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CBI Raid Medical Mafia: घिनौना चेहरा मेडिकल शिक्षा माफिया का, घूस का खेल, फर्जी डॉक्टर और एक बाबा का जाल, सीबीआई ने उजागर किया सच

CBI Raid Medical Education Mafia: भारत के इतिहास के सबसे दुस्साहसी घोटालों में से एक का पर्दाफाश करते हुए केंद्रीय जांच ब्यूरो (CBI) ने मेडिकल शिक्षा व्यवस्था में फैले भ्रष्टाचार के एक सड़ांध भरे नेटवर्क को बेनकाब कर दिया है।

Newstrack Network
Published on: 6 July 2025 6:36 PM IST
CBI Raid On Medical Education Mafia
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CBI Raid On Medical Education Mafia 

CBI Raid Medical Education Mafia: भारत के इतिहास के सबसे दुस्साहसी घोटालों में से एक का पर्दाफाश करते हुए केंद्रीय जांच ब्यूरो (CBI) ने मेडिकल शिक्षा व्यवस्था में फैले भ्रष्टाचार के एक सड़ांध भरे नेटवर्क को बेनकाब कर दिया है। यह मल्टी-करोड़ घोटाला, जो छत्तीसगढ़, मध्यप्रदेश, राजस्थान, दिल्ली, उत्तर प्रदेश और कर्नाटक तक फैला है, इसमें वरिष्ठ सरकारी अधिकारी, प्रमुख शिक्षाविद, दलाल, और एक स्वयंभू बाबा तक शामिल हैं। इनकी मिलीभगत से देश में घटिया मेडिकल कॉलेजों से फर्जी डॉक्टर पैदा किए जा रहे थे। यह मामला सिर्फ एक घोटाला नहीं है, बल्कि करोड़ों लोगों की सेहत पर सीधा खतरा है।

CBI द्वारा दर्ज की गई प्राथमिकी (FIR) में कुल 35 लोगों के नाम हैं, जिनमें शामिल हैं:

डी.पी. सिंह, पूर्व यूजीसी अध्यक्ष और वर्तमान में TISS के चांसलर, सुरेश सिंह भदौरिया, इंदौर स्थित इंडेक्स मेडिकल कॉलेज के चेयरमैन और ‘रावतपुरा सरकार’, एक स्वयंभू धर्मगुरु, जिनका प्रभाव आश्रमों से लेकर राजनीतिक गलियारों तक फैला हुआ है। इस गिरोह ने नेशनल मेडिकल कमीशन (NMC) की मान्यता दिलाने के लिए 40 से अधिक मेडिकल कॉलेजों की मंजूरी प्रक्रिया में हेरफेर की।

इनके गंदे हथकंडे थे:

  • डमी फैकल्टी
  • फर्जी निरीक्षण रिपोर्ट
  • झूठे मरीजों के रिकॉर्ड और गोपनीय फाइलों का लीक होना।

करोड़ों की रिश्वत हवाला और बैंक चैनलों के माध्यम से बहती रही, जिससे अयोग्य संस्थानों को भी मान्यता मिल गई।

घोटाले का केंद्र

इस रैकेट का मुख्य केंद्र था: श्री रावतपुरा सरकार इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज़ एंड रिसर्च (SRIMSR), रायपुर। यहाँ CBI ने छह लोगों को रंगे हाथों पकड़ा, जिनमें तीन डॉक्टर भी शामिल थे। इनसे ₹55 लाख रिश्वत की रकम बरामद हुई थी, जो एक पॉजिटिव निरीक्षण रिपोर्ट के लिए दी गई थी।

छह राज्यों में 40 ठिकानों पर छापे मारे गए

एक निरीक्षण टीम के सदस्य के साथी से ₹38.38 लाख, एक अन्य अधिकारी के घर से ₹16.62 लाख जब्त किए गए।

इंदौर के इंडेक्स मेडिकल कॉलेज में CBI को मिला:

  • भूतिया फैकल्टी
  • क्लोन फिंगरप्रिंट से बायोमेट्रिक हेराफेरी
  • फर्जी अनुभव प्रमाण पत्र

