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Bihar Election 2025: गठबंधन की राजनीति: विस्तार, आंकड़े और चुनावी प्रभाव
Bihar Election 2025: बिहार चुनाव 2025 में गठबंधन की राजनीति फिर सुर्खियों में है। नीतीश कुमार के पाला बदलने से लेकर एनडीए-महागठबंधन की सीटों की जंग तक—क्या गठबंधन की विश्वसनीयता तय करेगी इस बार का नतीजा? जानिए आंकड़ों, रणनीतियों और जनता के मूड का विश्लेषण।
Bihar Election 2025 (Image Credit-Social Media)
Bihar Election 2025: बिहार की सियासत हमेशा गठबंधनों के उतार-चढ़ाव से तय होती रही है। 2025 का चुनाव खास इसलिए है क्योंकि पिछले तीन वर्षों में नीतीश कुमार ने दो बार पाला बदला—जनवरी 2024 में महागठबंधन छोड़कर एनडीए के साथ गए और फिर भाजपा-जदयू ने सरकार बनाई। इससे जनता में भरोसे और स्थिरता का बड़ा सवाल खड़ा हुआ है।
अतीत व हालिया आंकड़े
• 2024 के लोकसभा चुनाव में एनडीए (भाजपा, जदयू, लोजपा, हम) को 40 में से 30 सीटें मिलीं। महागठबंधन को 9 सीटें मिलीं, जिसमें राजद को सिर्फ 4।
• 2020 विधानसभा चुनाव में एनडीए को 125, महागठबंधन को 110 सीटें मिली थीं—राजद सबसे बड़ी पार्टी होकर भी सरकार नहीं बना पाई।
• 2025 में भाजपा छह जिलों में रणनीतिक रूप से “नो शो” करती दिख रही है, जिससे स्थानीय समीकरण बदल गए हैं। राजद ने सभी 38 जिलों में प्रत्याशी उतारे हैं।
• सीटों का बंटवारा भी चुनौतियों भरा रहा: एनडीए में भाजपा-जदयू दोनों ने 101-101 सीटें बांटी हैं, लोजपा को 28, हम/रालमो को 6-6। महागठबंधन में राजद 142, कांग्रेस 62, भाकपा (माले) 20, सीपीआई 9, सीपीएम 4 पर लड़ रही है।
रिसर्च व विश्लेषण
राजनीतिक पंडितों के मुताबिक, बिहार में गठबंधन की विश्वसनीयता वोटर के मन में सबसे जरूरी सवाल बन गई है। बार-बार मुख्यमंत्री बदलना, गठबंधनों का अस्थिर रहना और पार्टी नेताओं की अदला-बदली से जनता में आक्रोश है।
अबकी बार जातीय समीकरण से आगे, गठबंधन का वचन निभाने का ट्रैक रेकॉर्ड और युवा नेतृत्व की अपील निर्णायक रह सकती है। एनडीए ‘विकास और स्थिरता’ को अभियान का केंद्र बता रही है—प्रधानमंत्री मोदी का चेहरा स्थानीय मुद्दों के ऊपर बड़ा फैक्टर माना जा रहा है। महागठबंधन (राजद-तेजस्वी) शिक्षा, रोजगार, मानदेय व सामाजिक न्याय का वादा कर रहा है, साथ ही सीएम फेस के रूप में तेजस्वी की युवा अपील को सामने रख रहा है।
चुनावी असर
तेजस्वी यादव की नेतृत्व क्षमता, उनके घोषणापत्र में रोजगार, पंचायत प्रतिनिधियों का दोगुना मानदेय, हर जिले में राजद प्रत्याशी उतारना—युवा व ग्रामीण वोटरों को आकर्षित कर सकते हैं। दूसरी तरफ, एनडीए मोदी ब्रांड, “सुशासन” के पुराने वादे और संगठन शक्ति के भरोसे है। कुल मिलाकर, गठबंधन की विश्वसनीयता, सीटों की गणना और रणनीति इस चुनाव में बेहद निर्णायक रहेंगी। बागी उम्मीदवारों और स्थानीय छोटे दलों के वोट-कटुआ असर भी असरदार साबित हो सकते हैं।
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