Children Eye Problems: डिजीटल स्क्रीन ने और ख़राब कर रखी है बच्चों की आँखें

Children Eye Problems: बच्चों में आंखों की समस्याओं के कई कारण हैं...

Shyamali Tripathi
Published on: 31 Aug 2025 5:24 PM IST (Updated on: 31 Aug 2025 5:28 PM IST)
Children Eye Problems
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Children Eye Problems

Children Eye Problems: आज के समय में देखा जाए तो अधिकतर बच्चे चश्मा पहने हुए नजर आते हैं, कई बच्चे स्कूल में ब्लैकबोर्ड सही से न देख पाने की शिकायत करते हैं, कई बच्चे आंखें झपकाते हुए या आंखे झीनी करके देखते हुए पाए जाते हैं। अगर ऐसा कुछ पाया जाए तो इसे अनदेखा करना उन बच्चों के भविष्य को अंधकार में धकेलने के बराबर होगा। ये सभी समस्याएं दृष्टिदोष से संबंधित हैं जिन पर संज्ञान लेना अभिभावकों के लिए बहुत ही आवश्यक हो गया है। चिंताजनक है कि हमारे देश के लगभग 70 प्रतिशत बच्चे किसी न किसी प्रकार के दृष्टिदोष से पीड़ित हैं जिनमें शहरी बच्चों का प्रतिशत अधिक है।

बच्चों में आंखों की समस्याओं के कई कारण हैं, जिनमें से कुछ आनुवंशिक (genetic) हैं, और कुछ पर्यावरणीय (environmental) हैं। डेटा विश्लेषण (data analysis) से पता चलता है कि पिछले कुछ वर्षों में, बच्चों में आंखों की समस्याओं, खासकर मायोपिया (myopia) या निकट दृष्टिदोष का प्रचलन तेजी से बढ़ा है। यह मुख्य रूप से स्क्रीन समय (screen time) के बढ़ने और बाहर खेलने के कम होने से जुड़ा है।

मुख्य कारण (Main Causes)


आनुवंशिक कारण (Genetic Factors): अगर माता-पिता में से किसी को भी आंखों की समस्या है, जैसे कि मायोपिया या एस्टिग्मेटिज्म (astigmatism), तो बच्चों में भी इन समस्याओं के होने की संभावना बढ़ जाती है।

पर्यावरणीय कारण (Environmental Factors):

डिजिटल स्क्रीन का अधिक उपयोग: स्मार्टफोन, टैबलेट, कंप्यूटर और टेलीविजन के लंबे समय तक उपयोग से आंखों पर तनाव पड़ता है। इससे डिजिटल आई स्ट्रेन (digital eye strain) हो सकता है, जिसके लक्षण हैं आंखों में सूखापन, जलन और धुंधला दिखना।

बाहर खेलने की कमी: रिसर्च से पता चला है कि जो बच्चे बाहर धूप में कम समय बिताते हैं, उनमें मायोपिया होने का खतरा अधिक होता है। धूप में मिलने वाली विटामिन डी (Vitamin D) आंखों के स्वस्थ विकास के लिए महत्वपूर्ण है।


पोषण की कमी: विटामिन ए, सी, ई और जिंक जैसे पोषक तत्वों की कमी से भी आंखों की समस्याएं हो सकती हैं। गाजर, पालक और बादाम जैसे खाद्य पदार्थ आंखों के लिए बहुत फायदेमंद हैं।

अपर्याप्त प्रकाश: कम या बहुत तेज रोशनी में पढ़ने या काम करने से आंखों पर अनावश्यक दबाव पड़ता है।

हाल के अध्ययनों से निम्नलिखित रुझान सामने आए हैं:

मायोपिया का बढ़ता प्रचलन: एक वैश्विक डेटा विश्लेषण से पता चला है कि 2050 तक दुनिया की लगभग आधी आबादी (करीब 500 करोड़ लोग) मायोपिया से प्रभावित होगी, और इसका एक बड़ा हिस्सा बच्चे होंगे। यह वृद्धि मुख्य रूप से एशियाई देशों में देखी गई है, जहाँ शिक्षा और डिजिटल उपकरणों का उपयोग बहुत अधिक है।

स्क्रीन समय और मायोपिया के बीच संबंध: एक अध्ययन में पाया गया कि जो बच्चे प्रतिदिन 3 घंटे से अधिक डिजिटल स्क्रीन का उपयोग करते हैं, उनमें मायोपिया होने की संभावना उन बच्चों की तुलना में दो गुना अधिक होती है जो कम स्क्रीन समय बिताते हैं।

बाहर खेलने और मायोपिया का संबंध: एक अन्य डेटा विश्लेषण में यह पाया गया कि प्रति दिन कम से कम 2 घंटे बाहर खेलने वाले बच्चों में मायोपिया का खतरा उन बच्चों की तुलना में कम होता है जो बाहर नहीं खेलते हैं।

