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Lov Kush Jayanti : केवल राम के पुत्र नहीं,बल्कि धर्म,न्याय के प्रतीक, जानें वीरता, भक्ति और पुनर्मिलन की अनोखी रामकथा
Lov Kush Jayanti लव-कुश की जीवन गाथा और उनका आध्यात्मिक महत्व, लव-कुश जयंती पर जानिए माता सीता और बालकों की त्याग-गाथा
लव कुश राम और सीता के पुत्र है, जिनका जन्म वाल्मिकी आश्रम में हुआ था। श्री राम मर्यादा पुरुषोत्तम का प्रतीक है। लव और कुश भगवान राम और माता सीता के ही जुड़वां बच्चे थे। ये दोनों बाल रूप से ही कितने तेजस्वी थे। उत्तर भारत में श्रावण पूर्णिमा के दिन लव-कुश जयंती मनाई जाती है। 9 अगस्त को लव-कुश जयंती मनाई जाएगी। इस दिन रक्षा बंधन का पर्व भी होता है।
लव-कुश जयंती क्यों मनाई जाती है
भगवान श्रीराम के पुत्र लव और कुश के जन्म की खुशी में लव- कुश जयंती मनाई जाती है। धर्मानुसार श्रावण पूर्णिमा के दिन उनके पूर्वज लव और कुश का जन्म हुआ था। लव-कुश की कहानी रामचरित मानस और रामायण के उत्तरकांड में है। है। उत्तरकांड में लव और कुश द्वारा अपने माता-पिता को मिलाने की बहुत ही मार्मिक कथा का वर्णन है। जिसमें राम के अयोध्या लौटने के बाद और सीता की अग्रि परीक्षा की कहानी का वर्णन है
लव-कुश जयंती कैसे मनाते है
ज्यादातर लव- कुश जयंती को उत्तर भारत में मनाया जाता है। उत्तर भारत के कुशवाहा समाज के लोग इस दिन लव-कुश की झांकी निकालते हैं। सिर्फ इतना ही नहीं, बल्कि झांकी के साथ चलते-चलते जयकारे लगाए जाते हैं और पूरे शहर में मिठाइयां भी बांटी जाती है। लोगों में भरपूर उत्साह देखने को मिलता है। भले ही यह त्योहार चुनिंदा समुदायों के बीच मनाया जाता है, लेकिन इससे जुड़ी भावना और श्रद्धा इसके महत्त्व को दर्शाते हैं। यह केवल भगवान राम और उनके परिवार के लिए एक श्रद्धांजलि नहीं है। यह पुनर्मिलन और पारिवारिक मूल्यों के उत्सव का क्षण है।
कौन थे लव-कुश सिर्फ श्री राम के पुत्र या और भी कुछ
लव कुश का जीवन वीरता, पितृभक्ति और मातृभक्ति का एक अनूठा उदाहरण है।श्री राम और माता सीता के पुत्र के अलावा लव और कुश त्रेता युग के महान योद्धा थे, इंद्र और अग्नि के अवतार थे। जब भगवान राम ने प्रजा के मान के लिए अपनी पत्नी गर्भवती माता सीता का त्याग कर दिया था, तब वह वाल्मीकि ऋषि के आश्रम में रहने लगी थीं। वहीं पर लव और कुश का जन्म हुआ। उनका बचपन आश्रम के शांत और प्राकृतिक वातावरण में बीता। सीता माता ने अपने दोनों पुत्रों को मर्यादा, धर्म और सदाचार की शिक्षा दी।महर्षि वाल्मीकि के संरक्षण में अपनी शिक्षा पूरी की। उन्होंने न केवल धनुर्विद्या, शस्त्र विद्या और सभी वेदों का ज्ञान प्राप्त किया, बल्कि अपने गुरु से रामायण की पूरी कथा भी सीखी। वे रामायण को संगीतबद्ध तरीके से गाते थे, जिससे उनकी ख्याति दूर-दूर तक फैल गई थी। वे न केवल धनुष-बाण चलाने में निपुण थे, बल्कि अपनी मां के प्रति असीम प्रेम और गुरु के प्रति अटूट श्रद्धा के लिए भी जाने जाते थे।
लव-कुश माता-पिता के मिलन के प्रतीक
शास्त्रों में लिखा है कि श्रीराम ने अश्वमेध यज्ञ करवाया था, जिसका घोड़ा घूमते हुए वाल्मीकि आश्रम के पास पहुंचा। लव और कुश ने उस घोड़े को पकड़ लिया। जब शत्रुघ्न, लक्ष्मण और भरत जैसे महान योद्धाओं ने घोड़े को छुड़ाने का प्रयास किया, तो लव और कुश ने अपनी वीरता से उन्हें युद्ध में हरा दिया। इस घटना के बाद ही भगवान राम को पता चला कि ये उनके ही पुत्र हैं।र्मभगवान राम ने जब लव और कुश को अपने समक्ष रामायण का गायन करते सुना, तो उनका हृदय भावुक हो गया। बाद में महर्षि वाल्मीकि ने राम को लव और कुश का परिचय दिया, जिसके बाद एक भावुक पुनर्मिलन हुआ।
लव कुश जयंती जीवन में यह प्रेरणा देता है कि कठिन परिस्थितियों में भी धर्म, कर्तव्य और सच्चाई का साथ नहीं छोड़ना चाहिए। उनकी वीरता और ज्ञान ने उन्हें इतिहास में अमर कर दिया।
नोट : ये जानकारियां धार्मिक आस्था और मान्यताओं पर आधारित हैं। Newstrack.com इसकी पुष्टि नहीं करता है।इसे सामान्य रुचि को ध्यान में रखकर लिखा गया है
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