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Bihar Assembly Elections 2025: बिहार विधानसभा चुनाव, एक शोधपरक अध्ययन
Bihar Assembly Elections 2025: कांग्रेस से लेकर मंडल राजनीति, गठबंधन दौर और 2025 के विधानसभा चुनावी समीकरणों तक का विस्तृत अध्ययन।
Bihar Assembly Elections 2025
Bihar Assembly Elections: बिहार की राजनीति भारतीय लोकतंत्र की सबसे दिलचस्प प्रयोगशालाओं में से एक मानी जाती है। यहाँ के चुनाव केवल सत्ता-परिवर्तन की कहानी नहीं हैं, बल्कि वे सामाजिक न्याय, जातीय संतुलन, आर्थिक विषमताओं और वैचारिक प्रयोगों की परतें खोलते हैं। यदि भारतीय राजनीति के भविष्य की कोई रूपरेखा बनानी हो, तो उसमें बिहार की राजनीति के अध्ययन को नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता।
स्वतंत्रता के बाद शुरुआती तीन दशकों तक बिहार में कांग्रेस का निर्विवाद वर्चस्व रहा। श्रीकृष्ण सिंह और अनुग्रह नारायण सिंह जैसे नेताओं ने कांग्रेस को जमीनी पकड़ दी। लेकिन 1970 के दशक में जयप्रकाश नारायण के संपूर्ण क्रांति आंदोलन ने कांग्रेस की पकड़ ढीली की और बिहार में सामाजिक न्याय की राजनीति के लिए जमीन तैयार की।
मंडल आयोग और सामाजिक न्याय की धारा
1990 के दशक में मंडल आयोग की सिफारिशों के लागू होने के बाद राजनीति का स्वरूप बदल गया। लालू प्रसाद यादव और बाद में राबड़ी देवी के नेतृत्व में राजद ने पिछड़े वर्गों और अल्पसंख्यकों को संगठित कर लंबा शासन किया। इस काल में “सामाजिक न्याय” का नारा राजनीति की धुरी बन गया, लेकिन विकास की धीमी गति और “जंगलराज” की छवि भी इसी दौर में पनपी।
गठबंधन का दौर
2005 से नीतीश कुमार ने भाजपा के साथ गठबंधन कर सत्ता संभाली। “सुशासन”, सड़क, बिजली और शिक्षा सुधार ने उन्हें लोकप्रिय बनाया। उनकी व्यावहारिक राजनीति ने कभी भाजपा के साथ, तो कभी राजद और कांग्रेस के साथ गठबंधन में नई संभावनाएँ खोलीं।
राष्ट्रीय स्तर पर भाजपा के बढ़ते प्रभाव का असर बिहार पर भी पड़ा। नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता ने बिहार में भाजपा का आधार मज़बूत किया, विशेषकर शहरी वर्ग, सवर्ण जातियों और युवाओं में।
आँकड़ों का अध्ययन
• 2010 चुनाव—एनडीए (भाजपा + जदयू)—206 सीटें। यह नीतीश कुमार के ‘सुशासन’ अभियान की सबसे बड़ी सफलता थी।
2015 चुनाव—महागठबंधन (राजद + जदयू + कांग्रेस)—178 सीटें। भाजपा और सहयोगी—58 नीतीश और लालू का साथ भाजपा के लिए करारा झटका साबित हुआ।
2020 चुनाव—एनडीए: 125 सीटें (भाजपा 74, जदयू 43, हम 4, वीआईपी 4)। महागठबंधन: 110 (राजद 75, कांग्रेस 19, वाम दल 16)। भाजपा ने पहली बार जदयू से ज़्यादा सीटें जीतीं। वोट प्रतिशत: भाजपा ~19.5%, राजद ~23.1%, जदयू ~15.4%। इन आँकड़ों से साफ है कि बिहार में सत्ता का संतुलन लगातार गठबंधनों पर टिका रहा है।
वर्तमान चुनौतियाँ और मतदाताओं की प्राथमिकताएँ
आज बिहार की राजनीति केवल जातीय समीकरण तक सीमित नहीं है। बेरोजगारी, बड़े पैमाने पर पलायन, शिक्षा और स्वास्थ्य ढांचे की कमी, और कानून-व्यवस्था जैसे मुद्दे भी उतने ही महत्वपूर्ण हो चुके हैं। लाखों युवा रोज़गार की तलाश में दिल्ली, मुंबई और गुजरात जैसे राज्यों का रुख करते हैं। दूसरी ओर महिलाओं की भागीदारी, खासकर पंचायतों में 50% आरक्षण के बाद, धीरे-धीरे विधानसभा चुनावों में भी प्रभावी हो रही है।
संभावित समीकरण
2025 के चुनाव में भाजपा, जदयू और राजद अब भी प्रमुख खिलाड़ी बने रहेंगे। कांग्रेस की भूमिका सीमित है, लेकिन गठबंधन की राजनीति में उसकी ज़रूरत बनी रहेगी। नए प्रयोगों की भी संभावना है—जैसे प्रशांत किशोर की “जनसुराज” यात्रा।
