार्मिक पर्व नहीं है, बल्कि इसका सामाजिक और आध्यात्मिक महत्व भी है। इस दिन लोग अपने घरों की सफाई करते हैं, पुराना सामान निकालकर नया लाते हैं। यह केवल बाहरी सफाई नहीं, बल्कि मन के अंदर के अंधकार को भी मिटाने का संदेश देता है। दीपावली हमें सिखाती है कि जैसे दीपक अपने आसपास का अंधेरा मिटा देता है, वैसे ही हमें भी अपने भीतर के नकारात्मक विचारों को दूर करके जीवन में उजाला फैलाना चाहिए। दीप जलाने का अर्थ केवल रोशनी फैलाना नहीं, बल्कि आशा, प्रेम, सद्भाव और ज्ञान का प्रकाश फैलाना है।
AI Assistant
Online👋 Welcome!
I'm your AI assistant. Feel free to ask me anything!