Bihar Election 2025: विरासत, विवाद और वैकल्पिक विमर्श की चुनावी चुनौती, ललगंज सीट पर नया मोर्चा खुला

Bihar Assembly Election 2025: ललगंज विधानसभा सीट 2025 में बिहार की सबसे चर्चित लड़ाई बन गई है।

Yogesh Mishra
Published on: 28 Oct 2025 7:23 PM IST
Bihar Assembly Election 2025 Update Shivani Shukla Lalganj RJD vs BJP Virasat vs Badalav
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Bihar Assembly Election 2025 Update Shivani Shukla Lalganj RJD vs BJP Virasat vs Badalav

Bihar Assembly Election 2025: भाजपा को चुनौती देने के लिए राष्ट्रीय जनता दल (RJD) ने 2025 के बिहार विधानसभा चुनाव में वैशाली जिले की चर्चित ललगंज सीट से एक नया और साहसी चेहरा उतारा है — शिवानी शुक्ला, जो कभी बाहुबली रहे पूर्व विधायक विजय कुमार शुक्ला उर्फ़ मुन्ना शुक्ला की पुत्री हैं। उनकी उम्मीदवारी ने न केवल महागठबंधन के भीतर सीट-शेयरिंग को लेकर नई दरारें पैदा की हैं, बल्कि बिहार की राजनीति में एक बार फिर “विरासत बनाम वैकल्पिक विमर्श” की बहस को भी हवा दी है।

ललगंज विधानसभा क्षेत्र सामाजिक और राजनीतिक रूप से अत्यंत सक्रिय माना जाता है। यहाँ यादव, मुस्लिम, कुशवाहा, पासवान और ब्राह्मण मतदाताओं की सशक्त उपस्थिति है। मुस्लिम-यादव समीकरण लंबे समय से RJD की सबसे बड़ी ताक़त रहा है, लेकिन हाल के वर्षों में भाजपा और लोजपा ने भी यहाँ उल्लेखनीय पैठ बनाई है। जातीय अनुपात की दृष्टि से यादव लगभग 22–25%, मुस्लिम 15–18%, कुशवाहा-कोइरी 10–12%, अनुसूचित जातियाँ (मुख्यतः पासवान) 12–15% और सवर्ण समुदाय 10–12% हैं। यही कारण है कि यह सीट हर बार एक जटिल सामाजिक-राजनीतिक संग्राम का केंद्र बन जाती है।


पिछले तीन विधानसभा चुनावों में यहाँ सत्ता के समीकरण लगातार बदलते रहे — 2010 में लोजपा के राजकुमार सिंह विजयी हुए, 2015 में RJD के भोला राय ने NDA उम्मीदवार को पराजित किया, और 2020 में भाजपा के संजय सिंह टाइगर ने कांग्रेस प्रत्याशी को हराकर यह सीट अपने कब्ज़े में की। ललगंज हाजीपुर लोकसभा क्षेत्र के अंतर्गत आती है, जहाँ 2014 में रामविलास पासवान, 2019 में पशुपति पारस और 2024 में NDA प्रत्याशी ने जीत हासिल की थी। RJD-कांग्रेस गठबंधन ने 2024 में जबरदस्त चुनौती दी थी, किंतु मामूली अंतर से NDA को बढ़त मिली।

शिवानी शुक्ला का राजनीतिक प्रवेश 2024 के उत्तरार्ध में हुआ, जब उन्होंने तेजस्वी यादव की मौजूदगी में राष्ट्रीय जनता दल की सदस्यता ग्रहण की। उनके नाम की घोषणा होते ही कांग्रेस ने भी इसी सीट पर उम्मीदवार उतार दिया, जिससे महागठबंधन में दरार गहराई और सीट-वितरण विवाद सार्वजनिक हो गया। इस राजनीतिक पृष्ठभूमि के कारण ललगंज सीट 2025 के विधानसभा चुनाव की सबसे चर्चित सीटों में शामिल हो गई है।

शिवानी शुक्ला की राजनीतिक ताक़तें कई स्तरों पर नज़र आती हैं। सबसे पहले, उनके पिता मुन्ना शुक्ला की स्थानीय जड़ों और पुराने नेटवर्क का उन्हें सीधा लाभ मिल सकता है। एक युवा और महिला उम्मीदवार के रूप में वे परिवर्तन और नई उम्मीद की प्रतीक बनकर सामने आई हैं। तेजस्वी यादव का समर्थन, RJD का संगठित कैडर, यादव-मुस्लिम आधार और मीडिया में उनकी सक्रिय उपस्थिति ने उन्हें चर्चा के केंद्र में ला दिया है। “बेटी, बदलाव और भागीदारी” का नारा देकर वे अपने अभियान को महिलाओं और युवाओं के सशक्तिकरण के साथ जोड़ने का प्रयास कर रही हैं।