बिहार विधानसभा चुनाव केवल जीत-हार का खेल नहीं है, बल्कि यह सामाजिक न्याय और विकास के बीच संतुलन साधने का प्रयास है। इतिहास बताता है कि जनता केवल जातीय पहचान पर वोट नहीं देती, बल्कि रोज़मर्रा की समस्याओं और आकांक्षाओं पर भी ध्यान देती है। यही कारण है कि बिहार का हर चुनाव भारतीय राजनीति के भविष्य की दिशा तय करने वाला अध्याय बन जाता है।
2025 के जनमत सर्वे, समीकरण और संकेत
2025 के विधानसभा चुनाव से ठीक पहले आए कई ओपिनियन पोल एनडीए को बढ़त देते दिख रहे हैं, पर इसके भीतर की बारीकियाँ महत्वपूर्ण हैं। टाइम्स नाउ–JVC के एक सर्वे के अनुसार, एनडीए लगभग 136 सीटों तक पहुँच सकता है—जो स्पष्ट बहुमत की दहलीज़ पार करने का संकेत है। यह आँकड़ा बताता है कि भाजपा का ग्राफ ऊपर है, जबकि जदयू को 2020 के मुक़ाबले सीटों में गिरावट का जोखिम बना हुआ है।
इसी रुझान की पुष्टि Moneycontrol के अलग-अलग चरणों के सर्वे करते हैं—चित्र यह उभरता है कि भाजपा को बड़ा लाभ, पर जदयू का प्रदर्शन 2020 से नीचे रह सकता है। साथ ही, मुख्यमंत्री चेहरे के प्रश्न पर मतदाता पसन्द “एकतरफ़ा” नहीं है: मई 2025 के एक सर्वे में तेजस्वी यादव 39% और नीतीश कुमार 34% पर दिखे; यानी शासन-परक मुद्दों के बावजूद विपक्षी चेहरे के लिए भी पर्याप्त झुकाव मौजूद है।
सर्वे यह भी दिखाते हैं कि नए/छोटे दल सीमित पर प्रभावी भूमिका निभा सकते हैं—कुछ आकलनों में एआईएमआईएम ~3 और जनसुराज ~2 सीटें तक पाने की संभावना जताई गई है। हालाँकि ऐसी सूचनाएँ सर्वे-से-सर्वे बदलती हैं, फिर भी यह तथ्य महत्वपूर्ण है कि क़रीबी त्रिकोणीय/बहुकोणीय मुक़ाबलों में ये दल नतीजों को पलटने वाले “स्पॉइलर” या “किंगमेकर” बन सकते हैं।
व्यापक राजनीतिक परिदृश्य में मतदाता सूची/‘वोट चोरी’ बहस ने माहौल को तीखा बनाया है। महागठबंधन 2020 में कम अंतर से हारी सीटों पर विशेष फोकस कर रहा है और चुनाव आयोग से पारदर्शी प्रक्रिया की माँग तेज़ है—इसी संदर्भ में हाल के दिनों में विपक्षी नेताओं के बयान चर्चा में रहे।
गठबंधन-राजनीति की कसरत जारी है: महागठबंधन में JMM और एलजेपी (पशुपति पारस) गुट के आने से सीट-बंटवारा और पेचीदा हुआ है; उधर एनडीए खेमे में भी स्थानीय आकांक्षाओं को समेटते हुए तालमेल बैठाने की चुनौती बनी हुई है।
दल-बदल/नए दावेदारों की सक्रियता भी उल्लेखनीय है—जैसे ओमप्रकाश राजभर (एसबीएसपी) का बिहार में 29 सीटों पर दावा, जो ओबीसी वोट-समूहों के क्षेत्रीय पुनर्संयोजन की कोशिश समझी जा रही है; इससे आरजेडी की परंपरागत बढ़त वाले हिस्सों में त्रिकोणीयता बढ़ सकती है और भाजपा को अप्रत्यक्ष लाभ की धारणा बनती है।
इधर एक अलग धारा के तौर पर जगद्गुरु शंकराचार्य अविमुक्तेश्वरानंद ने “गौ-रक्षा संकल्प यात्रा” के साथ बिहार की सभी 243 सीटों पर प्रत्याशी उतारने की मंशा जताई है—यह प्रयोग सीमित प्रभाव वाला भले हो, पर हिन्दुत्व/गौ-राजनीति के वोट-बेस में सूक्ष्म विभाजन का कारक बन सकता है, जिसका नेट-इफ़ेक्ट अंतिम हफ़्तों की बिसात तय करेगा।
चुनावी मानस पर प्रशांत किशोर की बयानबाज़ी भी असर डाल रही है—उन्होंने जदयू को 25 सीटों से ऊपर न जाने की चुनौतीपूर्ण भविष्यवाणी की है, जिसे लेकर सियासी बहस गर्म है। ये बयान चुनाव-पूर्व “बातचीत का एजेंडा” तय करते हैं, पर ज़मीनी असर अंततः प्रत्याशी-चयन, सीट-बंटवारा और बूथ-प्रबंधन पर निर्भर करेगा।
सार-संकेत—
एनडीए एज—पर उसके भीतर भाजपा अपसाइड, जदयू डाउनसाइड का पैटर्न। सीएम-फेस पर मतदाता मन विभाजित—तेजस्वी बनाम नीतीश में करीबी पसन्द। छोटे/नए दल और मुद्दा-आधारित आंदोलनों (वोटाधिकार/गौ-राजनीति) से सूक्ष्म वोट-शिफ़्ट। महागठबंधन की रणनीति—नैरो-मार्जिन सीटों पर कन्सॉलिडेशन और सूची/प्रक्रिया मुद्दों का राजनीतिकरण।अंतिम हफ़्तों में सीट-बंटवारा, उम्मीदवार चयन, महिला-युवा मोबलाइज़ेशन और स्थानीय गठबंधन-व्यवस्था निर्णायक।
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