Andaaz 2 Review: अंदाज 2 की कहानी वहीं पुरानी बॉलीवुड फिल्मों की दिलाती है याद, जाने कैसी है फिल्म

Andaaz 2 Review In Hindi: अंदाज़ 2 आज सिनेमाघरो में रिलीज़ हो चुकी है,चलिए जानते हैं कैसी है फिल्म

Shikha Tiwari
Published on: 8 Aug 2025 8:09 AM IST
Andaaz 2 Review: अंदाज 2 की कहानी वहीं पुरानी बॉलीवुड फिल्मों की दिलाती है याद, जाने कैसी है फिल्म
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Andaaz 2 Review: अंदाज फिल्म का सीक्वल आज सिनेमाघरों में रिलीज हो चुकी है। लेखक निर्माता-निर्देशक सुनील दर्शन की अंदाज 2 का 2003 में आई उनकी अंदाज से कोई लेना-देना नहीं है। चलिए जानते हैं फिल्म की कहानी है। क्या मोहित सूरी की फिल्म सैयारा को बॉक्स ऑफिस पर टक्कर देगी।

अंदाज 2 रिव्यू (Andaaz Movie Review In Hindi)-

निर्देशक सुनील दर्शन की अंदाज 2 की कहानी पुराने फिल्म से बिल्कुल भी मिलती-जुलती नहीं हैं। इस फिल्म में प्रियंका नाम की एक लड़की है। तो वहीं नताशा फर्नाडीज एक गुस्सैल कामुक, संगीत उद्यमी, प्रियंका जिसे आप एक मेहनती महिला कह सकते हैं। फिल्म के कुंवारी हीरो आरब के साथ अपनी पहली मुलाकात के बाद प्रियंका शॉवर में बैठी कल्पना कर रही है। कि यह उन जगहों पर साबुन लगा रहा है, जहाँ फरिश्ते भी कदम रखने से डरते हैं। थोड़ी देर बाद, प्रियंका आरव को लिपलॉक करती है, जिसे देखकर वह हैरान रह जाता है। "यह तो बहुत तेज़ था!”

शायद यह फिल्म का एकमात्र त्वरित हिस्सा है, जो अन्यथा संगीतकार आरब और उसके दो दोस्ती टोनी और एहसान की कहानी में समय लेती है। जो एक बैंड बनाते और संगीत कंपनी के प्रमुखों द्वारा अपमानति होते हैं।

एहसान, तीन संघर्षशील कलाकारी की सैयारा जैसी संगीतमय टीम का प्रतीकात्मक रहीम चाचा है। एहसान बाद में आरव के पिता के किडनी ट्रांसप्लांट के लिए अपना गैराज बेच देता है। यह इस बार का एक और सबूत है कि मुसलमान सभी बुरे नहीं होते हैं।

घर पर, आरव के पास एक असंतुष्ट पिता है, जो अपने बेटे को उसके गिटार और बेकार दोस्त लोग के बारे में ताना मारता रहता है। और एक माँ है, जो अगले लाडले बेटे के बारे में रोती और विलाप करती रहती है।

बेशक, ये सब आखिर में एक साथ आता है। आरव को शोहरत, दौलत और वो लड़की मिलती है। जिससे वो प्यार करता है। अलीशा वे उनकी बड़ी बहन और मेकअप को लेकर लड़ते हैं। वो पूरी तरह से युद्ध के मूड में है, लड़ रही है, सो रही है, रोमांस कर रही है।

सुनील दर्शन हमें एक संगीतय और पारिवारिक ड्रामा का अनोखा मिश्रण देते हैं। नदीम शरवन के नाम से जाना जाता है। कुछ हल्के-फुल्के हालाँकि कुछ खास नही, लेकिन मथुर ट्रैक लेकर आते हैं। जो फिल्म को एक पुरानी जमाने का एहसास देते हैं। राजू खान की कोरियोग्राफी आश्चर्यजनक रूप से शानदार है। मुख्य जोड़ी डांस स्टेप्स करते हुए सहज दिखती है।

डॉली बिंद्रा का अति-उत्साही डॉली आंटी का किरदार थोड़ा पचाने में मुश्किल है। लेकिन सुनील दर्शन की 1970 के दशक के सिनेमा बेबाक श्रद्धांजलि मथुर, कोमल, कभी-कभी अतिशयोक्तिपूर्ण जरूर है लेकिन कभी आक्रामक नहीं है।

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