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मोदी-शी जिनपिंग होंगे आमने-सामने, क्या रेयर अर्थ मेटल्स पर होगी बड़ी डील?
Modi-Xi Meeting 2025: मोदी-शी आमने-सामने, रेयर अर्थ मेटल्स और व्यापारिक समझौतों पर फोकस
Modi-Xi Meeting 2025 (Photo - Social Media)
Modi-Xi Meeting 2025: कुछ ही घंटों बाद भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग की आमने-सामने मुलाकात होने वाली है।प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग आमने-सामने बैठकर कई अहम मुद्दों पर चर्चा करेंगे। हालांकि, सबकी नज़रें इस मुलाकात पर इसलिए टिकी हैं क्योंकि भारत के ऑटो सेक्टर में रेयर अर्थ मेटल्स की भारी कमी चल रही है और उम्मीद जताई जा रही है कि इस संकट का कोई समाधान निकल सकता है।
भारत के वाहन निर्माताओं पर संकट
अप्रैल 2025 में बीजिंग ने हैवी रेयर अर्थ मेटल्स (HRE) पर सख्त निर्यात प्रतिबंध लगाए थे। इसके बाद से भारत के 50 से अधिक इंपोर्ट आवेदन चीन में लंबित हैं और अब तक कोई नई सप्लाई नहीं मिल पाई है। इस स्थिति ने भारत के ऑटो सेक्टर की सप्लाई चेन को लगभग ठप कर दिया है। इलेक्ट्रिक वाहनों और हाई-टेक मोटर्स के उत्पादन पर इसका सीधा असर पड़ा है, जिससे कंपनियों को मजबूरी में अपने डिजाइन बदलने और वैकल्पिक सोर्स तलाशने पड़े हैं। स्थिति को और जटिल इस वजह से माना जा रहा है क्योंकि दुनिया की लगभग 90% रेयर अर्थ प्रोसेसिंग चीन के नियंत्रण में है। जुलाई में हल्के ग्रेड (LRE) की कुछ शिपमेंट भारत पहुंची जरूर थीं, लेकिन हैवी ग्रेड रेयर अर्थ मेटल्स की कमी अब भी गंभीर समस्या बनी हुई है।
चीन का आश्वासन लेकिन अधूरा भरोसा
हाल के दिनों में भारत-चीन संबंधों में कुछ सकारात्मक संकेत देखने को मिले हैं। दोनों देशों के बीच सीधी उड़ानें दोबारा शुरू की गई हैं और सीमा तनाव को कम करने के लिए वार्ता भी आगे बढ़ी है। इसके साथ ही, चीन की ओर से भारत को खाद, मशीनरी और रेयर अर्थ सप्लाई का आश्वासन भी दिया गया है। हालांकि, जब चीन के विदेश मंत्री वांग यी हाल ही में नई दिल्ली दौरे पर आए, तो उनके आधिकारिक बयान में रेयर अर्थ मेटल्स का जिक्र नदारद रहा। यही कारण है कि अब आगामी मोदी-शी मुलाकात को एक तरह का टेस्ट केस माना जा रहा है, जिससे यह तय होगा कि क्या चीन वास्तव में भारत को रेयर अर्थ मेटल्स की सप्लाई बहाल करेगा या नहीं।
भारत की रणनीति - वैकल्पिक सोर्स और डिजाइन बदलाव
रेयर अर्थ मेटल्स की सप्लाई में आई कमी ने भारतीय कंपनियों को नई रणनीतियों पर काम करने के लिए मजबूर कर दिया है। कई वाहन निर्माता अब ऐसे मोटर्स डिजाइन कर रहे हैं जो हल्के रेयर अर्थ (LRE) या फेराइट-बेस्ड मेटल्स पर चल सकें। वहीं, बजाज ऑटो जैसी अग्रणी कंपनियां दूसरे देशों से वैकल्पिक सोर्स तलाशने में जुटी हुई हैं। इसके साथ ही, कुछ निर्माता ऐसी नई तकनीक विकसित करने पर ध्यान दे रहे हैं जिनमें रेयर अर्थ मेटल्स पर निर्भरता न हो। हालांकि, भारत में लोकल प्रोडक्शन बढ़ाने की योजना भी बनाई जा रही है, लेकिन विशेषज्ञों का मानना है कि यह प्रक्रिया न केवल महंगी होगी बल्कि इसमें लंबा समय भी लगेगा।
तस्करी और चीन की सख्ती
रेयर अर्थ मेटल्स की भारी कमी ने कुछ भारतीय निर्माताओं को अवैध रास्ते अपनाने के लिए मजबूर कर दिया। रिपोर्ट्स के अनुसार, कई बार इन मेटल्स को एयरलाइन हैंड बैगेज के जरिए भारत लाया गया, जबकि कुछ मामलों में इन्हें ग्रेनाइट स्लैब्स में छिपाकर भेजा गया। इस तरह की गतिविधियों को देखते हुए चीन ने सख्ती दिखाते हुए “जीरो टॉलरेंस पॉलिसी” लागू की है। बीजिंग ने साफ चेतावनी दी है कि झूठे दावों और तीसरे देशों के माध्यम से होने वाली ट्रांसशिपमेंट पर कड़ी कार्रवाई की जाएगी।
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