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Bihar Assembly Election 2025: बिहार का चुनाव, 'विकास' का वादा बनाम 'पहचान' की राजनीति
Bihar Assembly Election 2025: बिहार चुनाव 2025 में एक तरफ नीतीश कुमार का ‘विकास मॉडल’ है तो दूसरी ओर तेजस्वी यादव का ‘युवा बदलाव’। क्या इस बार रोजगार, शिक्षा और स्वास्थ्य जैसे मुद्दे जातीय राजनीति पर भारी पड़ेंगे? पढ़िए बिहार की बदलती सियासत की जमीनी कहानी।
Bihar Election 2025 (Image Credit-Social Media)
Bihar Assembly Election 2025: मोहम्मदपुर गाँव के रमेश कुमार (22 साल) की आँखों में नौकरी पाने की चाहत है। उनकी उम्र की हर दूसरी युवा आँखों में वही सवाल है – "कौन सा नेता हमें रोजगार देगा?" रमेश कहते हैं, "जाति से बड़ा अब रोटी का सवाल है। लेकिन जब वोट डालने जाते हैं, तो घरवाले पुराने समीकरण ही याद दिलाते हैं।"
रमेश की यह दुविधा आज पूरे बिहार की कहानी कह रही है। बिहार विधानसभा चुनाव की सरगर्मियों के बीच, यह लड़ाई सिर्फ सत्ता हासिल करने की नहीं, बल्कि राज्य के भविष्य की दिशा तय करने की है। क्या बिहार 'जाति' और 'सामाजिक न्याय' के पुराने मंत्रों में बंधा रहेगा, या फिर 'रोजगार', 'शिक्षा' और 'स्वास्थ्य' जैसे विकास के मुद्दों को प्राथमिकता देगा?
राजनीतिक रंगमंच: गठबंधनों का जटिल जाल
इस बार का चुनावी मैदान दो मुख्य गठबंधनों के बीच साफ नजर आ रहा है।
1. राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (NDA): इस गठबंधन की कमान मुख्यमंत्री नीतीश कुमार (जद-यू) के हाथों में है, जिन्होंने पिछले 15 सालों में 'सुशासन बाबू' की छवि बनाई है। भाजपा इस गठबंधन की प्रमुख सहयोगी है और अपने संगठनात्मक ताकत और केंद्रीय नेताओं के दम पर लड़ाई लड़ रही है। NDA का मुख्य नारा है - "विकास और शांति।" वे बिहार में कानून-व्यवस्था में सुधार और इंफ्रास्ट्रक्चर के विकास को अपनी बड़ी उपलब्धि बता रहे हैं।
2. महागठबंधन (Grand Alliance): इस मोर्चे का नेतृत्व विपक्ष के मुख्य सपनेदार तेजस्वी यादव (राजद) कर रहे हैं, जो खुद को 'युवा बदलाव' का चेहरा बता रहे हैं। कांग्रेस और वाम दलों का समर्थन उनके पास है। महागठबंधन की मुख्य चुनौती NDA के 'विकास के दावों' को चुनौती देना है। उनका हमला "भ्रष्टाचार, बेरोजगारी और कोरोना काल में प्रशासनिक विफलता" पर है। तेजस्वी यादव ने ‘10 लाख नौकरियाँ’ का वादा करके सीधे युवाओं को लक्षित किया है।
नेतृत्व का संघर्ष: यह चुनाव दो अलग-अलग पीढ़ियों और नेतृत्व शैलियों की टक्कर भी है। एक तरफ अनुभवी और रणनीतिकार नीतीश कुमार हैं, तो दूसरी तरफ युवा और आक्रामक तेजस्वी यादव।
वोटरों के दिल-दिमाग में क्या है? (Key Issues)
ग्राउंड रिपोर्टिंग से साफ जाहिर होता है कि मतदाता इस बार कुछ खास मुद्दों पर वोट डालने को तैयार हैं।
· रोजगार और पलायन: बिहार का सबसे बड़ा दर्द। हर साल लाखों युवा रोजगार की तलाश में दिल्ली, पंजाब, महाराष्ट्र जैसे राज्यों की ओर पलायन करते हैं। गया के एक युवा आकाश कहते हैं, "हमें चाहिए काम, तभी तो हम वोटर बनेंगे।"
· शिक्षा और स्वास्थ्य: कोरोना काल ने स्वास्थ्य सेवाओं की खस्ता हालत उजागर कर दी है। गाँव-गाँव में प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों में डॉक्टर और दवाइयों का अकाल है। इसी तरह, सरकारी स्कूलों की हालत भी चिंताजनक है।
· कृषि संकट: बाढ़ और सूखे ने किसानों की मुश्किलें बढ़ा दी हैं। फसल का उचित दाम न मिलना भी एक बड़ी शिकायत है।
· कानून-व्यवस्था: विपक्ष "जंगल राज-2" लौटने का आरोप लगा रहा है, जबकि सत्ता पक्ष इसे खारिज करते हुए शांति और सुरक्षा का रिकॉर्ड गिना रहा है।
जाति का सवाल: क्या अब भी जाति ही तय करेगी राज?