हालाँकि उनकी राह आसान नहीं है। उनके पिता की विवादित छवि — हत्या जैसे मामलों में नाम — विपक्ष के लिए सबसे बड़ा हमला-बिंदु है। स्वयं शिवानी राजनीतिक रूप से नई हैं, उनके पास न तो संगठनात्मक अनुभव है, न प्रशासनिक कार्य-समझ। कांग्रेस द्वारा उसी सीट से उम्मीदवार उतारे जाने से महागठबंधन के वोट-कटाव का ख़तरा है। दूसरी ओर, भाजपा-लोजपा गठबंधन का सवर्ण और पासवान वोट-बैंक मजबूत है, और NDA की ओर से इस बार सम्राट चौधरी मैदान में हैं — एक स्थापित और अनुभवी नेता, जो न सिर्फ़ सत्ता का लाभ बल्कि प्रशासनिक तंत्र और जातीय समीकरण (कुर्मी-कोइरी + सवर्ण + EBC) को अपने पक्ष में साधने में सक्षम हैं।


सम्राट चौधरी की ताक़त यह है कि वे मौजूदा विधायक और मंत्री हैं, उनके पास विकास कार्यों का ठोस रिकॉर्ड है और NDA का मज़बूत संगठन उन्हें समर्थन दे रहा है। लेकिन लंबे शासन-काल की वजह से एंटी-इंकम्बेंसी की भावना भी उभर रही है, जिसका लाभ RJD उठा सकती है। बेरोज़गारी, महँगाई, शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाओं की कमी जैसे स्थानीय मुद्दे इस बार मतदाताओं के मूड को प्रभावित कर सकते हैं।

राजनीतिक पर्यवेक्षकों के अनुसार यह चुनाव “सुशासन बनाम बदलाव” के नैरेटिव पर लड़ा जाएगा। NDA विकास और प्रशासनिक स्थिरता को अपनी उपलब्धि बताएगा, जबकि RJD परिवर्तन और जनसरोकार के मुद्दों पर हमला बोलेगी। ललगंज में सड़कों की जर्जर हालत, नल-जल योजना की धीमी प्रगति और शिक्षा-स्वास्थ्य ढाँचे की गिरती स्थिति चुनावी बहस का केंद्र बन चुकी है।

संभावित पूर्वानुमान के अनुसार यह सीट फिलहाल “Toss-Up” की स्थिति में है। 2020 में NDA को करीब 7% की बढ़त मिली थी, परंतु इस बार शिवानी शुक्ला की एंट्री ने समीकरण बदल दिए हैं। NDA को 48–51% और RJD को 46–49% वोट मिलने की संभावना जताई जा रही है। यदि महिला और युवा मतदाता बड़ी संख्या में RJD के पक्ष में मतदान करते हैं और महागठबंधन के भीतर वोट-ट्रांसफर सफल होता है, तो यह सीट निर्णायक मोड़ ले सकती है।

अंततः यह मुकाबला न केवल दो उम्मीदवारों के बीच है, बल्कि यह बिहार की नई राजनीतिक दिशा का भी प्रतीक बन गया है — जहाँ “विरासत” और “विकल्प” दोनों अपने-अपने तर्क लेकर मैदान में हैं। शिवानी शुक्ला के लिए यह चुनाव केवल एक सीट जीतने की कोशिश नहीं, बल्कि अपने पिता की विरासत को वैधता और आधुनिकता देने का प्रयास भी है। उनकी जीत यह बताएगी कि बिहार अब भी भावनात्मक जुड़ाव और सामाजिक समीकरणों के सहारे राजनीतिक बदलाव की संभावना रखता है; जबकि उनकी हार यह संकेत देगी कि मतदाता अब केवल नाम नहीं, बल्कि विकास, विश्वसनीयता और पारदर्शी नेतृत्व को प्राथमिकता दे रहे हैं।

निष्कर्षतः, ललगंज 2025 का यह चुनाव बिहार की राजनीति में पीढ़ीगत परिवर्तन का प्रतीक बनकर उभर रहा है — जहाँ पुरानी छवियों की विरासत नई उम्मीदों के साथ टकरा रही है, और जनता यह तय करने जा रही है कि राज्य की राजनीति आगे किस दिशा में बढ़ेगी — विरासत के साये में या वैकल्पिक विमर्श के उजाले में।

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