Navratri 2025 Day 1 Maa Shailputri: मां शैलपुत्री को प्रसन्न करने की पूजा विधि

Navratri 2025 Day 1 Maa Shailputri: 22 सितंबर 2025 से शारदीय नवरात्रि का शुभारंभ हो रहा है। यह पर्व माता दुर्गा के नौ स्वरूपों की उपासना का अवसर है।

Shivani Jawanjal
Published on: 6 Sept 2025 12:53 PM IST
Navratri 2025 Day 1 Maa Shailputri
X

Navratri 2025 Day 1 Maa Shailputri (Photo - Social Media)

Navratri 2025 Day 1 Maa Shailputri: नवरात्रि भारत का एक बहुत ही पवित्र और खास पर्व है जिसमें देवी शक्ति की पूजा की जाती है। यह पर्व साल में चैत्र और शारदीय नवरात्रि के रूप में दो बार आता है । नवरात्रि का पहला दिन जिसे प्रतिपदा कहा जाता है, सबसे खास माना जाता है क्योंकि इसी दिन से शक्ति उपासना की शुरुआत होती है। इस दिन की पूजा केवल धार्मिक महत्व ही नहीं रखती बल्कि यह हमें अनुशासन, सकारात्मक सोच और नई ऊर्जा से भर देती है। पहले दिन लोग देवी की पूजा करके अपने जीवन में अच्छे विचार और शक्ति का स्वागत करते हैं।

आइए विस्तार से जानते हैं कि नवरात्रि के पहले दिन का क्या महत्व है, इस दिन किन देवी की पूजा की जाती है, किस प्रकार की पूजा-विधि अपनाई जाती है और इसका हमारे जीवन पर क्या प्रभाव पड़ता है।

नवरात्रि और उसका महत्व

नवरात्रि का मतलब है ‘नौ रातें’ जिनमें मां दुर्गा के नौ अलग-अलग रूपों की पूजा की जाती है। यह त्योहार शक्ति, साहस और धर्म की बुराई पर जीत का प्रतीक है। पौराणिक कथाओं के अनुसार इन नौ दिनों में देवी दुर्गा ने राक्षस महिषासुर से युद्ध किया और दसवें दिन उसे हराया। इस दिन को विजयादशमी या दशहरा कहते हैं। नवरात्रि हमें यह सिखाती है कि अच्छाई हमेशा बुराई पर जीतती है। इन दिनों में मां दुर्गा के नौ स्वरूपों - शैलपुत्री, ब्रह्मचारिणी, चंद्रघण्टा, कूष्माण्डा, स्कंदमाता, कात्यायनी, कालरात्रि, महागौरी और सिद्धिदात्री की पूजा की जाती है।

पहला दिन - प्रतिपदा का महत्व

नवरात्रि का पहला दिन जिसे प्रतिपदा कहते हैं बहुत शुभ माना जाता है क्योंकि इसी दिन से नवरात्रि की शुरुआत होती है। इस दिन कलश स्थापना या घट स्थापना की जाती है, जो पूरे नवरात्रि पर्व का सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा है। इसे करने से घर में सकारात्मक ऊर्जा आती है और देवी शक्ति का आह्वान होता है। पौराणिक कथाओं के अनुसार, प्रतिपदा के दिन ब्रह्मा जी ने सृष्टि की रचना की थी। इसलिए इस दिन मां दुर्गा की पूजा करने से शुभता, नई ऊर्जा और नए आरंभ का आशीर्वाद मिलता है।

पहले दिन पूजित देवी का रूप


नवरात्रि के पहले दिन माता शैलपुत्री की पूजा की जाती है। वे पर्वतराज हिमालय की पुत्री हैं और शक्ति का प्रथम स्वरूप मानी जाती हैं। शैलपुत्री का अर्थ है पर्वतराज हिमालय की पुत्री। उनका वाहन बैल है जिनके दाहिने हाथ में त्रिशूल और बाएं हाथ में कमल का फूल होता है। उनका यह रूप शक्ति, धैर्य और संयम का प्रतीक है इसलिए नवरात्रि की शुरुआत में उनकी पूजा करना विशेष शुभ माना जाता है। मां शैलपुत्री की पूजा से साहस, धैर्य और आत्मबल बढ़ता है। माना जाता है कि उनकी आराधना से जीवन में स्थिरता आती है, कष्ट दूर होते हैं और मनोकामनाएं पूरी होती हैं। माँ शैलपुत्री की आराधना करने से मूलाधार चक्र जागृत होता है जिससे मानसिक शांति और सुरक्षा मिलती है।

माता शैलपुत्री की कथा

माता शैलपुत्री का जन्म सती के रूप में हुआ था। सती ने अपने पिता दक्ष के यज्ञ में भगवान शिव का अपमान सहकर योगाग्नि में देह त्याग दी थी। अगले जन्म में वे हिमालय के घर में शैलपुत्री के रूप में पैदा हुईं और कठोर तप से फिर भगवान शिव को पति रूप में प्राप्त किया। वे नवदुर्गाओं में पहला स्वरूप मानी जाती हैं। उनकी पूजा से जीवन में शांति, स्थिरता और सुख-समृद्धि मिलती है। माता शैलपुत्री शक्ति, करुणा, धैर्य और इच्छाशक्ति का प्रतीक हैं। यह कथा शिव महापुराण और देवी भागवत जैसे धार्मिक ग्रंथों में विस्तृत रूप से वर्णित है।

