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कौन होते हैं कुलदेवता? इनकी पूजा कब और क्यों जरूरी है, कैसे पहचान करें कुलदेवी- देवता, जानें?

Kuldevta Kaun hote hain:कुलदेवता किसे कहते हैं? जानें कुलदेवता की परंपरा, पूजन विधि और पहचान कैसे करें....

Suman  Mishra
Published on: 7 July 2025 6:39 AM IST (Updated on: 7 July 2025 8:33 AM IST)
कौन होते हैं कुलदेवता? इनकी पूजा कब और क्यों जरूरी है, कैसे पहचान करें कुलदेवी- देवता, जानें?
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Kuldevi Kuldevta: अपने आसपास ज्यादातर लोगों के मुहं से सुना होगा या अपने घर में ही मम्मी दादी को कहते सुना होगा की पहले कुल देवता को पूज लें फिर बाकी काम करते हैं। सनातन परंपरा में विरासत में मिलता है कुल देवी देवता की पूजा ।ये कुल देवता होते क्या है, इनकी पूजा क्यों होती है और ये त्रिदेव से कैसे अलग होते है। जानते हैं...

कुलदेवता की सिर्फ पूजा ही नहीं होती, बल्कि ये हमारे धरोहर पूर्वजों की दी हुई परंपरा की है हमारे जड़ में हैं, इससे ही हमारी परंपरा और वंश की पहचान भी होती है।लोग कितना भी मॉर्डन हो जाये लेकिन कुल देवी देवता की पुजाई करना हर परिस्थिति मे अनिवार्य है।

आज के समय लोग भले गांव परंपरा से दूर है, लेकिन कुलदेवता की पूजा आज भी ज्यादातर जगहों पर की जाती है। कई लोग पैतृक गांव जाकर पुजाई देते है तो कई जहां रहते है हीं स्थान देते है।

कुल देवता क्या होते हैं?

कुल देवता वंश या परिवार के मूल संरक्षक देवता होते हैं, इनकी पूजा पीढ़ी दर पीढ़ी की जाती है। ये देवता गोत्र, जाति, या वंश के लोगों की रक्षा करते हैं और उनका मार्गदर्शन करते हैं। ये वो देवता होते हैं जिनकी पूजा परिवार के सदस्य के रूप में की जाती है और जिन्हें परिवार और वंश का रक्षक माना जाता है। कुल देवी-देवता, इष्ट देव से अलग होते हैं, जो व्यक्ति विशेष के आराध्य होते हैं।

कुल देवी-देवता कुलस्थान की वंशानुगत परंपरा

कुल देवी-देवता को परिवार और वंश का रक्षक माना जाता है, और उनकी पूजा से परिवार में सुख, शांति, और समृद्धि आती है।ये देवता पीढी दर पीढ़ी स्थानांतरित होते हैं, माता-पिता से बच्चों को स्थानांतरित होते हैं। पूजा, मंत्र, प्रसाद आदि परिवारों में पीढ़ी-दर-पीढ़ी चलती हैं।अधिकतर कुलदेवता का मंदिर गांव, पहाड़ी या तीर्थस्थल पर होता है, जिसे कुलस्थान या कुलस्थान मंदिर कहा जाता है।एक ही कुल के सभी लोग उस देवता को मानते हैं, चाहे वे कहीं भी बस गए हों।

कुल देवी-देवता की पूजा सदियों से चली आ रही है, और ये माना जाता है कि वे परिवार के पूर्वजों से जुड़े हुए हैं। कुल देवी-देवता की कृपा से वंश और कुल की रक्षा होती है, और परिवार में शुभ और मंगल कार्य होते रहते हैं। कुल देवी-देवता, इष्ट देव से अलग होते हैं। इष्ट देव व्यक्ति विशेष के आराध्य होते हैं, जबकि कुल देवी-देवता पूरे परिवार या वंश के होते हैं।कुल देवी-देवता की पूजा करना, हिंदू और जैन धर्म में बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है, और किसी भी शुभ कार्य को शुरू करने से पहले उनकी पूजा की जाती है।

अपने कुल देवता को कैसे पहचानें?

