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Land vs Flat Investment: कौन सा विकल्प है बेहतर? जानिए पूरी सच्चाई
Land vs Flat Investment: जानिए निवेश, रिटर्न, कानूनी पहलुओं और जीवनशैली के आधार पर कौन सा विकल्प आपके लिए बेहतर साबित हो सकता है।
Land Investment Vs Flat Investment (Photo - Social Media)
Land vs Flat Investment: अगर आप अपनी मेहनत की कमाई से कुछ बड़ा खरीदने की सोच रहे हैं, तो ज़्यादातर लोगों की तरह आपके मन में भी एक सवाल ज़रूर होगा - “ज़मीन खरीदें या फ्लैट?”
भारत जैसे देश में, जहां रियल एस्टेट एक बड़ा निवेश विकल्प माना जाता है, वहां ये फैसला लेना आसान नहीं होता।
हर विकल्प के साथ अपने फायदे और नुकसान आते हैं।
एक तरफ खाली ज़मीन आपको विकास और विस्तार की स्वतंत्रता देती है, तो दूसरी ओर फ्लैट सुविधाजनक जीवनशैली और सिक्योरिटी का वादा करता है।
तो आखिर किसमें निवेश करना बेहतर रहेगा - ज़मीन या फ्लैट?
आइए इस लेख में समझते हैं दोनों विकल्पों के पहलुओं को आसान भाषा में।
1. निवेश की लागत और रिटर्न की तुलना :
भूमि में निवेश:
ज़मीन यानी प्लॉट खरीदना अक्सर फ्लैट से सस्ता पड़ सकता है, खासकर जब वह शहर की सीमा से थोड़ी दूरी पर हो।
भूमि की कीमतें धीरे-धीरे बढ़ती हैं, लेकिन लंबी अवधि में यह जबरदस्त रिटर्न दे सकती है।
इसके अलावा, अगर आपने सही लोकेशन पर ज़मीन ली है - जैसे कि विकसित होने वाले क्षेत्र, औद्योगिक या IT हब के पास - तो उसकी कीमतें तेजी से बढ़ सकती हैं।
भूमि में एक और बड़ा फायदा ये है कि इसमें डिप्रीसिएशन (मूल्य में गिरावट) नहीं होता।
फ्लैट में निवेश:
फ्लैट आमतौर पर शहरों में बनाए जाते हैं, जहां पहले से इंफ्रास्ट्रक्चर होता है - जैसे स्कूल, अस्पताल, मॉल और ट्रांसपोर्ट।
इसलिए फ्लैट की कीमतें शुरू में ही ज़्यादा होती हैं।
हालांकि, फ्लैट में निवेश से मिलने वाला रिटर्न सीमित होता है, क्योंकि उसमें सालों बाद मेंटेनेंस बढ़ जाता है और फ्लैट पुराना होने पर उसकी वैल्यू में गिरावट भी आती है।
साथ ही, बिल्डिंग के उम्र के साथ रिसेल वैल्यू घट जाती है।
2. मेंटेनेंस, मालिकाना हक और नियंत्रण :
भूमि का नियंत्रण और रखरखाव:
प्लॉट खरीदने के बाद आपको उस पर कोई मेंटेनेंस खर्च नहीं उठाना पड़ता।
मालिकाना हक पूरी तरह आपके पास रहता है।
आप चाहें तो उस पर घर बना सकते हैं या यूं ही लंबे समय तक रख सकते हैं।
यह आपके प्लान पर निर्भर करता है।
लेकिन, जमीन को खाली रखने से कभी-कभी उस पर अवैध कब्जे का खतरा भी रहता है।
इसलिए समय-समय पर निगरानी जरूरी होती है।
फ्लैट का रखरखाव और सीमाएं:
फ्लैट में रहने के लिए हर महीने मेंटेनेंस चार्ज देना पड़ता है, जो समय के साथ बढ़ता रहता है।
इसके अलावा, बिल्डिंग में बहुत से नियम होते हैं - कब काम कर सकते हैं, क्या बदलाव कर सकते हैं, आदि।
आप चाहे भी तो मनमाने तरीके से फ्लैट में बदलाव नहीं कर सकते।
हालांकि, सिक्योरिटी, लिफ्ट, पार्किंग, क्लब हाउस जैसी सुविधाएं फ्लैट को रहन-सहन के लिहाज से बेहतर बनाती हैं।
3. रियल एस्टेट के कानूनी पहलू और जोखिम :
भूमि से जुड़ी सावधानियां:
ज़मीन खरीदते समय सबसे बड़ा जोखिम होता है ज़मीन के कागजात।
कभी-कभी ज़मीन पर कई दावेदार होते हैं या ज़मीन कृषि योग्य होती है जिसे रेजिडेंशियल यूज़ में बदलवाना पड़ता है।
ऐसे में कानूनी जांच और क्लियर टाइटल बहुत जरूरी होता है।
आपको ज़मीन खरीदने से पहले encumbrance certificate, mutation record, और जमीन की registry पूरी तरह जांच लेनी चाहिए।
फ्लैट से जुड़े कानूनी पहलू:
फ्लैट आमतौर पर RERA रजिस्टर्ड प्रोजेक्ट में होते हैं, जिससे खरीदार को सुरक्षा मिलती है।
बिल्डर के खिलाफ केस करना आसान होता है अगर फ्लैट समय पर न मिले या उसमें कोई दिक्कत हो।
हालांकि, कई बार प्रोजेक्ट लटक जाते हैं या बिल्डर भाग जाता है, जिससे निवेश फंस सकता है।
इसलिए RERA रजिस्टर्ड प्रोजेक्ट और भरोसेमंद बिल्डर का चयन जरूरी है।
4. आपकी जरूरत और जीवनशैली के अनुसार चुनाव करें :
कब ज़मीन बेहतर है:
• जब आप लॉन्ग टर्म इन्वेस्टमेंट चाहते हैं।
• जब आप खुद का घर बनाना चाहते हैं अपनी पसंद से।
• जब आपको मेंटेनेंस से बचना हो।
• जब आप भविष्य में प्लॉट को बेचकर अच्छा लाभ लेना चाहते हैं।
कब फ्लैट बेहतर है:
• जब आप तुरंत घर में शिफ्ट होना चाहते हैं।
• जब आपको सुरक्षा, सुविधाएं और सोसाइटी लाइफस्टाइल चाहिए।
• जब आप किराये से आय लेना चाहते हैं।
• जब आपके पास प्रॉपर्टी मैनेजमेंट का समय नहीं है।
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