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EU की चेतावनी के बाद सवालों में अंबानी की रिलायंस, रूस से तेल खरीद बनी चर्चा का केंद्र
Reliance Under Pressure:जानिए रूस से तेल खरीद, EU पाबंदियों और नई रणनीति के बीच कैसे बदल रहा है भारत का ऊर्जा समीकरण।
Reliance Under Pressure (Photo - Social Media)
भारत की सबसे बड़ी निजी रिफाइनिंग कंपनी रिलायंस इंडस्ट्रीज़ लिमिटेड एक बार फिर अंतरराष्ट्रीय सुर्खियों में है। वजह है यूरोपीय संघ की नई सख्त पाबंदियाँ, जो उन रिफाइनरियों पर लागू होंगी जो रूस से कच्चा तेल खरीदकर डीज़ल और अन्य उत्पाद बनाकर यूरोप को निर्यात करती हैं। यह कदम ऊर्जा आपूर्ति श्रृंखला को प्रभावित कर सकता है। इस फैसले का सबसे बड़ा असर रिलायंस पर पड़ सकता है, जो अभी तक रूस के सस्ते क्रूड ऑयल का बड़ा खरीदार रही है और अपने लाभ को इसी रणनीति से बढ़ाती आई है।
रूस से रिलायंस का गहरा रिश्ता: व्यापार का नया केंद्र बिंदु
रूस-यूक्रेन युद्ध के बाद जब यूरोप ने रूसी तेल पर प्रतिबंध लगाया, तब भारत जैसे देशों के लिए एक नई खिड़की खुली। भारतीय रिफाइनरियों को भारी छूट पर रूसी कच्चा तेल मिलने लगा। रिलायंस, जिसे मुकेश अंबानी संचालित करते हैं, ने इस मौके को बखूबी भुनाया। सस्ते रूसी क्रूड से डीज़ल बनाकर उसे पश्चिमी देशों में ऊंचे दामों पर बेचा गया।
Kpler की शिप-ट्रैकिंग डेटा के अनुसार, साल 2025 में अब तक रूस रिलायंस की कुल कच्चे तेल की खरीद का लगभग आधा हिस्सा रहा है। वहीं, कंपनी के कुल निर्यात का लगभग 20% हिस्सा यूरोप को भेजा गया। इस रणनीति से रिलायंस को लाभ तो हुआ, लेकिन अब EU की नई पाबंदियों के चलते ये फॉर्मूला कंपनी के लिए मुश्किल बन सकता है।
नई रणनीति की ओर बढ़ती रिलायंस: अबू धाबी और मिडिल ईस्ट विकल्प में :
यूरोपीय यूनियन द्वारा शुक्रवार को जारी नए प्रतिबंधों के बाद, ट्रेडर्स के अनुसार रिलायंस ने अबू धाबी के मुरबान क्रूड की एक खेप खरीदी है। यह एक दुर्लभ सौदा माना जा रहा है क्योंकि यह क्रूड रिलायंस की आम पसंद नहीं है। मुरबान क्रूड अपेक्षाकृत महंगा होता है और रिलायंस अब तक रूस की यूरल या भारी मिडिल ईस्ट ग्रेड्स पर निर्भर रहती आई है।
जानकारों के अनुसार, रिलायंस ने रूस पर अपनी निर्भरता घटाने की प्रक्रिया शुरू कर दी है। हालांकि यह स्पष्ट नहीं है कि कंपनी हर दिन लगभग 6 लाख बैरल की ज़रूरत को रूस के अलावा किन स्रोतों से और किस कीमत पर पूरा करेगी। कुछ संकेत जरूर मिले हैं कि कंपनी अब मध्य-पूर्व देशों की ओर रुख कर रही है, लेकिन इस बदलाव की लागत और स्थायित्व पर संशय बना हुआ है।
यूरोप का बढ़ता दबाव और भारत की संतुलन नीति :
EU द्वारा लगाए गए नए प्रतिबंध 21 जनवरी 2026 से लागू होंगे। इससे पहले रिलायंस को अपनी रणनीति साफ करनी होगी क्योंकि यूरोप में डीज़ल की बिक्री अब आसान नहीं होगी। अगर रिलायंस यूरोपीय बाजार में अपना स्थान बनाए रखना चाहती है, तो उसे रूस से कच्चे तेल की खरीद पर फिर से विचार करना होगा।
भारत सरकार भी इस मसले पर सतर्क है। मंगलवार को भारत के विदेश सचिव विक्रम मिस्री ने कहा कि द्वितीयक प्रतिबंधों के मामले में "संतुलन" जरूरी है। उनका इशारा इस ओर था कि भारत को यह तय करना होगा कि वह वैश्विक दबाव के आगे झुके या अपनी ऊर्जा जरूरतों को प्राथमिकता दे।
रिलायंस की राह कठिन, लेकिन विकल्प खुले :
रिलायंस के लिए मौजूदा हालात दोधारी तलवार की तरह हैं। एक ओर रूस से सस्ता तेल अब जोखिम भरा हो गया है, दूसरी ओर मिडिल ईस्ट जैसे क्षेत्रों से तेल खरीदना महंगा पड़ेगा। कंपनी को अब व्यापारिक संतुलन, अंतरराष्ट्रीय दबाव और लागत में बढ़ोत्तरी जैसे मुद्दों से जूझना होगा।
हालांकि, रिलायंस जैसी बड़ी कंपनी के पास विकल्पों की कमी नहीं है। उसका विशाल रिफाइनिंग इंफ्रास्ट्रक्चर, लॉजिस्टिक्स नेटवर्क और वैश्विक साझेदारियाँ उसे इस बदलाव को अपनाने में मदद कर सकते हैं। आने वाले महीनों में यह देखना रोचक होगा कि क्या अंबानी की रिलायंस रूस से दूरी बनाकर यूरोप के नए मानकों पर खरा उतर पाएगी या नहीं।
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