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कौन है मां शैलपुत्री, जानिए सती से शैलपुत्री तक की कथा, नवरात्रि के पहले दिन क्यों होती है पूजा?
Maa shailputri ki katha aur aarti जानिए नवरात्रि के पहले दिन देवी शैलपुत्री पूजा विधि, पौराणिक कथा, स्वरूप, वाहन और मंत्र। कौन है मां दुर्गा का पहला रुप शैलपुत्री
Navratri Katha 2025 : नवरात्रि में देवी की आराधना का महत्व है। इस समय मां दुर्गा के नौ रूपों की आराधना का समय होता है। शारदीय नवरात्रि इस बार 22 सितंबर 2025 से आरंभ होकर 2 अक्टूबर तक चलेगा। नवरात्रि के पहले दिन देवी शैलपुत्री का पूजन करते हैं। उन्हें न केवल शक्ति और संबल की देवी माना जाता है, बल्कि यह उन्हें आराधना के माध्यम से मानसिक और आध्यात्मिक उन्नति भी प्राप्त होती है।
शैलपुत्री का महत्व
आदि शक्ति का पहला रुप शैलपुत्री है इनका शाब्दिक अर्थ है ‘पर्वत की पुत्री’। इन्हें इसलिए शैलपुत्री कहा गया क्योंकि उनका जन्म हिमालय पर्वत की पुत्री के रूप में हुआ। इनके वाहन वृषभ हैं, अतः इन्हें वृषारूढ़ा के नाम से भी जाना जाता है। शैलपुत्री का रूप अत्यंत शांत, दिव्य और आकर्षक है। इनके दाएँ हाथ में त्रिशूल और बाएँ हाथ में कमल स्थित है। त्रिशूल शक्ति, साहस और अधर्मी पर विजय का प्रतीक है, जबकि कमल ध्यान, शांति और आध्यात्मिक चेतना का प्रतीक है।इसलिए नवरात्रि के पहले दिन देवी शैलपुत्री का पूजन किया जाता है।
वन्दे वांच्छितलाभाय चंद्रार्धकृतशेखराम् ।
वृषारूढ़ां शूलधरां शैलपुत्रीं यशस्विनीम् ॥
नवरात्रि की पहली देवी शैलपुत्री की कथा-
कथा मां शैलपुत्री- मां दुर्गा को सर्वप्रथम शैलपुत्री के रूप में पूजा जाता है। हिमालय के वहां पुत्री के रूप में जन्म लेने के कारण उनका नामकरण हुआ शैलपुत्री। इनका वाहन वृषभ है, इसलिए यह देवी वृषारूढ़ा के नाम से भी जानी जाती हैं। इस देवी ने दाएं हाथ में त्रिशूल धारण कर रखा है और बाएं हाथ में कमल सुशोभित है। यही देवी प्रथम दुर्गा हैं। ये ही सती के नाम से भी जानी जाती हैं। उनकी एक मार्मिक कहानी है।
एक बार जब प्रजापति ने यज्ञ किया तो इसमें सारे देवताओं को निमंत्रित किया, भगवान शंकर को नहीं। सती यज्ञ में जाने के लिए विकल हो उठीं। शंकरजी ने कहा कि सारे देवताओं को निमंत्रित किया गया है, उन्हें नहीं। ऐसे में वहां जाना उचित नहीं है।
सती का प्रबल आग्रह देखकर शंकरजी ने उन्हें यज्ञ में जाने की अनुमति दे दी। सती जब घर पहुंचीं तो सिर्फ मां ने ही उन्हें स्नेह दिया। बहनों की बातों में व्यंग्य और उपहास के भाव थे। भगवान शंकर के प्रति भी तिरस्कार का भाव है। दक्ष ने भी उनके प्रति अपमानजनक वचन कहे। इससे सती को क्लेश पहुंचा।
वे अपने पति का यह अपमान न सह सकीं और योगाग्नि द्वारा अपने को जलाकर भस्म कर लिया। इस दारुण दुःख से व्यथित होकर शंकर भगवान ने उस यज्ञ का विध्वंस करा दिया। यही सती अगले जन्म में शैलराज हिमालय की पुत्री के रूप में जन्मीं और शैलपुत्री कहलाईं। पार्वती और हेमवती भी इसी देवी के अन्य नाम हैं। शैलपुत्री का विवाह भी भगवान शंकर से हुआ। शैलपुत्री शिवजी की अर्द्धांगिनी बनीं। इनका महत्व और शक्ति अनंत है।
नवरात्रि के पहले दिन शैलपुत्री की आराधना करने से न केवल आध्यात्मिक बल मिलता है, बल्कि व्यक्ति के जीवन में सकारात्मक ऊर्जा और मंगल की वृद्धि होती है। पूजन के दौरान देवी को त्रिशूल और कमल धारण करते हुए ध्यान से देखना चाहिए। शैलपुत्री की पूजा में नियम और संयम का पालन अत्यंत आवश्यक है। व्रत, ध्यान, और साधना के माध्यम से देवी की कृपा प्राप्त होती है। शैलपुत्री का विवाह भगवान शंकर से हुआ और वे उनकी अर्धांगिनी बनीं। उनके अन्य नाम पार्वती, उमा और हेमवती हैं। हर नाम उनके जीवन के विभिन्न पहलुओं और गुणों को दर्शाता है। शैलपुत्री हमें समर्पण, साहस, प्रेम और आत्मशक्ति का संदेश देती हैं। उनका जीवन और कथा यह सिखाती है कि कठिनाइयों में धैर्य और सत्य के मार्ग पर चलना ही श्रेष्ठ होता है।
माता शैलपुत्री की आरती
शैलपुत्री मां बैल पर सवार, करें देवता जय जयकार।
शिव शंकर की प्रिय भवानी। तेरी महिमा किसी ने ना जानी।।
पार्वती तू उमा कहलावे। जो तुझे सिमरे सो सुख पावे।
ऋद्धि-सिद्धि परवान करे तू। दया करे धनवान करे तू।।
सोमवार को शिव संग प्यारी। आरती तेरी जिसने उतारी।
उसकी सगरी आस पुजा दो। सगरे दुख तकलीफ मिला दो।।
घी का सुंदर दीप जला के। गोला गरी का भोग लगा के।
श्रद्धा भाव से मंत्र गाएं। प्रेम सहित फिर शीश झुकाएं।
जय गिरिराज किशोरी अंबे। शिव मुख चंद्र चकोरी अंबे।।
नोट: इस आर्टिकल में दी गई सभी जानकारी ज्योतिषाचार्यों और पारंपरिक मान्यताओं पर आधारित है। हमारा उद्देश्य केवल आप तक पहुँचाना है। इसे सिर्फ़ सूचना के रूप में लें और किसी भी महत्वपूर्ण निर्णय से पहले अपनी समझ और विशेषज्ञ सलाह अवश्य लें।
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