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EV बैटरियों को मिलेगी आधारकार्ड जैसी डिजिटल पहचान, बैटरी पासपोर्ट से बदलेगा पूरा खेल, जानिए क्यों है जरूरी?

EV Batteries Digital Identity: 'बैटरी पासपोर्ट सिस्टम' एक डिजिटल प्रणाली है जिसके तहत प्रत्येक EV बैटरी को एक यूनिक डिजिटल पहचान दी जाएगी।

Jyotsna Singh
Published on: 11 July 2025 9:40 AM IST (Updated on: 11 July 2025 9:40 AM IST)
EV Batteries will get Digital Identity
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EV Batteries will get Digital Identity (Image Credit-Social Media)

EV Batteries will get Digital Identity: भारत में इलेक्ट्रिक वाहनों की मांग जिस तेजी से बढ़ रही है, उसी अनुपात में बैटरी की गुणवत्ता, सुरक्षा और पुनर्चक्रण की पारदर्शिता को लेकर चिंता भी बढ़ी है। ऐसे में 'बैटरी पासपोर्ट सिस्टम' एक बेहद महत्वपूर्ण एडवांस टेक्निकल सिस्टम के रूप में सामने आ रहा है। यह एक डिजिटल प्रणाली है जिसके तहत प्रत्येक EV बैटरी को एक यूनिक डिजिटल पहचान दी जाएगी। जिसे QR कोड के जरिए स्कैन किया जा सकेगा। इस पासपोर्ट में बैटरी की उत्पत्ति, निर्माण प्रक्रिया, रासायनिक संरचना, प्रदर्शन विवरण और रीसाइक्लिंग स्टेटस जैसी जानकारियां समाहित होंगी। इस जानकारी को ग्राहक, निर्माता, सरकार और तकनीकी विशेषज्ञ आवश्यकता अनुसार आसानी से एक्सेस कर सकेंगे। जिससे EV बैटरी को लेकर पारदर्शिता और जवाबदेही में उल्लेखनीय वृद्धि होगी।

कैसे करेगा यह सिस्टम काम और क्या होगा इसका स्वरूप


बैटरी पासपोर्ट को डिजिटल आधार की तरह समझा जा सकता है। जो प्रत्येक बैटरी को एक पहचान प्रदान करता है। जैसे आधार कार्ड से व्यक्ति की जानकारी एक क्लिक में उपलब्ध हो जाती है, वैसे ही बैटरी पासपोर्ट से बैटरी की संपूर्ण जानकारी तुरंत सामने आ जाएगी। QR कोड के जरिये स्कैन करते ही पता चल जाएगा कि बैटरी कब और कहां बनी, उसमें किस प्रकार की केमिकल संरचना है, कितनी बार चार्ज की गई है, उसका प्रदर्शन कैसा रहा है और क्या वह दोबारा उपयोग या रिसायक्लिंग योग्य है। यह सिस्टम EV सर्विस सेंटर पर मौजूद टेक्नीशियन के लिए भी मरम्मत में मददगार होगा, जबकि ग्राहक के लिए विश्वास और सुरक्षा का एक प्रमाण बन जाएगा।

यूरोपीय मॉडल से भारत ने ली प्रेरणा

बैटरी पासपोर्ट की अवधारणा नई नहीं है। यूरोपीय संघ ने इसे 2027 से 2 किलोवॉट घंटे से अधिक क्षमता वाली बैटरियों के लिए अनिवार्य करने का निर्णय लिया है। भारत का प्रस्तावित सिस्टम इसी यूरोपीय मॉडल से प्रेरित है, जिसमें आपूर्ति श्रृंखला की पूरी जानकारी, कच्चे माल से लेकर रीसाइक्लिंग तक दर्ज की जाती है। भारत यदि इसे अपनाता है, तो EV बैटरी निर्माण में वैश्विक मानकों को अपनाकर अपनी बैटरियों को अंतरराष्ट्रीय बाजारों में प्रतिस्पर्धी बना सकेगा। इससे भारत को निर्यात में बढ़त मिलेगी और 'मेक इन इंडिया' को नई दिशा मिलेगी।

ये सिस्टम बैटरी स्वैपिंग नीति में कैसे आएगा काम


भारत सरकार जल्द ही बैटरी स्वैपिंग नीति को लागू करने की तैयारी कर रही है, जिसमें उपभोक्ता अपनी डिस्चार्ज बैटरी को चार्ज बैटरी से तुरंत बदल सकेंगे। लेकिन इस प्रक्रिया में बैटरियों की गुणवत्ता, सुरक्षा और ट्रैकिंग की चुनौती सामने आएगी। बैटरी पासपोर्ट सिस्टम इस चुनौती का समाधान है, क्योंकि हर बैटरी की डिजिटल प्रोफाइल पहले से उपलब्ध होगी। इससे स्वैपिंग स्टेशनों पर बैटरियों की पहचान, स्थिति और उपयोग का इतिहास तत्काल ज्ञात हो सकेगा। जिससे ग्राहकों को बेहतर और सुरक्षित सेवा मिल सकेगी।

