बड़ा ऐलान सरकार का! सेमीकंडक्टर्स की मैन्युफैक्चरिंग बढ़ाने पर आया फैसला, अब छोटे प्लॉट पर भी लगेंगी फैक्ट्रियां

Government Boost Semiconductor Manufacturing: भारत अभी भले ही सेमीकंडक्टर मैन्युफैक्चरिंग में बहुत पीछे हो लेकिन अब वो दिन दूर नहीं जब देश निर्माणशक्ति का केंद्र बनेगा।

Sonal Girhepunje
Published on: 5 Jun 2025 8:17 PM IST
Government Boost Semiconductor Manufacturing
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Government Boost Semiconductor Manufacturing

Government Boost Semiconductor Manufacturing: भारत अब सिर्फ टेक्नोलॉजी का उपभोक्ता नहीं रहना चाहता, बल्कि निर्माणशक्ति का केंद्र बनना चाहता है। आज, मोबाइल फोन, लैपटॉप, इलेक्ट्रिक व्हीकल और 5G नेटवर्क से जुड़े हुए जीवन में सेमीकंडक्टर चिप्स का महत्व बढ़ गया है। लेकिन, इतने बड़े बाजार के बावजूद, भारत अभी भी सेमीकंडक्टर मैन्युफैक्चरिंग में बहुत पीछे है। यह चित्र बदलने वाला है।

सरकार ने हाल ही में एक महत्वपूर्ण और व्यावहारिक कदम उठाया है— सेमीकंडक्टर फैक्ट्री अब बड़ी-बड़ी जमीन पर नहीं होंगी। कंपनियां छोटे-छोटे प्लॉट्स पर भी काम कर सकेंगे। यह बदलाव सिर्फ नियमों में बदलाव नहीं है; यह एक नए युग की शुरुआत है। जहां भारत दुनिया की तकनीकी आवश्यकताओं को पूरा करेगा और तकनीकी आत्मनिर्भरता का उदाहरण बनेगा। हम इस परिवर्तन को गहराई से समझते हैं— यह कैसे हमारे देश की दिशा और दशा दोनों को बदल सकता है।

सेमीकंडक्टर (SEMICONDUCTOR) क्यों हैं इतने जरूरी?


सेमीकंडक्टर— ये छोटे-छोटे चिप्स आंखों से दूर हैं, लेकिन इनमें किसी भी इलेक्ट्रॉनिक डिवाइस का दिमाग छिपा है। चाहे वह आपका स्मार्टफोन, कार, माइक्रोवेव या आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस से चलने वाला कोई सिस्टम हो। इन चिप्स हर जगह होने चाहिए। आज की दुनिया, जो हर समय डिजिटल हो रही है, डेटा प्रोसेसिंग, स्टोरेज और कनेक्टिविटी के लिए सेमीकंडक्टर की आवश्यकता होती है। इसलिए इनकी मांग और महत्व विश्व अर्थव्यवस्था में तेजी से बढ़ रहे हैं। लेकिन दुनिया का सबसे बड़ा इलेक्ट्रॉनिक उपभोक्ता भारत अब भी इन चिप्स बना नहीं पा रहा है। हमारे देश में अरबों डॉलर का इलेक्ट्रॉनिक सामान बनाया जाता है, लेकिन चीन, ताइवान और दक्षिण कोरिया से चिप्स खरीदनी पड़ती है।

यह न सिर्फ हमारी अर्थव्यवस्था पर भारी पड़ता है, बल्कि किसी भी राजनीतिक या वैश्विक संकट की स्थिति में हमारी सप्लाई चेन पर भी बुरा असर हो सकता है। ऐसे में आत्मनिर्भरता और भी महत्वपूर्ण हो जाती है।

सेमीकंडक्टर (SEMICONDUCTOR) मिशन और नई नीति :

सरकार ने 2021 में "India Semiconductor Mission" (ISM) की शुरुआत की थी। इसका मकसद था सेमीकंडक्टर (SEMICONDUCTOR) डिज़ाइन, मैन्युफैक्चरिंग और रिसर्च को देश में ही बढ़ावा देना। इसी कड़ी को और मजबूत करते हुए, 2024 में केंद्र सरकार ने एक और बड़ी घोषणा की – अब सेमीकंडक्टर (SEMICONDUCTOR) प्लांट लगाने के लिए बड़े भूखंड (land parcels) की आवश्यकता नहीं होगी। यानी छोटे प्लॉट पर भी कंपनियां फैक्ट्री लगा सकेंगी।

इसका अर्थ क्या है?


