Lizard Farming: इन देशों में छिपकलियों की खेती कर लोग कमा रहे हैं करोड़ों, जानें पूरा सच और तरीका

Lizard breeding business: छिपकलियों की खेती जितनी अजीब लगती है, उतनी ही वैज्ञानिक और आर्थिक दृष्टि से उपयोगी भी है।

Shivani Jawanjal
Published on: 22 Oct 2025 11:31 AM IST
Lizard Farming: इन देशों में छिपकलियों की खेती कर लोग कमा रहे हैं करोड़ों, जानें पूरा सच और तरीका
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Pic Credit - Social Media

How to do lizard farming: प्रकृति में हर जीव का अपना महत्व होता है - चाहे वह छोटा हो, बड़ा हो या दिखने में डरावना। हममें से ज्यादातर लोग छिपकली (Lizard) को देखकर घबरा जाते हैं और उसे घर से भगाने की कोशिश करते हैं। लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि यही छिपकली कुछ लोगों के लिए आय और शोध का एक बड़ा जरिया बन चुकी है? जी हाँ, आज दुनिया के कई देशों में छिपकली की खेती (Lizard Farming) की जा रही है। आइए जानते हैं कि आखिर छिपकली की खेती क्या होती है, क्यों की जाती है और यह कैसे धीरे-धीरे 'बिजनेस का नया चेहरा' बन रही है।

छिपकली की खेती क्या है?

छिपकली की खेती का मतलब होता है – छिपकलियों को एक नियंत्रित और सुरक्षित वातावरण में वैज्ञानिक तरीके से पालना और उनका प्रजनन करवाना। इस खेती का मुख्य उद्देश्य उनकी संख्या बढ़ाना और उनसे जुड़े उत्पादों का उपयोग औषधीय या व्यावसायिक रूप में करना होता है। इसमें छिपकलियों को कृत्रिम या प्राकृतिक माहौल में रखा जाता है, जहाँ उन्हें पर्याप्त भोजन, तापमान और सुरक्षा मिलती है। आमतौर पर यह खेती उन प्रजातियों की की जाती है जिनकी त्वचा, मांस या औषधीय गुणों की काफी मांग होती है जैसे मॉनिटर लिज़र्ड (Monitor Lizard), टोके गेको (Tokay Gecko) और इगुआना (Iguana)। इन प्रजातियों का इस्तेमाल पारंपरिक दवाइयों, सौंदर्य उत्पादों और वैज्ञानिक अनुसंधानों में किया जाता है।

छिपकली की खेती कहाँ-कहाँ होती है?

आज छिपकली पालन का चलन दुनिया के कई देशों में तेजी से बढ़ रहा है खासकर एशिया, अफ्रीका और लैटिन अमेरिका में। थाईलैंड, वियतनाम और इंडोनेशिया जैसे देशों में इसे बड़े पैमाने पर व्यावसायिक रूप से किया जाता है। चीन में तो खासतौर पर टोके गेको (Tokay Gecko) नाम की छिपकली की खेती औषधीय उद्योग के लिए की जाती है, क्योंकि इसे पारंपरिक चीनी चिकित्सा में बेहद उपयोगी माना जाता है। वहीं अफ्रीका के कुछ देशों में छिपकली की त्वचा से चमड़े के बैग, बेल्ट और जूते बनाए जाते हैं, जिनकी अंतरराष्ट्रीय बाजार में काफी मांग है। भारत में हालांकि ऐसा व्यावसायिक पालन कानूनी रूप से प्रतिबंधित है, क्योंकि यहाँ वन्यजीव संरक्षण अधिनियम 1972 के तहत छिपकली की कई प्रजातियाँ संरक्षित हैं। लेकिन अनुसंधान, शिक्षा और जैव विविधता संरक्षण के उद्देश्यों से कुछ सीमित और नियंत्रित प्रयोग अवश्य किए जाते हैं।

छिपकली पालन का उद्देश्य

औषधीय उपयोग के लिए - पारंपरिक चीनी और आयुर्वेदिक चिकित्सा में छिपकली का तेल, रक्त और शरीर के विभिन्न हिस्सों का उपयोग कई बीमारियों के इलाज में किया जाता है। ऐसा माना जाता है कि छिपकली में पाए जाने वाले तत्व अस्थमा, त्वचा रोग, गठिया और यौन कमजोरी जैसी बीमारियों में लाभकारी होते हैं।

चमड़ा उद्योग के लिए - मॉनिटर लिज़र्ड और अन्य बड़ी प्रजातियों की त्वचा का उपयोग महंगे बैग, जूते, बेल्ट और वाद्ययंत्रों के कवर बनाने में किया जाता है। इन उत्पादों की अंतरराष्ट्रीय बाजार में बहुत मांग और कीमत होती है।

अनुसंधान और शिक्षा - जीवविज्ञान, पर्यावरण विज्ञान और फार्मेसी के क्षेत्रों में छिपकलियों का उपयोग अनुसंधान और शिक्षा के लिए किया जाता है। ये प्रयोगशालाओं में कई वैज्ञानिक प्रयोगों का हिस्सा बनती हैं और शोध के लिए महत्वपूर्ण होती हैं।

एक्सपोर्ट बिजनेस - दक्षिण-पूर्व एशिया से हर साल लाखों डॉलर की छिपकलियाँ और उनके अंग विदेशों में निर्यात किए जाते हैं। यह व्यापार कई ग्रामीण समुदायों के लिए रोजगार का भी स्रोत बन चुका है।

छिपकली की खेती कैसे की जाती है?