पर्यावरणीय प्रभाव और सस्टेनेबिलिटी को मिलेगा बल

EV बैटरियों में प्रयुक्त धातुएं और रसायन यदि बिना सुरक्षित प्रबंधन के फेंक दिए जाएं तो पर्यावरण को भारी नुकसान हो सकता है। बैटरी पासपोर्ट से यह सुनिश्चित किया जा सकेगा कि कोई भी बैटरी रीसायक्लिंग या सुरक्षित निष्पादन (Performance) प्रक्रिया से गुजरे बिना नष्ट न हो। इससे एक सर्कुलर इकोनॉमी का निर्माण होगा। जिसमें पुरानी बैटरियों से पुनः कच्चा माल निकाला जा सकेगा और पर्यावरणीय नुकसान को काफी हद तक रोका जा सकेगा। यह कदम कार्बन न्यूट्रैलिटी और हरित विकास के लक्ष्यों के अनुरूप होगा।

EV उद्योग को मिलेगा वैश्विक प्रतिस्पर्धा में बढ़त

भारत के EV निर्माण उद्योग को अभी वैश्विक स्तर पर प्रमाणिकता और ट्रेसबिलिटी की चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। बैटरी पासपोर्ट इन दोनों क्षेत्रों में समाधान पेश करता है। जब भारत में बनी बैटरियों की पूरी जानकारी डिजिटल रूप में प्रमाणित होगी, तो अंतरराष्ट्रीय कंपनियां और सरकारें इन पर भरोसा कर सकेंगी। इससे भारतीय निर्माताओं को निर्यात में आसानी होगी और ‘मेक इन इंडिया’ ब्रांड को मजबूती मिलेगी। साथ ही, यह भी सुनिश्चित होगा कि केवल सुरक्षित और उच्च गुणवत्ता की बैटरियां ही वाहन उद्योग में उपयोग की जाएं।

स्टार्टअप्स और टेक्नोलॉजी कंपनियों के लिए नए अवसर


बैटरी पासपोर्ट केवल एक नियामक व्यवस्था नहीं है, बल्कि एक संभावनाओं से भरा टेक्नोलॉजिकल इकोसिस्टम है। डेटा एनालिटिक्स, रीयल-टाइम मॉनिटरिंग, IoT, ब्लॉकचेन, बैटरी हेल्थ ट्रैकिंग जैसे क्षेत्रों में अब नए स्टार्टअप्स और इनोवेशन की आवश्यकता होगी। इससे युवाओं और टेक्नोक्रेट्स के लिए रोजगार के नए रास्ते खुलेंगे और भारत तकनीकी आत्मनिर्भरता की दिशा में एक और कदम आगे बढ़ाएगा।

संभावित चुनौतियां और उनका समाधान

इस प्रणाली को लागू करने में कई तकनीकी और लॉजिस्टिक चुनौतियां सामने आ सकती हैं, जैसे छोटे निर्माताओं की तैयारी, QR कोड से छेड़छाड़ की संभावना या उपभोक्ता की गोपनीयता से जुड़ी चिंताएं। इनका समाधान तकनीकी नवाचार, स्पष्ट गाइडलाइन, मजबूत साइबर सिक्योरिटी और प्रशिक्षण के माध्यम से किया जा सकता है। यदि सरकार सभी हितधारकों को साथ लेकर चले, तो यह सिस्टम बिना किसी बाधा के प्रभावी रूप से लागू किया जा सकता है।

नीति आयोग और मंत्रालयों की भूमिका

नीति आयोग इस प्रस्ताव को आकार देने के लिए केंद्रीय भारी उद्योग मंत्रालय, पर्यावरण मंत्रालय, सड़क परिवहन मंत्रालय और अन्य तकनीकी निकायों से विचार-विमर्श कर रहा है। सरकार की योजना है कि 2025 के अंत तक इस प्रणाली को चरणबद्ध तरीके से लागू किया जाए। प्रारंभिक चरण में इसे पायलट रूप में कुछ चुनिंदा बैटरी निर्माताओं और EV कंपनियों के साथ शुरू किया जाएगा और फिर धीरे-धीरे पूरे देश में अनिवार्य किया जाएगा।

बैटरी पासपोर्ट-Battery

आत्मनिर्भरता, सुरक्षा और नवाचार की ओर एक ठोस कदम

बैटरी पासपोर्ट सिस्टम केवल एक डिजिटल ट्रैकिंग प्लेटफॉर्म नहीं है। यह भारत की तकनीकी प्रगति, सुरक्षा जागरूकता और वैश्विक नेतृत्व की दिशा में एक निर्णायक कदम है। इससे न केवल उपभोक्ता को भरोसेमंद उत्पाद मिलेंगे, बल्कि देश में पारदर्शी और उत्तरदायी EV इकोसिस्टम का निर्माण होगा। यदि इसे सही ढंग से लागू किया गया, तो यह भारत को बैटरी और इलेक्ट्रिक वाहनों के वैश्विक मानचित्र पर एक अग्रणी राष्ट्र के रूप में स्थापित कर सकता है।

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