पहले सेमीकंडक्टर (SEMICONDUCTOR) फैक्ट्री लगाने के लिए कंपनियों को 1000 एकड़ या उससे अधिक जमीन की आवश्यकता होती थी। इससे छोटे और मंझोले निवेशक पीछे हट जाते थे। अब यह बाध्यता हटा दी गई है, जिससे मैन्युफैक्चरिंग यूनिट्स छोटे स्तर पर भी शुरू हो सकती हैं। यह बदलाव देश के औद्योगिक मानचित्र को बदल सकता है।

इस फैसले के प्रमुख लाभ :

1. निवेश बढ़ेगा, बेरोजगारी घटेगी :

छोटे भूखंडों की अनुमति से अधिक संख्या में कंपनियां अब फैक्ट्री लगाने के लिए आगे आ सकेंगी। इससे देश में घरेलू और विदेशी निवेश बढ़ेगा। नई यूनिट्स खुलेंगी, जिससे हजारों लोगों को रोजगार मिलेगा – खासकर टेक्निकल और इंजीनियरिंग सेक्टर में।

2. MSME को मिलेगा बढ़ावा :

अब तक सेमीकंडक्टर (SEMICONDUCTOR) निर्माण का क्षेत्र सिर्फ बड़ी कंपनियों तक सीमित था। लेकिन छोटे भूखंडों पर यूनिट लगाने की छूट के बाद अब MSME (सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम) भी इस क्षेत्र में कदम रख सकेंगे।

3. तेजी से बढ़ेगी आत्मनिर्भरता :

सेमीकंडक्टर (SEMICONDUCTOR) आयात पर भारत की निर्भरता काफी अधिक है। अगर देश में ही इनका निर्माण बढ़ता है, तो यह आत्मनिर्भर भारत मिशन को मजबूती देगा और आयात बिल भी घटेगा।

4. वैश्विक सप्लाई चेन में भारत की भूमिका :

पिछले कुछ वर्षों में ताइवान और चीन के बीच तनाव बढ़ने से वैश्विक सेमीकंडक्टर (SEMICONDUCTOR) सप्लाई चेन बाधित हुई है। ऐसे में कंपनियां भारत को एक वैकल्पिक हब के रूप में देख रही हैं। यह नीति भारत को एक मजबूत सप्लाई चेन पार्टनर बनाने में मदद करेगी।

कौन-कौन सी कंपनियां पहले ही सक्रिय हैं?


सरकार के सेमीकंडक्टर (SEMICONDUCTOR) मिशन के तहत अब तक कई कंपनियां भारत में निवेश की घोषणा कर चुकी हैं:

• Vedanta-Foxconn JV: गुजरात में सेमीकंडक्टर (SEMICONDUCTOR) फैब प्लांट के लिए 1.5 लाख करोड़ का प्रस्ताव।

• Micron Technology: अमेरिका की यह कंपनी गुजरात में 22,000 करोड़ का चिप असेंबली प्लांट स्थापित कर रही है।

• Tata Electronics: तमिलनाडु और कर्नाटक में सेमीकंडक्टर (SEMICONDUCTOR) और चिप टेस्टिंग फैसिलिटी शुरू करने की योजना।

इन घोषणाओं के बाद छोटे प्लॉट्स पर फैक्ट्री लगाने की छूट से और भी कंपनियों का रुझान इस ओर बढ़ेगा।

चुनौतियाँ भी हैं :

हालांकि यह नीति सराहनीय है, लेकिन इसके सामने कुछ व्यवहारिक चुनौतियाँ भी होंगी:

1. उच्च तकनीक की जरूरत :

सेमीकंडक्टर (SEMICONDUCTOR) निर्माण अत्यधिक जटिल और तकनीकी प्रक्रिया है। इसके लिए साफ-सुथरे क्लीनरूम, अल्ट्रा प्योर वॉटर, और अत्याधुनिक उपकरणों की आवश्यकता होती है। छोटे भूखंडों पर यह सब सुनिश्चित करना आसान नहीं होगा।

2. स्किल्ड लेबर की कमी :

सेमीकंडक्टर (SEMICONDUCTOR) इंडस्ट्री के लिए अत्यधिक प्रशिक्षित तकनीशियनों और इंजीनियरों की जरूरत होती है। भारत में फिलहाल इस क्षेत्र में स्किल्ड मैनपावर की कमी है।

3. बिजली-पानी जैसी सुविधाओं की जरूरत :

सेमीकंडक्टर (SEMICONDUCTOR) प्लांट्स के लिए 24x7 बिजली और पानी जैसी बुनियादी सुविधाएं आवश्यक होती हैं। हर स्थान पर यह सुविधाएं उपलब्ध होंगी, इसकी भी योजना जरूरी है।

आगे की राह: क्या करना होगा?

नीति में बदलाव सिर्फ शुरुआत है। इसके प्रभावी क्रियान्वयन के लिए कुछ कदम जरूरी होंगे:

• तकनीकी संस्थानों के साथ सहयोग: IITs, NITs और अन्य टेक्निकल यूनिवर्सिटीज के साथ मिलकर सेमीकंडक्टर (SEMICONDUCTOR) डिज़ाइन और मैन्युफैक्चरिंग से जुड़े कोर्सेज तैयार करने होंगे।

• स्किल डेवलपमेंट पर जोर: केंद्र और राज्य सरकारों को मिलकर स्किल इंडिया प्रोग्राम के तहत विशेष ट्रेनिंग प्रोग्राम्स शुरू करने चाहिए।

• बिजली-पानी, लॉजिस्टिक्स में सुधार: जिस क्षेत्र में सेमीकंडक्टर (SEMICONDUCTOR) यूनिट लगनी है वहां बुनियादी सुविधाएं समय पर उपलब्ध कराना सरकार की जिम्मेदारी होगी।

• अनुमतियों की प्रक्रिया सरल बनाना: कंपनियों को न्यूनतम समय में मंजूरी मिले, इसके लिए ‘सिंगल विंडो क्लियरेंस’ सिस्टम और भी प्रभावी बनाना होगा।

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