कुल देवी-देवता की पहचान, परिवार की परंपराओं, गोत्र, या कुंडली के माध्यम से की जा सकती है। कुल देवी-देवता की पूजा, परिवार और वंश की निरंतरता और समृद्धि के लिए महत्वपूर्ण मानी जाती है। कुलदेवता का गोत्र से सीधा संबंध नहीं होता, लेकिन गोत्र आधारित समुदायों में एक ही कुलदेवता के प्रति आस्था मिलती है। जैसे ब्राह्मणों में भारद्वाज गोत्र के लोग एक देवी को कुलदेवी मान सकते हैं। यह भी देखा गया है कि एक ही जाति में उपजातियों के कुलदेवता अलग-अलग हो सकते हैं। अपने घर के बड़ों से पुछ कर कुल देव पहचान सकते है। अगर इनकी निरंतर पूजा न की जाये और न हीं स्थान दिया जाये तो ये नाराज होते है। इसलिए इनकी पूजा का विधान है।

कब की जाती है कुल देवता की पूजा

ऐसा कहते है कि कुलदेवी या कुलदेवता नाराज हो जाते हैं, उस परिवार पर संकट आते हैं। इनकी पूजा हर मांगलिक अवसर पर विवाह, मुंडन, नामकरण, गृह प्रवेश से पहले होती है ,कुलदेवता की पूजा अनिवार्य होती है।कुछ लोग होली, दीपावली, चैत्र आश्विन नवरात्रि पर भी अपने कुलस्थान जाकर पूजा करते है। कुल देव की पूजा में घी, फूल, चावल, नारियल, चुनरी (कुलदेवी के लिए) आदि से पूजन होता है।पूड़ी पुआ का प्रसाद चढ़ाते है।कुलदेवता की पूजा नहीं करने से जीवन में बाधाएं, वंश वृद्धि में रुकावट, और दुर्घटनाएँ हो सकतीहैं। कुछ लोगों का विश्वास है कि कुलदेवता की अनदेखी करने से पितृदोष जैसा प्रभाव भी उत्पन्न हो सकता है।

कुल देवता की पूजा से लाभ

हर परिवार जगह कुल देव की पूजा का अलग अलग विधान है।कुछ लोग पूजन के बाद व्रत रखते हैं तो कई कुलों में बलि प्रथा भी है।आजकल लोग अहिंसा के पथ पर चलने की कोशिश में हो तो ऐसे में आजकल प्रतीकात्मक बली नारियल या कद्दू की दी जाती है।। इस पूजा से पितरों और कुल के बड़े-बुजुर्गों का आशीर्वाद बना रहता है। इनकी पूजा में पारंपरिक मंत्र और लोक गीतों द्वारा आराधना होती है। इसमें परिवार के सभी सदस्य साथ रहते हैं। जो परिवार में एकता भी लाता है। इस पूजा से वंश की उन्नति और समृद्धि बढती है।पितृ दोष और वंश दोष से मुक्ति,गृहकलह और मानसिक अशांति में कमी,शुभ कार्यों में सफलतासंतति प्राप्ति और वंश वृद्धि में सहयोग होता है। अगर आप नहीं जानते अपने कुल देवी देवता के बारे में तो अपने गांव घर के बडों से पता कर सकते है।


नोट : ये जानकारियां धार्मिक आस्था और मान्यताओं पर आधारित हैं। Newstrack.com इसकी पुष्टि नहीं करता है।इसे सामान्य रुचि को ध्यान में रखकर लिखा गया है

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Suman  Mishra

Suman Mishra

एस्ट्रोलॉजी एडिटर

मैं वर्तमान में न्यूजट्रैक और अपना भारत के लिए कंटेट राइटिंग कर रही हूं। इससे पहले मैने रांची, झारखंड में प्रिंट और इलेक्ट्रानिक मीडिया में रिपोर्टिंग और फीचर राइटिंग किया है और ईटीवी में 5 वर्षों का डेस्क पर काम करने का अनुभव है। मैं पत्रकारिता और ज्योतिष विज्ञान में खास रुचि रखती हूं। मेरे नाना जी पंडित ललन त्रिपाठी एक प्रकांड विद्वान थे उनके सानिध्य में मुझे कर्मकांड और ज्योतिष हस्त रेखा का ज्ञान मिला और मैने इस क्षेत्र में विशेषज्ञता के लिए पढाई कर डिग्री भी ली है Author Experience- 2007 से अब तक( 17 साल) Author Education – 1. बनस्थली विद्यापीठ और विद्यापीठ से संस्कृत ज्योतिष विज्ञान में डिग्री 2. रांची विश्वविद्यालय से पत्राकरिता में जर्नलिज्म एंड मास कक्मयूनिकेश 3. विनोबा भावे विश्व विदयालय से राजनीतिक विज्ञान में स्नातक की डिग्री

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