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Bihar Election 2025: लालू और राबड़ी के सक्रिय प्रचार से बाहर होने का असर
Bihar Election 2025: लालू प्रसाद यादव और राबड़ी देवी के सक्रिय राजनीति से दूर होने ने बिहार की राजनीति में एक बड़ा वैक्युम क्रियेट किया है।
BIHAR ASSEMBLY ELECTION 2025 Lalu-Rabri Exit Reshapes Bihar Politics
BIHAR ASSEMBLY ELECTION 2025: लालू प्रसाद यादव और राबड़ी देवी के सक्रिय राजनीति से दूर होने ने बिहार की राजनीति में एक बड़ा वैक्युम क्रियेट किया है। एक वरिष्ठ पत्रकार बताते हैं, "लालू यादव ने सिर्फ एक पार्टी नहीं, बल्कि एक विचारधारा का नेतृत्व किया था। उनकी अनुपस्थिति ने एक ऐसी जगह छोड़ी है जिसे भरना किसी भी नेता के लिए आसान नहीं है।"
तेजस्वी यादव को मिला लाभ
तेजस्वी यादव को इस स्थिति का सबसे बड़ा लाभ मिल रहा है। एक राजनीतिक विश्लेषक कहते हैं, "तेजस्वी को पार्टी के भीतर पूरी छूट मिल गई है। अब वे बिना किसी हस्तक्षेप के अपनी रणनीति बना सकते हैं।"
तेजस्वी ने इस अवसर का पूरा फायदा उठाते हुए खुद को युवाओं का नेता स्थापित किया है। एक युवा आरजेडी नेता बताते हैं, "तेजस्वी जी ने पार्टी में नई ऊर्जा का संचार किया है। उनकी रणनीति अधिक व्यवस्थित और डेटा आधारित है।"
यादव वोट बैंक पर प्रभाव
यादव समुदाय के भीतर एक दिलचस्प बदलाव देखने को मिल रहा है। एक यादव नेता समझाते हैं, "लालू जी के जमाने में यादव वोट अपने आप आरजेडी को मिल जाता था। अब तेजस्वी को इसके लिए मेहनत करनी पड़ रही है।"हालांकि, एक अन्य यादव नेता इससे अलग राय रखते हैं, "तेजस्वी ने युवाओं को बेहतर तरीके से समझा है। उनकी अपील पुराने जमाने की सामाजिक राजनीति से आगे की है।"
महागठबंधन को हुआ नुकसान
महागठबंधन को लालू यादव के अनुपस्थिति का सबसे बड़ा नुकसान हुआ है। एक वरिष्ठ कांग्रेस नेता मानते हैं, "लालू जी की कैरिज्मा और भाषणों का जादू अब नहीं रहा। रैलियों में वो बात नहीं रह गई है।"विपक्ष के एक वरिष्ठ नेता बताते हैं, "लालू यादव सीधे तौर पर भाजपा को चुनौती दे सकते थे। उनकी अनुपस्थिति में विपक्ष को एक मजबूत चेहरे की कमी खल रही है।"
नीतीश कुमार को मिला राहत
नीतीश कुमार को लालू यादव के राजनीतिक दबाव से राहत मिली है। एक जदयू नेता कहते हैं, "लालू जी के सक्रिय रहते नीतीश जी हमेशा उनकी छाया में रहते थे। अब वे अपनी छवि बना पा रहे हैं।" हालांकि, एक राजनीतिक विश्लेषक चेतावनी देते हैं, "नीतीश को लालू के वोट बैंक का फायदा भी मिलता था। अब उन्हें शुद्ध रूप से अपने प्रदर्शन पर चुनाव लड़ना होगा।"
भाजपा को मिला रणनीतिक लाभ
भाजपा को इस स्थिति का रणनीतिक लाभ मिल रहा है। एक भाजपा नेता बताते हैं, "लालू यादव की अनुपस्थिति में हम सीधे तौर पर तेजस्वी से मुकाबला कर रहे हैं। यह हमारे लिए आसान है।" भाजपा के एक रणनीतिकार कहते हैं, "हम ओबीसी और दलित वोट बैंक पर बेहतर काम कर पा रहे हैं। लालू का कैरिज्मा अब हमारे रास्ते में नहीं है।"
छोटे दलों के लिए अवसर
छोटे दलों के लिए यह स्थिति एक अवसर बन गई है। एक राजनीतिक विश्लेषक बताते हैं, "मुकेश सहनी, उपेंद्र कुशवाहा और जीतन राम मांझी जैसे नेता अब अपनी अलग पहचान बना पा रहे हैं।" विकासशील इंसान पार्टी के एक नेता कहते हैं, "लालू जी के समय में सभी ईबीसी वोट उनके पास चले जाते थे। अब हमें अपनी बात रखने का मौका मिल रहा है।"
जातीय समीकरण में बदलाव
जातीय समीकरण में महत्वपूर्ण बदलाव देखने को मिल रहे हैं। एक सामाजिक विश्लेषक बताते हैं, "यादव वोट बैंक अब विभाजित हो रहा है। कुछ तेजस्वी के साथ हैं, तो कुछ भाजपा की ओर रुख कर रहे हैं।" एक दलित नेता कहते हैं, "लालू जी के जाने के बाद दलित वोटों पर कब्जे की लड़ाई और तेज हो गई है।"
भविष्य की राजनीति पर प्रभाव
भविष्य की राजनीति पर इसके गहरे प्रभाव दिख रहे हैं। एक राजनीतिक विशेषज्ञ कहते हैं, "लालू यादव के बिना बिहार की राजनीति अब कभी वैसी नहीं होगी। यह एक युग का अंत है।" एक युवा नेता बताते हैं, "अब राजनीति व्यक्तित्व केंद्रित नहीं, बल्कि मुद्दा केंद्रित हो रही है। यह एक स्वस्थ बदलाव है।"
अंततः, लालू और राबड़ी के प्रचार से बाहर होने ने बिहार की राजनीति को एक नया मोड़ दिया है। तेजस्वी यादव को इसका सबसे बड़ा लाभ मिल रहा है, जबकि महागठबंधन को नुकसान उठाना पड़ रहा है। भाजपा रणनीतिक लाभ में है, और छोटे दलों के लिए नए अवसर पैदा हुए हैं। यह बदलाव बिहार की राजनीति को एक नए दौर में ले जा रहा है।
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