दक्षिण भारत में भी फर्जीवाड़ा

दक्षिण भारत भी इस जाल से अछूता नहीं रहा। कडिरी (आंध्र प्रदेश) के बी. हरि प्रसाद, हैदराबाद के अंकम रामबाबू, और विशाखापत्तनम के कृष्णा किशोर ने फर्जी मरीज और डमी फैकल्टी की व्यवस्था कर निरीक्षण में धोखाधड़ी की। विशाखापत्तनम का गायत्री मेडिकल कॉलेज ने ₹50 लाख हवाला के ज़रिए, और वारंगल का फादर कोलंबो मेडिकल साइंसेज़ संस्थान ने ₹4 करोड़ बैंकिंग चैनलों के माध्यम से रिश्वत को वैध लेनदेन के रूप में छिपाया।

एक चौंकाने वाली बात ये भी सामने आई कि एनएमसी के पूर्व सदस्य जीतू लाल मीणा ने रिश्वत की रकम से राजस्थान में ₹75 लाख का हनुमान मंदिर बनवाया।

व्यवस्था में सड़न

CBI की जांच से यह स्पष्ट हुआ कि यह भ्रष्टाचार व्यवस्था की जड़ों तक फैला है। स्वास्थ्य मंत्रालय के अधिकारी जैसे: पूनम मीणा, धर्मवीर, और पियूष मल्यान आदि ने गोपनीय फाइलों के फोटो लेकर उन्हें व्हाट्सऐप के ज़रिए कॉलेजों को भेजा।

गीताांजलि यूनिवर्सिटी के रजिस्ट्रार मयूर रावल और गुरुग्राम के वीरेंद्र कुमार जैसे दलालों ने ₹25-30 लाख प्रति लीक के हिसाब से यह खेल खेला। इसका नतीजा बिना आधारभूत ढांचे और योग्य फैकल्टी वाले कॉलेज, जिन्हें डॉक्टर तैयार करने की मंजूरी मिल गई — ऐसे डॉक्टर जो कभी आपकी जान बचाने की जिम्मेदारी उठाएंगे।

जनता के भरोसे से विश्वासघात

NMC ने अब तक कुछ कदम उठाए हैं: शामिल निरीक्षकों को ब्लैकलिस्ट कर दिया है और 2025-26 सत्र में कॉलेजों की एमबीबीएस या पीजी सीटों में विस्तार पर रोक लगा दी है। लेकिन जब तक 40 से अधिक कॉलेज इस रैकेट में शामिल हैं और अभी तक केवल 8 गिरफ्तारियाँ हुई हैं (जिनमें 3 एनएमसी डॉक्टर और SRIMSR के निदेशक अतुल कुमार तिवारी शामिल हैं), तब तक आलोचकों का मानना है कि यह कार्रवाई बहुत कम और बहुत देर से हुई है।

बाबा और नेताओं की मिलीभगत

इस घोटाले में रावतपुरा सरकार का नाम खासा राजनीतिक विस्फोटक है।

उनका ट्रस्ट पहले से ही भूमि अतिक्रमण और अप्रमाणित कॉलेजों के आरोपों में घिरा रहा है। उनके राजनीतिक नेताओं और नौकरशाहों से संबंध, सोशल मीडिया पर वायरल फोटो के रूप में देखे जा सकते हैं, जो यह सवाल उठाते हैं कि इतना बड़ा घोटाला कैसे बिना रोक-टोक के फलता-फूलता रहा।

यूजीसी के पूर्व अध्यक्ष और TISS के वर्तमान कुलपति डी.पी. सिंह की भूमिका भी शैक्षणिक संस्थानों की साख पर प्रश्नचिह्न खड़ा करती है।

अब सवाल उठते हैं…

CBI अपनी जांच गहरा रही है, कैश ट्रेल्स को ट्रेस कर रही है और नई गिरफ्तारियों की तैयारी कर रही है, लेकिन सबसे बड़ा सवाल यह है:

क्या ये माफिया वर्षों से रेगुलेटर्स की नाक के नीचे फलता रहा?

क्या सीटी बजाने वालों की आवाज़ दबा दी गई और सबसे खतरनाक – क्या ऐसे अनगिनत फर्जी डॉक्टर पहले से ही मरीजों का इलाज कर रहे हैं?

CBI का कहना है कि आगे और गिरफ्तारियाँ होंगी और जल्द चार्जशीट दाखिल की जाएगी — लेकिन अब तक जो नुकसान होना था, वह हो चुका है।

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