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Bihar Election 2025: अकल या नकल, क्या केजरीवाल की राह पर हैं प्रशांत किशोर
बिहार विधानसभा चुनाव 2025 में प्रशांत किशोर की जन सुराज पार्टी तीसरे मोर्चे के रूप में उभर रही है। कभी चुनावी रणनीतिकार रहे पीके अब खुद मैदान में उतरकर बदलाव की राजनीति की बात कर रहे हैं। वहीं विपक्ष उन्हें अरविंद केजरीवाल की राह पर चलने वाला बता रहा है।
बिहार विधानसभा चुनाव की सरगर्मियां और चुनावी आरोप प्रत्यारोप की आंच तेज होती जा रही है। महागठबंधन और एनडीए की पारंपरिक लड़ाई में इस बार तीसरे के रूप में प्रशांत किशोर की जन सुराज पार्टी को देखा जा रहा है। कई लोग जहां पीके की पार्टी को वोट कटवा पार्टी के रूप में देख रहे हैं तो कुछ लोग पीके की उपस्थिति को भाजपा और महागठबंधन दोनों के लिए खतरे की घंटी मान रहे हैं। प्रशांत किशोर खुद ये कह रहे हैं कि वह या तो फर्श पर होंगे या अर्श पर यानी दुविधा में वह भी हैं।
प्रशांत किशोर ने कई प्रमुख भारतीय राजनीतिक दलों के लिए सफलता रणनीतिकार के रूप में काम किया है। इनमें प्रमुख हैं भाजपा, जेडीयू, कांग्रेस, आप, वाईएसआर, डीएमके, और टीएमसी। वैसे पीके का पहला राजनीतिक अभियान 2011 का था, जब उन्होंने नरेंद्र मोदी को तीसरी बार गुजरात का मुख्यमंत्री बनने में सहायता की थी। लेकिन व्यापक पहचान तब मिली जब उन्होंने 2014 के चुनाव में भाजपा को पूर्ण बहुमत से जीत दिलाने में अहम भूमिका निभाई।
कुल मिलाकर प्रशांत किशोर उर्फ पीके नरेंद्र मोदी, नीतीश कुमार, राहुल गांधी, कैप्टन अमरिंदर सिंह वाई. एस. जगन मोहन रेड्डी, अरविंद केजरीवाल, ममता बनर्जी, एम. के. स्टालिन आदि के लिए काम कर चुके हैं और इन सभी नेताओं की शैली को बारीकी से पढ़ चुके हैं। ममता बनर्जी के लिए काम करने के बाद उन्होंने चुनावी रणनीतिकार के अपने जीवन से संन्यास ले लिया और कुछ नया करने का मन बनाया।
लेकिन उनका यह संन्यास जल्द ही खत्म हो गया और 2 मई 2022 को, प्रशांत किशोर ने ट्विटर पर संकेत दिया कि अब वे “वास्तविक मालिकों – जनता” के पास लौटना चाहते हैं और “जन सुराज – जनता का सुशासन” की ओर कदम बढ़ाएंगे। 2 अक्टूबर 2024 को उन्होंने जन सुराज पार्टी का गठन किया और 2025 बिहार विधानसभा चुनाव में सभी 243 सीटों पर चुनाव लड़ने का एलान किया।
फिलहाल वह 100 से अधिक सीटों पर प्रत्याशी उतार चुके हैं। हालांकि खुद चुनाव लड़ने के लिए कदम बढ़ाकर वह पीछे घसीट चुके हैं लेकिन बिहार में अपनी ताकत दिखाने के फैसले पर डटे हुए हैं। हालांकि विश्वसनीयता के सवाल पर अभी ये सवाल तैर रहे हैं कि इस चुनाव में फर्श पर आने के बाद क्या वह एक बार फिर राजनीतिक संन्यास की ओर कदम बढ़ाएंगे।
हालांकि लोक जनशक्ति पार्टी के नेता और केंद्रीय मंत्री चिराग पासवान का मानना है कि प्रशांत किशोर अरविंद केजरीवाल की स्टाइल को कापी करके अपना परचम फहराने के मंसूबे देख रहे हैं। उनका मानना है कि प्रशांत किशोर अरविंद केजरीवाल की स्टाइल में एक के बाद एक जिस तरह से आरोप लगा रहे हैं, उनकी सत्यता किसी जांच से साबित हो सकती है कि इन आरोपों में दम है या ये सिर्फ जुमलेबाजी है।
उधर प्रशांत किशोर के अपने गृहराज्य में ताल ठोकने के बावजूद आम आदमी पार्टी के नेता अरविंद केजरीवाल भी अपने पूरे लाव लश्कर के साथ सभी सीटों पर चुनाव लड़ने की दावेदारी को लेकर मैदान में आ गए हैं। जिससे प्रशांत किशोर को अपनी रणनीति में बदलाव करना पड़ सकता है। चिराग पासवान पहले ही कह चुके हैं कि प्रशांत किशोर अरविंद केजरीवाल के नक्शे कदम पर चल रहे हैं। चिराग का कहना है कि अरविंद केजरीवाल भी दिल्ली की सत्ता पाने के लिए आरोपों की राजनीति से जमकर खेले थे लेकिन सत्ता पाते ही खामोश हो गए थे।
गौरतलब है कि प्रशांत किशोर ने कहा था कि वरिष्ठ भाजपा नेता और उपमुख्यमंत्री सम्राट चौधरी का नाम 1995 के एक हत्या के मामले में कथित तौर पर लिया गया था और वह घटना के समय खुद को नाबालिग बताते हुए एक दस्तावेज़ पेश करके मुकदमे से बच निकले। राज्य विधान परिषद के लिए निर्वाचित होते समय श्री चौधरी द्वारा दायर हलफनामा इस बात का प्रमाण है कि अदालत के समक्ष उनके द्वारा प्रस्तुत किए गए आरोप झूठे थे और इसलिए उन्हें बर्खास्त करके जेल भेज दिया जाना चाहिए।
दूसरी ओर जदयू के राष्ट्रीय महासचिव और मंत्री अशोक चौधरी प्रशांत किशोर को ₹200 करोड़ के बेनामी ज़मीन लेन-देन के आरोप में मानहानि का नोटिस भेज चुके हैं। हालांकि जन सुराज पार्टी के संस्थापक ने चौधरी के खिलाफ अपना रुख कड़ा करते हुए धमकी दी है कि अगर मंत्री ने "सार्वजनिक रूप से" कानूनी नोटिस वापस नहीं लिया, तो वे "500 करोड़ रुपये के और भ्रष्ट सौदों" का पर्दाफाश करेंगे।
इसके अलावा यहां यह बात भी महत्वपूर्ण है कि प्रशांत किशोर ने कुछ महीने पहले शांभवी, जो समस्तीपुर से लोजपा (रामविलास) की सांसद हैं, के लिए टिकट दिलाने के लिए पासवान को रिश्वत देने का आरोप लगाते हुए मुकदमा दायर किया था।
अब सवाल यह है कि प्रशांत किशोर की राजनीति का ऊंट इस चुनाव में किस करवट बैठता है यह बिहार की जनता तय करेगी नीतीश बाबू के सुशासन और तेजस्वी यादव के वादों की पोटली में से किसी एक को या प्रशांत किशोर के रूप में किसी नये को एंट्री देनी है या नहीं।
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