तो राघोपुर के रण में होगी बिहार की सबसे बड़ी जंग! PK बनाम तेजस्वी से बदल जाएगा चुनावी समीकरण?

पीके का राघोपुर से चुनाव लड़ने का संकेत न केवल राजद खेमे की चिंता को बढ़ा रहा है, बल्कि यह बिहार की सियासत में एक नया नैरेटिव भी बनकर सामने आ सकता है।

Priya Singh Bisen
Published on: 6 Sept 2025 2:49 PM IST
Bihar Chunav 2025
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Bihar Chunav 2025 (PHOTO: social media)

Bihar Chunav 2025: बिहार की राजनीति में इन दिनों सियासी हलचल तेज़ होती दिखा रही है। इसी कड़ी में जो सबसे बड़ा सवाल लोगों के जुबां पर है— क्या राघोपुर की धरती इस बार बिहार की सबसे बड़ी सियासी जंग का गवाह बन सकेगी? वजह साफ है, जन सुराज पार्टी के संस्थापक प्रशांत किशोर (PK) ने घोषणा कर दी है कि वे होने वाले विधानसभा चुनाव या तो करगहर से लड़ेंगे या फिर राघोपुर से... अब चूंकि राघोपुर राजद (RJD) का परंपरागत गढ़ और तेजस्वी यादव की राजनीतिक कर्मभूमि रही है, ऐसे में पीके का यह दांव सीधा-सीधा तेजस्वी की चुनौती और बड़ा बना सकता है।

प्रशांत किशोर का दांव

राघोपुर वैशाली जिले का महत्वपूर्ण विधानसभा क्षेत्र है। यह सीट लालू परिवार की शुरू से ही पहचान रही है। कभी लालू यादव और राबड़ी देवी यहां से चुनाव लड़ लड़े थे और फिलहाल दो बार से यहां से तेजस्वी यादव विधायक रह चुके हैं। ऐसे में पीके का राघोपुर से चुनाव लड़ने का संकेत न केवल राजद खेमे की चिंता को बढ़ा रहा है, बल्कि यह बिहार की सियासत में एक नया नैरेटिव भी बनकर सामने आ सकता है।

जातीय समीकरणों से तय होगा खेल

राघोपुर में यादव और मुस्लिम वोटर लगभग 40% हैं और यह RJD का कोर वोट बैंक कहलाता है। लेकिन 15-20% राजपूत और 25% EBC (extremely backward class) वोटर भी यहां निर्णायक साबित हो सकते हैं। साल 2010 की बात करें तो राबड़ी देवी को इसी सीट पर JDU उम्मीदवार सतीश कुमार ने हराकर यह साबित कर दिया था कि गैर-यादव वोटरों का ध्रुवीकरण खेल कभी भी पलट सकता है। अब पीके ब्राह्मण समुदाय से संबंध रखते हैं और वे विकास और रोजगार जैसे मुद्दों के माध्यम से गैर-यादव वोटरों को जोड़ने की रणनीति बना रहे हैं।

पिछले चुनावों का हिसाब-किताब पर एक नज़र:

साल 2005: लालू यादव ने JDU के सतीश कुमार को तकरीबन 22,000 वोटों से हराया।

साल 2010: राबड़ी देवी को सतीश कुमार ने करीब 12,000 वोटों से मात दी थी।

साल 2015: तेजस्वी यादव ने BJP के सतीश राय को लगभग 22,733 वोटों से हराया था।

साल 2020: तेजस्वी यादव ने BJP के सतीश कुमार को लगभग 38,174 वोटों से मात दी थी।

ये आंकड़े स्पष्ट रूप से बताते हैं कि मुकाबला भले ही राजद के पक्ष में झुका रहा हो, लेकिन अंतर हमेशा ज़्यादा नहीं रहा।

बिहार की राजनीति पर प्रभाव

यदि पीके राघोपुर से चुनाव लड़ते हैं तो यह मुकाबला केवल जातिगत समीकरणों तक सीमित नहीं रहेगा, बल्कि विकास, रोजगार और युवाओं के मुद्दे भी मुख्य विमर्श में होंगे। यही सबसे बड़ा कारण है कि राजनीति के जानकार मानते हैं कि यह जंग बिहार की सियासी तस्वीर को बदल सकती है।

तेजस्वी के लिए बड़ी चुनौती

महागठबंधन के मुख्यमंत्री चेहरे के तौर पर तेजस्वी यादव को राघोपुर में यह मुकाबला अपनी राजनीतिक पकड़ साबित करने का अवसर देगा। वहीं पीके के लिए यह चुनावी मैदान उन्हें बिहार में तीसरे विकल्प के तौर पर मजबूत पहचान दिला सकता है। अब देखने वाली बात यह होगी कि क्या सच में प्रशांत किशोर राघोपुर से चुनाव लड़कर तेजस्वी यादव को बड़ी चुनौती देते हैं या करगहर से मैदान संभालते हैं। लेकिन इतना तय है कि राघोपुर की लड़ाई बिहार की राजनीति को नया मोड़ अवश्य देगी।

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