TRENDING TAGS :
भाग्य या मेहनत?, सफलता के लिए क्या ज़्यादा ज़रूरी है, प्रेमानंद जी महाराज ने हटाया इस सच से पर्दा
Bhagya Aur Mehnat me Kaun Bada :क्या परिश्रम से सब कुछ पाया जा सकता है या भाग्य पहले से तय है? संत प्रेमानंद जी महाराज बताते हैं कि किस तरह ईश्वर का नाम आपके जीवन की दिशा बदल सकता है। यह लेख कर्म, श्रद्धा और आत्मबल को एक नई दृष्टि देता है।
Bhagya Aur Mehnat me Kaun Bada कहते है होगा वहीं जो ईश्वर ने रच दिया है। लेकिन कभी अथक परिश्रम से हम भाग्य का लेखा मिटाने में कामयाब है तो कभी कभी सबकुछ करने पर भी हाथ कुछ नहीं आता है। क्या आपने कभी सोचा है कि मेहनत करने के बाद भी कई बार हाथ खाली क्यों रह जाते हैं? जबकि कुछ लोग बिना ज़्यादा संघर्ष के सब कुछ पा लेते हैं। क्या वाकई मेहनत ही सब कुछ है? या फिर इंसान की किस्मत ही उसका रास्ता तय करती है? ऐसा ही सवाल एक दिन एक भक्त ने संत प्रेमानंद जी महाराज से किया।
एक व्यक्ति ने झुककर पूछा —“महाराज जी, कृपा करके बताइए, जीवन में सफलता पाने के लिए क्या ज़्यादा ज़रूरी है — मेहनत या भाग्य?”“क्या मेहनत से ही सब कुछ हासिल होता है, या फिर वही मिलता है जो किस्मत में लिखा है?”
प्रेमानंद जी ने शांत भाव से बोले —
“बेटा, परिश्रम और भाग्य दोनों ज़रूरी हैं। लेकिन सच्चाई ये है कि अगर भाग्य प्रबल हो, तो तुम्हें सफलता से कोई नहीं रोक सकता। और अगर भाग्य में रुकावट हो, तो कितनी भी मेहनत कर लो, हाथ खाली ही रहेंगे।”
उन्होंने कहा —
“बहुत से लोग होते हैं जो दिन-रात एक कर मेहनत करते हैं, लेकिन उन्हें वह फल नहीं मिल पाता जिसकी उन्होंने अपेक्षा की। वहीं कुछ लोग ऐसे भी होते हैं जिनका भाग्य साथ देता है और उन्हें सब कुछ सहजता से मिल जाता है।”
“इसलिए अगर सच में चाहो कि तुम्हारा भाग्य बदले, तो मेहनत के साथ एक चीज़ और ज़रूरी है — भगवान का नाम।”“सच्चे मन से किया गया नाम स्मरण ही ऐसा एकमात्र उपाय है, जो तुम्हारे भाग्य की लकीरें तक बदल सकता है।”
प्रेमानंद जी ने साफ शब्दों में समझाया —
“भाग्य कोई किताब की तरह है, जो ईश्वर ने पहले ही लिख दी है। इसे कोई मिटा नहीं सकता। हां, अगर तुम अपने आचरण से, श्रद्धा से, और भक्ति से ईश्वर को प्रसन्न कर सको, तो वही भाग्य भी तुम्हारे अनुकूल हो जाता है।”
उन्होंने आगे कहा —
“संसार में कुछ भी स्थायी नहीं है। केवल ईश्वर का नाम ही ऐसा है, जो तुम्हारे दुर्भाग्य को सौभाग्य में बदल सकता है। और यही नाम, तुम्हारे प्रयासों को सार्थक बना देता है।”
प्रेमानंद जी के अनुसार —
जो प्रभु का नाम लेकर जीवन जीता है, वो कभी खाली नहीं लौटता।जो भाग्य को भगवान के भरोसे छोड़ देता है, उसका भाग्य खुद उसके लिए रास्ते बनाता है।जो केवल मेहनत में उलझा रहता है और प्रभु को भूल जाता है, उसका जीवन अक्सर थकावट से भर जाता है।संत प्रेमानंद जी महाराज सिर्फ भाग्य और मेहनत की बात नहीं करते थे। वे जीवन की संपूर्णता को समझाते थे। वे कहते थे“मनुष्य को मेहनत करनी चाहिए, लेकिन उसके साथ मन को भी साधना चाहिए। अगर मन अशांत है, तो बाहर की कोई सफलता टिक नहीं सकती।”
वे कहते थे —“मन को नियंत्रित कर लो, तो संसार की कोई चीज़ तुम्हें नहीं डिगा सकती। सुख-दुख का कारण बाहर नहीं, बल्कि तुम्हारे मन में ही है।”“सच्ची भक्ति वही है जो बिना किसी स्वार्थ के हो। सेवा, प्रेम और करुणा से किया गया भजन ही प्रभु तक पहुँचने का मार्ग है।”उनका मानना था प्रेम से जीवन जीने वाला कभी भी अकेला नहीं होता। जो दूसरों के साथ प्रेमपूर्वक व्यवहार करता है, वही सच्चा भक्त है।जिसे संतोष मिल गया, उसे सब कुछ मिल गया। जिसके पास संतोष नहीं, वो राजा होकर भी भिखारी है।
प्रेमानंद जी जीवन को किसी किताब की तरह नहीं, बल्कि एक चलती हुई साधना मानते थे। वे हर किसी से कहते थे ईश्वर को मंदिरों में मत ढूंढ़ो। उसे ढूंढ़ना है तो भूखे को खाना खिलाओ, दुखी का हाथ पकड़ो, किसी का आंसू पोछ दो — वहां तुम्हें साक्षात प्रभु मिल जाएंगे।
भगवान की सच्ची पूजा वह नहीं जो घंटों तक की जाए, बल्कि वह जो दूसरों के जीवन में रोशनी लाए। प्रेमानंद जी का जीवन एक खुली किताब की तरह था, जिसमें हर पन्ने पर सेवा, भक्ति, सच्चाई और सरलता लिखी थी। उन्होंने कभी भी ऊंची-ऊंची बातें नहीं कीं। उनकी वाणी से निकले शब्द सीधे दिल में उतरते थे। शायद इसलिए, जो एक बार उनकी बात सुनता, उसका जीवन बदलने लगता।
उनके अनुसार, अगर कोई इंसान सच्चे मन से ईश्वर का नाम जपता है, श्रद्धा से सेवा करता है और दूसरों के प्रति करुणा रखता है, तो उसका भाग्य उसके लिए नई राह बनाता है। मेहनत तब सार्थक होती है जब वह भक्ति के भाव से जुड़ी होती है।
तो अगर आज आपके मन में भी यही सवाल है कि मेहनत ज़्यादा ज़रूरी है या भाग्य, तो जवाब सरल है — दोनों ज़रूरी हैं, लेकिन भाग्य को बदलने की कुंजी सिर्फ प्रभु के नाम में है।जिसने इस बात को समझ लिया, उसके लिए सफलता कोई लक्ष्य नहीं, एक क्रिया बन जाती है।
नोट : ये जानकारियां धार्मिक आस्था और मान्यताओं पर आधारित हैं। Newstrack.com इसकी पुष्टि नहीं करता है।इसे सामान्य रुचि को ध्यान में रखकर लिखा गया है
AI Assistant
Online👋 Welcome!
I'm your AI assistant. Feel free to ask me anything!