समाधान - रोकथाम एवं उपचार

बच्चों में आंखों की समस्याओं के समाधान के लिए कई उपाय हैं जिन्हें अपनाकर बच्चों की आंखों को स्वस्थ रखा जा सकता है।

1. डिजिटल स्क्रीन का सीमित उपयोग

डिजिटल स्क्रीन का उपयोग कम करना सबसे महत्वपूर्ण समाधानों में से एक है। विशेषज्ञ "20-20-20 नियम" का पालन करने की सलाह देते हैं: हर 20 मिनट के बाद, 20 सेकंड के लिए 20 फीट (लगभग 6 मीटर) दूर किसी वस्तु को देखें। यह नियम आंखों की मांसपेशियों को आराम देता है और डिजिटल आई स्ट्रेन को कम करता है। साथ ही, बच्चों के लिए स्क्रीन समय निर्धारित करें। छोटे बच्चों के लिए एक दिन में 1-2 घंटे और बड़े बच्चों के लिए 2-3 घंटे पर्याप्त है।

2. बाहर खेलने को बढ़ावा देना

बच्चों को घर के बाहर प्राकृतिक रोशनी में खेलने के लिए प्रोत्साहित करें। अध्ययनों से पता चला है कि बाहर बिताया गया समय मायोपिया के विकास को रोक सकता है या धीमा कर सकता है। प्राकृतिक धूप में मौजूद विटामिन डी और दूर की वस्तुओं पर ध्यान केंद्रित करने से आंखों की मांसपेशियां मजबूत होती हैं।

3. संतुलित आहार

आंखों के स्वास्थ्य के लिए संतुलित और पौष्टिक आहार बहुत जरूरी है। विटामिन ए, सी, ई और जिंक से भरपूर खाद्य पदार्थ जैसे गाजर, पालक, शकरकंद, खट्टे फल, बादाम, अखरोट और अंडे को बच्चों की डाइट में शामिल करें। ओमेगा-3 फैटी एसिड से भरपूर मछलियां जैसे सैल्मन भी आंखों के लिए फायदेमंद होती हैं।

4. सही प्रकाश व्यवस्था

पढ़ाई या अन्य गतिविधियों के लिए सही रोशनी का उपयोग करें। बहुत कम या बहुत तेज रोशनी से आंखों पर दबाव पड़ सकता है। सुनिश्चित करें कि कमरे में पर्याप्त और आरामदायक रोशनी हो। पढ़ने के लिए टेबल लैंप का उपयोग करें और ध्यान रखें कि प्रकाश सीधे आंखों पर न पड़े।

5. नियमित आंखों की जांच

बच्चों की आंखों की नियमित जांच कराना बहुत जरूरी है, खासकर अगर परिवार में किसी को आंखों की समस्या हो। शुरुआती पहचान से समस्याओं को बढ़ने से रोका जा सकता है। दो से तीन साल की उम्र के बाद हर साल एक बार आंखों की जांच अवश्य कराएं। अगर बच्चा धुंधला दिखने, सिरदर्द, आंखों में खुजली या जलन की शिकायत करता है, तो तुरंत डॉक्टर से संपर्क करें।

6. चश्मे और कॉन्टैक्ट लेंस का सही उपयोग

अगर बच्चे को डॉक्टर ने चश्मा या कॉन्टैक्ट लेंस लगाने की सलाह दी है, तो सुनिश्चित करें कि वह उसे नियमित रूप से पहने। यह न केवल दृष्टि को सुधारता है, बल्कि आंखों पर पड़ने वाले अनावश्यक तनाव को भी कम करता है। समय - समय पर उचित प्रयोगशाला या तकनीशियन से ही जांच करवाएं क्योंकि ये भी देखा गया है कि सही जांच न हो पाने के कारण काफी सारे बच्चे गलत नंबर का चश्मा भी पहनते हैं।

7. आंखों के व्यायाम

आंखों को स्वस्थ रखने के लिए कुछ सामान्य व्यायाम भी कर सकते हैं। जैसे:

पलकें झपकाना (Blinking): बार-बार पलकें झपकाने से आंखों में नमी बनी रहती है।

फोकस बदलना (Focus shifting): अपनी उंगली को आंखों के पास लाकर और फिर दूर ले जाकर फोकस को बदलें।

हाथों को रगड़कर आंखों पर रखना (Palming): हाथों को रगड़कर गर्म करें और फिर आंखों पर हल्के से रखें। यह आंखों को आराम देता है।

इन सभी उपायों को अपनाकर हम बच्चों की आंखों की समस्याओं को कम कर सकते हैं और उन्हें एक स्वस्थ भविष्य दे सकते हैं।

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