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Karnataka politics: मंदिरों में लिखी जा रही है कर्नाटक के नए CM की कहानी? डीके शिवकुमार की गुप्त पूजा से मचा सियासी भूचाल
DK Shivakumar temple visit: कर्नाटक की राजनीति में मचा घमासान! डिप्टी सीएम डीके शिवकुमार मंदिरों की शरण में, गुप्त पूजा और बिना सुरक्षा के दर्शन ने बढ़ाई सीएम पद की अटकलें।
DK Shivakumar temple visit: कर्नाटक की सियासत इन दिनों गर्म है और चर्चा के केंद्र में हैं राज्य के डिप्टी सीएम डीके शिवकुमार, जो इन दिनों सियासत नहीं, साधना में लीन हैं। लेकिन सवाल ये है क्या ये भक्ति है या सीएम पद की तैयारी? पिछले कुछ दिनों से डीके शिवकुमार लगातार एक मंदिर से दूसरे मंदिर की यात्रा कर रहे हैं। कभी कोडी मठ में विशेष पूजा, तो कभी नागेश्वर मंदिर में गुप्त दर्शन। बिना सुरक्षा, बिना शोर-शराबे के वो निजी कार में निकल पड़ते हैं लेकिन उनका हर कदम सियासी हलचल को जन्म देता है। क्योंकि जब सत्ता की कुर्सी हिलने लगे और कोई नेता मंदिरों का रुख करे तो शक तो होता ही है।
मंदिरों की राह, सत्ता की आस?
डीके शिवकुमार ने साफ कहा है "कोई कुछ भी कहे, मैं तो प्रार्थना करता रहूंगा।" ये बयान जितना सीधा दिखता है, उतनी ही गहराई उसमें छिपी है। कर्नाटक में मुख्यमंत्री बदलने की चर्चाएं चल रही हैं और ठीक इसी समय डिप्टी सीएम मंदिरों की श्रृंखला में डूबे हुए हैं। उन्होंने बीते एक सप्ताह में हासन जिले के कोडी मठ, श्री जेनुकल सिद्धेश्वर मंदिर, नागेश्वर मंदिर जैसे कई प्रमुख धार्मिक स्थलों पर पूजा-अर्चना की। उन्होंने कोडी मठ में नीलमज्जय्या और शिवलिंगज्जय्या के दर्शन किए, बुजुर्गों का आशीर्वाद लिया, और अपने साथियों के साथ वहां खास पूजा करवाई। फिर हासन के अरसीकेरे तालुका में स्थित जेनुकल सिद्धेश्वर मंदिर पहुंचे और वहां भी विशेष पूजा की। हर जगह उन्होंने एक ही बात दोहराई "ईश्वर की भक्ति में विश्वास है, और मैं राज्य में अमन-चैन की दुआ करता हूं।"
गुप्त दर्शन और बंद कपाट, क्या कुछ छिपाया जा रहा है?
लेकिन चर्चा उस वक्त और तेज हो गई जब डीके शिवकुमार ने मंदिर के कपाट बंद करवाकर विशेष पूजा की। इस गुप्त पूजा को लेकर सवाल उठे, तो उन्होंने सीधा जवाब देने की बजाय कहा, "यह भक्त और भगवान के बीच का मामला है।" अब जब राजनीति में हर कदम एक संदेश होता है, तो इस जवाब ने और अटकलें बढ़ा दी हैं। तीन दिन पहले उन्होंने बिना एस्कॉर्ट वाहन के नागेश्वर मंदिर जाकर पूजा की थी। कोई सुरक्षा नहीं, कोई फॉलोअर्स नहीं — बस एक सादा सी कार और डीके शिवकुमार खुद। लेकिन यही सादगी, सियासत का शोर बन गई।
समर्थकों की ज़ुबान पर बस एक ही नाम “मुख्यमंत्री डीके शिवकुमार”
जब डीके शिवकुमार कोडी मठ से बाहर निकले, तो उनके समर्थकों ने "अगले मुख्यमंत्री डीके शिवकुमार!" के नारे लगाए। ये नारे सिर्फ भावनाएं नहीं थे, बल्कि एक सियासी संदेश भी थे। ये नज़ारा तब देखने को मिला जब स्वामीजी से उनकी लंबी चर्चा हुई और वो आशीर्वाद लेकर बाहर निकले। राजनीतिक विश्लेषक मानते हैं कि ऐसे समय में, जब राज्य में सत्ता परिवर्तन की फुसफुसाहट चल रही हो, तब किसी नेता का इस तरह धार्मिक स्थलों का दौरा करना केवल संयोग नहीं हो सकता।
“क्रांति होगी सितंबर में!” सियासी संकेत और इशारे
राज्य के वरिष्ठ मंत्री राजन्ना ने तो खुलकर कह दिया है कि सितंबर में कर्नाटक की राजनीति में बड़ी क्रांति होगी। इस बयान के बाद डीके शिवकुमार का "कोई कुछ भी कहे, मैं प्रार्थना करता रहूंगा" कहना और भी अर्थपूर्ण हो गया है। क्या ये एक शांत संकेत है कि अंदरखाने में कुछ बड़ा पक रहा है? क्या डीके शिवकुमार अपने संकल्प और साधना से मुख्यमंत्री की कुर्सी की ओर बढ़ रहे हैं?
भक्ति या रणनीति?
डीके शिवकुमार का यह पूरा धार्मिक अभियान ऐसे वक्त में हो रहा है जब राज्य की राजनीति बेहद संवेदनशील मोड़ पर है। कांग्रेस की अंदरूनी खींचतान, मुख्यमंत्री सिद्धारमैया पर सवाल और उनके कार्यकाल की आलोचना ये सब मिलकर एक ऐसा माहौल बना रहे हैं जिसमें डीके शिवकुमार का नाम तेजी से उभर रहा है। लेकिन सवाल वहीं खड़ा है क्या यह सच्ची श्रद्धा है या राजनीति की चालाक रणनीति? क्या डीके शिवकुमार वाकई ईश्वर की भक्ति में लीन हैं या फिर वो ईश्वर से सत्ता का आशीर्वाद मांग रहे हैं?
कर्नाटक की राजनीति एक नए मोड़ पर है। और इस मोड़ पर मंदिर की घंटियों की आवाज़ें, आशीर्वाद की छाया, और राजनीति की चुपचाप सरगर्मी सब एक साथ सुनाई दे रही हैं। डीके शिवकुमार ने राजनीति को धर्म के गलियारों से जोड़ दिया है। अब देखना है ये सफर भक्ति तक सीमित रहता है या सत्ता तक पहुंचता है। क्योंकि राजनीति में हर पूजा के पीछे एक ‘प्रार्थना’ होती है और कभी-कभी, एक पद की ‘प्राप्ति’ भी।
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