शुभ रंग

पहले दिन का रंग सफेद (White) होता है। सफेद रंग शांति, शुद्धता और पवित्रता का प्रतीक है। इस दिन सफेद रंग के कपड़े पहनकर पूजा करना शुभ माना जाता है।

माता शैलपुत्री का प्रिय प्रसाद


माता शैलपुत्री को शुद्ध देसी घी का भोग बहुत प्रिय है। पूजा के बाद घी अर्पित करके इसे प्रसाद के रूप में बांटना शुभ माना जाता है। मां को सफेद रंग बहुत पसंद है इसलिए सफेद रंग की मिठाइयाँ जैसे खीर, मिश्री, नारियल की बर्फी और सफेद फल चढ़ाना भी मंगलकारी होता है। इसके अलावा पूजा में सफेद वस्त्र और सफेद फूल चढ़ाए जाते हैं। यह परंपरा पूजा को सफल बनाती है और भक्तों को माता की विशेष कृपा मिलती है।

मंत्र और प्रार्थना

नवरात्रि के पहले दिन मां शैलपुत्री के मंत्र "ॐ देवी शैलपुत्र्यै नमः" का जाप बहुत शुभ माना जाता है। इसे 108 बार जपने से मन को शांति, शक्ति और आध्यात्मिक बल मिलता है। इसके अलावा "ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे ॐ शैलपुत्री देव्यै नमः" जैसे मंत्रों का जप भी किया जाता है। श्रद्धा और सही उच्चारण के साथ मंत्र जाप करने से जीवन में सकारात्मकता और मां की कृपा मिलती है।

घट स्थापना का महत्व

नवरात्रि के पहले दिन घट स्थापना का खास महत्व होता है। इसे मां दुर्गा की शक्ति का प्रतीक माना जाता है। कलश स्थापना के जरिए देवी मां का आवाहन किया जाता है और इसे सुख, समृद्धि और शांति का प्रतीक माना जाता है। इस दिन पूजा स्थल को शुद्ध करके मिट्टी के पात्र में जौ बोए जाते हैं और कलश में जल, सुपारी, सिक्का और दूर्वा डालकर उस पर नारियल और आम के पत्ते सजाए जाते हैं। दीपक जलाकर मंत्रोच्चारण के साथ मां दुर्गा का स्वागत किया जाता है। जौ के अंकुर अच्छे परिणाम और पूरे साल की शुभता का संकेत माने जाते हैं।

घटस्थापना का मुहूर्त

नवरात्रि के पहले दिन घटस्थापना का विशेष महत्व है। शास्त्रों के अनुसार घटस्थापना प्रतिपदा तिथि के शुभ चौघड़िए में करनी चाहिए। 22 सितंबर 2025 को घटस्थापना के लिए सबसे शुभ समय सुबह 06:09 बजे से 08:06 बजे तक है। यदि इस समय घटस्थापना न हो सके तो दिन में अभिजीत मुहूर्तदोपहर 11:49 बजे से 12:38 बजे तक भी शुभ माना जाता है। नवरात्रि के पहले दिन प्रतिपदा तिथि पर इसी शुभ समय में कलश स्थापना करके मां दुर्गा की पूजा करने से घर में सुख-समृद्धि और सकारात्मक ऊर्जा आती है।

पूजा में प्रयुक्त सामग्री

तांबे या मिट्टी का कलश

गंगाजल

सुपारी, सिक्का, दूर्वा

नारियल और आम के पत्ते (या अशोक के पत्ते)

लाल वस्त्र या कपड़ा

अक्षत (चावल)

दीपक और घी

फूल, धूप, कुमकुम

फल और नैवेद्य

घटस्थापना और पूजन विधि

सबसे पहले प्रातःकाल स्नान आदि करके शुद्ध वस्त्र पहनें।

पूजा स्थल पर साफ जगह पर मिट्टी डालकर उसमें जौ या गेहूं बोएं।

उस मिट्टी के पात्र में जल से भरा कलश स्थापित करें।

कलश के ऊपर नारियल तथा आम या अशोक के पत्ते रखें।

कलश पर रोली, अक्षत और स्वस्तिक का चिन्ह बनाएं।

दीपक जलाकर मां शैलपुत्री का ध्यान करें और दुर्गा सप्तशती या देवी कवच का पाठ करें।

पूजा में फूल, धूप, दीप, फल और नैवेद्य अर्पित करना शामिल है।

दिनभर मां का ध्यान एवं व्रत रखें या फलाहार ग्रहण करें।

पहले दिन का भोजन और व्रत

नवरात्रि के पहले दिन व्रत रखने वाले लोग सुबह स्नान कर संकल्प करे और सात्विक भोजन ग्रहण करे । इस दिन प्याज, लहसुन और मांसाहार नहीं खाना चाहिए । फल, दूध, दही, सिंघाड़े का आटा, साबूदाना और कुट्टू के आटे से बने व्यंजन खाना लाभकारी होता है। दिन भर मां दुर्गा के भजन-कीर्तन गाए जाते हैं और ध्यान लगाया जाता है। यह व्रत शरीर और मन को शक्ति देता है और आध्यात्मिक प्रगति में मदद करता है।

1 / 9
Your Score0/ 9
Admin 2

Admin 2

Next Story

AI Assistant

Online

👋 Welcome!

I'm your AI assistant. Feel free to ask me anything!