Bihar Politics: बिहार में बदली कांग्रेस की चाल: वापसी की कोशिश या सियासी मजबूरी? बदलती रणनीति के पीछे क्या है असली कहानी

Bihar Politics: बिहार की सियासत एक बार फिर करवट ले रही है, लेकिन इस बार नरेन्द्र मोदी की लहर, नीतीश कुमार की पैंतरेबाज़ी या लालू यादव की विरासत नहीं बल्कि सुर्खियों में है कांग्रेस की बदली हुई बोली और बदली हुई सोच।

Harsh Srivastava
Published on: 15 May 2025 4:06 PM IST
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Bihar Politics: बिहार की सियासत एक बार फिर करवट ले रही है, लेकिन इस बार नरेन्द्र मोदी की लहर, नीतीश कुमार की पैंतरेबाज़ी या लालू यादव की विरासत नहीं बल्कि सुर्खियों में है कांग्रेस की बदली हुई बोली और बदली हुई सोच। कभी देश की सबसे ताकतवर पार्टी रही कांग्रेस, बिहार की राजनीति में लंबे समय से पीछे छूट चुकी थी। लेकिन अब हवा में कुछ नया है। मंच से उठ रही आवाज़ें, ज़मीन पर हो रही सभाएं और बदलते बयानों का लहजा बता रहा है कि कांग्रेस वापसी की राह पर है या शायद वापसी का भ्रम रचने में जुटी है। पार्टी के नेताओं की जुबान में अब नर्म सेकुलरिज्म की जगह तेज तर्रार सामाजिक न्याय की मांग सुनाई देने लगी है। दलित-पिछड़े, मुस्लिम और युवा वर्ग की तरफ कांग्रेस की झुकाव अचानक नहीं है ये एक सुनियोजित सोशल इंजीनियरिंग का हिस्सा है।

क्या बदला है कांग्रेस की रणनीति में?

पार्टी अब बिहार में केवल धर्मनिरपेक्षता और विकास की बात नहीं कर रही, बल्कि जातीय जनगणना, आर्थिक असमानता और सामाजिक हिस्सेदारी जैसे मुद्दों को ज़ोरशोर से उठाने लगी है। कांग्रेस के स्टेट प्रेसीडेंट्स से लेकर ज़िला स्तर के कार्यकर्ताओं तक को टारगेटेड जातीय और वर्ग आधारित राजनीति का पाठ पढ़ाया जा रहा है। राहुल गांधी की यात्राओं, प्रियंका गांधी के भाषणों और तेजस्वी यादव के साथ मेल-जोल सबका मकसद साफ़ है: बीजेपी की हिंदुत्व राजनीति को सामाजिक न्याय के नए नैरेटिव से काटना।

क्या भाजपा को है इसकी फिक्र?

बीजेपी चुप है, लेकिन चिंतित ज़रूर है। उसकी सियासी पकड़ भले मज़बूत हो, लेकिन कांग्रेस की यह नई चाल पुराने वोट बैंक में सेंध लगा सकती है खासकर शहरी मुसलमानों, युवाओं और गरीब पिछड़े तबकों में। बीजेपी ने अब तक राष्ट्रवाद और मंदिर एजेंडे से चुनावों को साधा है, लेकिन कांग्रेस के नए समाजिक समीकरण के सामने यह कार्ड बार-बार काम नहीं आ सकता खासकर जब विपक्ष जातीय गणना और हिस्सेदारी जैसे मुद्दों को लेकर एक सुर में बोल रहा हो।

वास्तविकता या भ्रम?

हालांकि सवाल यह भी है कि क्या कांग्रेस की यह बदली हुई भाषा जनता के दिलों में उतर पाएगी? पिछले एक दशक में बिहार के मतदाता तेजी से राजनीतिक रूप से परिपक्व हुए हैं। उन्हें केवल वायदे नहीं, विश्वास चाहिए। क्या कांग्रेस के पास ऐसा चेहरा है जो बिहार के मतदाता को भरोसा दिला सके? क्या यह रणनीति जमीन पर वोट में तब्दील हो पाएगी, या यह केवल ट्विटर और प्रेस रिलीज़ तक सीमित रहेगी?

कांग्रेस की यह सियासी ‘रीब्रांडिंग’ दिलचस्प है यह सिर्फ हार से उबरने की कोशिश नहीं, बल्कि बीजेपी के नैरेटिव को चुनौती देने का खुला ऐलान है। सवाल अब यही है कि बिहार की जनता क्या इस नए रूप की कांग्रेस को मौका देगी, या फिर यह बदलाव भी महज़ एक मजबूरी की मार्केटिंग बनकर रह जाएगा?

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Harsh Srivastava

News Cordinator and News Writer

Harsh Shrivastava is an enthusiastic journalist who has been actively writing content for the past one year. He has a special interest in crime, politics and entertainment news. With his deep understanding and research approach, he strives to uncover ground realities and deliver accurate information to readers. His articles reflect objectivity and factual analysis, which make him a credible journalist.

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