प्राकृतिक आवास तैयार करना - छिपकलियों के लिए विशेष फार्म बनाए जाते हैं जहाँ तापमान, नमी और छिपने की जगहें प्राकृतिक वातावरण जैसी बनाई जाती हैं। इससे छिपकलियाँ आराम से रहती हैं और उनका विकास सही तरीके से होता है।

प्रजनन प्रक्रिया (Breeding) - नर और मादा छिपकलियों को नियंत्रित माहौल में रखा जाता है ताकि वे सुरक्षित रूप से अंडे दे सकें और उनकी संख्या बढ़ाई जा सके।

अंडों की देखभाल - छिपकलियों के अंडों को इनक्यूबेटर में सही तापमान पर रखा जाता है ताकि उनमें से स्वस्थ बच्चे निकल सकें और उनका विकास सही तरीके से हो।

खुराक और देखभाल - छिपकलियाँ मुख्य रूप से कीड़े-मकोड़े, छोटी मछलियाँ और फल खाती हैं। उन्हें पौष्टिक आहार और पर्याप्त पानी दिया जाता है ताकि वे स्वस्थ रहें।

सुरक्षा और स्वास्थ्य - पालन के दौरान छिपकलियों में फफूंदी, परजीवी या संक्रमण जैसी बीमारियाँ हो सकती हैं। इसलिए नियमित जाँच, सफाई और सही देखभाल बेहद जरूरी है।

आर्थिक दृष्टि से लाभ

छिपकली पालन से होने वाले लाभ कई तरीकों से काफी महत्वपूर्ण हैं। उदाहरण के लिए टोके गेको नामक छिपकली की कीमत अंतरराष्ट्रीय बाजार में प्रति जोड़ा हजारों डॉलर तक हो सकती है। इनके सूखे खाल, मांस और अन्य अंगों की बिक्री से फार्म मालिकों को सालाना लाखों रुपये का मुनाफा भी हो सकता है। इसके अलावा ग्रामीण इलाकों में छिपकली पालन एक नया रोजगार का साधन बनता जा रहा है, जिससे स्थानीय लोगों को आर्थिक मदद मिलती है। हालांकि यह जरूरी है कि इस काम को कानूनी अनुमति और पर्यावरणीय मानकों के अनुसार ही किया जाए, ताकि प्रकृति और कानून दोनों का संरक्षण हो सके।

पर्यावरण और पारिस्थितिकी में भूमिका

छिपकलियाँ हमारे पर्यावरण का एक महत्वपूर्ण हिस्सा हैं। वे कीट नियंत्रण में बड़ी भूमिका निभाती हैं क्योंकि वे मच्छरों, मक्खियों और कीड़ों को खाती हैं। अगर उनकी संख्या घटेगी तो कीटों की संख्या बढ़ेगी, जिससे फसलों और स्वास्थ्य पर बुरा असर पड़ेगा।

इसलिए विशेषज्ञ मानते हैं कि छिपकलियों की खेती तभी उपयोगी है जब वह पर्यावरणीय संतुलन को बनाए रखे। प्राकृतिक आवास से छिपकलियों को पकड़ना या अवैध रूप से बेचना पारिस्थितिक असंतुलन पैदा कर सकता है।

कानूनी स्थिति और विवाद

भारत में मॉनिटर लिज़र्ड, टोके गेको और गिरगिट जैसी कई छिपकली प्रजातियाँ वन्यजीव संरक्षण अधिनियम (Wildlife Protection Act) की अनुसूची में शामिल हैं। इसका मतलब है कि इन्हें पकड़ना, मारना या बेचना कानूनी रूप से अवैध है। साथ ही छिपकलियों के किसी भी भाग जैसे त्वचा, रक्त या तेल का व्यापार भी दंडनीय अपराध माना जाता है। इसके बावजूद कई बार अवैध तस्करी के मामले सामने आते हैं, जहाँ छिपकलियों को औषधीय उपयोग के नाम पर विदेशों में बेचा जाता है, जो कानून और प्रकृति दोनों के लिए नुकसानदेह है।

भविष्य और संभावनाएँ

अगर छिपकलियों की खेती को वैज्ञानिक नजरिए से देखा जाए, तो इसमें रोजगार, अनुसंधान और औषधीय उपयोग के बड़े अवसर मौजूद हैं। अगर सरकार और पर्यावरण संस्थाएँ मिलकर सुरक्षित और नियंत्रित पालन प्रणाली तैयार करें, तो यह उद्योग देश की अर्थव्यवस्था और जैव विविधता दोनों के लिए फायदेमंद हो सकता है। लेकिन अगर इसे कानूनी ढाँचे और पारिस्थितिक समझ के बिना किया जाए, तो यह पर्यावरण के लिए खतरा भी बन सकता है। इसलिए इस क्षेत्र में जागरूकता, शिक्षा और कड़े कानूनों का पालन बेहद जरूरी है।

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