बिहार की राजनीति में जाति एक कड़वी सच्चाई है। महादलित, अतिपिछड़ा वर्ग (EBC), यादव, कोइरी-कुर्मी - इन सभी के वोट बैंक पर नजरें टिकी हैं। हालाँकि, एक बदलाव की बयार भी दिख रही है। शहरी और शिक्षित युवा वर्ग अब जाति से ऊपर उठकर विकास के मुद्दों पर वोट करना चाहता है। लेकिन, ग्रामीण इलाकों में जातीय समीकरण अभी भी मजबूत हैं और दलों की रणनीति इसी के इर्द-गिर्द घूम रही है।
ग्राउंड रियलिटी: अलग-अलग क्षेत्र, अलग-अलग मुद्दे
· कोसी क्षेत्र (पूर्णिया, सहरसा): यहाँ बाढ़ एक प्रमुख चुनावी मुद्दा है। लोग बाढ़ नियंत्रण और राहत कार्यों में हुई प्रगति से नाखुश हैं।
· मिथिला (दरभंगा, मधुबनी): शिक्षा और रोजगार के अवसरों की मांग प्रबल है। यहाँ का युवा वर्ग बहुत सक्रिय है।
· दक्षिण बिहार (गया, नवादा): कानून-व्यवस्था और भूमि सुधार जैसे मुद्दे प्रमुख हैं।
विशेषज्ञ की नजर से
पटना विश्वविद्यालय के राजनीति शास्त्र के प्रोफेसर डॉ. एस. के. सिंह कहते हैं, "बिहार का यह चुनाव एक टर्निंग प्वाइंट साबित हो सकता है। नीतीश कुमार का विकास का मॉडल अब युवाओं को उतना आकर्षित नहीं कर पा रहा। वहीं, तेजस्वी यादव ने सही मुद्दे उठाए हैं, लेकिन उन्हें जमीनी स्तर पर अपनी बात पहुँचाने में चुनौती है। अंतिम नतीजा इस बात पर निर्भर करेगा कि दल कितनी कुशलता से जाति और विकास के फॉर्मूले को मिला पाते हैं।"
निष्कर्ष: भविष्य की राह
बिहार की जनता इस बार एक कठिन चुनाव के सामने है। एक तरफ अनुभव और स्थिरता का वादा है, तो दूसरी तरफ बदलाव और नई उम्मीदों का नारा। रमेश कुमार जैसे करोड़ों युवाओं का वोट इस बात का फैसला करेगा कि बिहार अपने अतीत के बंधनों में जकड़ा रहेगा या फिर विकास और रोजगार की नई इबारत लिखेगा। बिहार का यह वोट न सिर्फ पटना के सचिवालय का रास्ता तय करेगा, बल्कि देश की राजनीति के लिए एक नया संदेश भी लेकर आएगा।
· बिहार चुनाव: एक नजर में
· कुल सीटें: 243
· मुख्य दावेदार: NDA बनाम महागठबंधन
· प्रमुख मुद्दे: रोजगार, शिक्षा, स्वास्थ्य, कृषि संकट
· एक्स-फैक्टर: युवा मतदाता (18-40 साल की उम्र के करोड़ों वोटर)
· किसान की आवाज: पूर्णिया के किसान श्याम सुंदर यादव कहते हैं, "हमें बाढ़ से निपटने का ठोस समाधान चाहिए, न कि सिर्फ चुनावी वादे।"
· महिला मतदाता की चिंता: पटना की रहने वाली शिक्षिका अंजली कुमारी कहती हैं, "मेरे लिए सबसे बड़ा मुद्दा सुरक्षा और बेटियों के लिए बेहतर शिक्षा है।"
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