नीतीश कुमार का 'महिला प्रेम'! मेहरबानी या चुनावी गणित की चाल

Bihar Politics: नीतीश की नई योजनाएं, पुरानी रणनीतियां और वोट बैंक का भविष्य: पढ़ें पूरी कहानी

Snigdha Singh
Published on: 30 Aug 2025 1:32 PM IST
नीतीश कुमार का महिला प्रेम! मेहरबानी या चुनावी गणित की चाल
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Bihar Politics: बिहार की राजनीति में इस बार सत्ता का पासा ‘आधी आबादी’ के भरोसे पलटने की तैयारी है। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की सरकार को अचानक महिलाओं की बड़ी याद आई है। और जैसे-जैसे चुनाव नजदीक आ रहे हैं, वैसे-वैसे घोषणाओं की बारिश हो रही है। सवाल ये नहीं कि सरकार महिलाओं के लिए कुछ कर रही है, सवाल ये है कि क्या ये कुछ करना अचानक चुनावी मौसम में ही क्यों याद आता है? मतलब साफ है और आप भी समझिए-

महिला मतदाता बनाम वोट बैंक की बिसात

बिहार के 2020 विधानसभा चुनाव के आंकड़े साफ कहते हैं कि महिलाएं पुरुषों से ज्यादा वोट डालती हैं। उस चुनाव में जहां पुरुषों का वोटिंग प्रतिशत 54.6 फीसदी रहा, वहीं महिलाओं ने 59.7 प्रतिशत की भागीदारी दिखाई। बात यहीं खत्म नहीं होती 243 में से 167 विधानसभा क्षेत्रों में महिलाओं ने पुरुषों से ज्यादा वोटिंग की।

मतलब सीधा है कि महिलाएं अब केवल रसोई तक सीमित नहीं, बल्कि मतपेटी में भी मजबूत हस्ताक्षर कर रही हैं। और इसका राजनीतिक फायदा लेने में कोई चूक नहीं कर रहा।

नीतीश का महिला प्रेम- मौसमी नहीं, बल्कि रणनीतिक है

अगर आपको याद हो तो 2015 के चुनाव से पहले शराबबंदी लागू की गई थी। असर ये हुआ कि घर की महिलाएं नीतीश की कुर्बानी से अभिभूत हो गईं और कई विश्लेषकों ने उस कदम को वोट बैंक का मास्टरस्ट्रोक कहा। अब, 2025 से पहले फिर वही दांव लेकिन नए रूप में।

नई स्कीमों की बाढ़, लेकिन सवाल वही

ताजा विशेष कैबिनेट में नीतीश कुमार ने मुख्यमंत्री महिला रोजगार योजना लाई है। इसका सीधा लाभ हर परिवार की एक महिला को देने का वादा है दस हजार रुपये की सीधी सहायता, साथ ही दो लाख रुपये तक की आर्थिक मदद। सुनने में तो ये महिला सशक्तिकरण लगता है लेकिन इसकी टाइमिंग सवाल खड़े करती है। ये योजना ठीक चुनाव से कुछ महीने पहले ही क्यों आई?

पहले से चालू योजनाओं की लंबी कतार

लखपति दीदी योजना: पांच लाख रुपये तक ब्याजमुक्त ऋण

35 फीसदी सरकारी नौकरी में आरक्षण

पंचायती राज में 50 फीसदी आरक्षण

साइकिल योजना और पोशाक योजना,

इन सबके पीछे रणनीति सीधी है कि महिला मतदाता को भावनात्मक और आर्थिक दोनों तरीकों से साधो।

NDA को महिलाओं से खास उम्मीद

2020 के विधानसभा चुनाव में भाजपा से सबसे अधिक 9 महिला प्रत्याशी जीती थीं, जबकि जदयू से 6 और राजद से 7। कुल मिलाकर एनडीए की उन 90 सीटों पर महिला वोटिंग प्रतिशत पुरुषों से अधिक था, जहां उन्हें जीत मिली। और अब जब 2025 की बिसात बिछ रही है, तो उसी भरोसे को दोबारा भुनाने की तैयारी है।

लेकिन वोटर लिस्ट में ‘कट’ हुईं महिलाएं

एक दिलचस्प लेकिन चिंताजनक ट्रेंड ये भी है कि ताजा ड्राफ्ट वोटर लिस्ट में सबसे ज्यादा नाम महिलाओं के कटे हैं। पटना, मधुबनी और पूर्वी चंपारण जैसे जिलों में 10.63 लाख वोटर हटाए गए, जिनमें 5.67 लाख महिलाएं थीं। यह कुल हटाए गए नामों का 53.35 प्रतिशत हिस्सा है। मतलब जहां एक तरफ सरकार महिलाओं को नए वादों से लुभा रही है, वहीं चुनाव आयोग की प्रक्रिया में सबसे ज्यादा प्रभावित वही हो रही हैं।

राजनीतिक विद्वानों की नजर में

राजनीतिक जानकारों की माने तो महिलाएं पारंपरिक रूप से एनडीए को साइलेंट वोट बैंक के रूप में समर्थन करती रही हैं। और अब जब उनका नाम लिस्ट से गायब हो रहा है तो भाजपा-जदयू दोनों के माथे पर चिंता की लकीरें बनना लाजिमी है।

बिहार में महिला सशक्तिकरण और चुनावी मजबूरी के बीच एक महीन रेखा है, जिसे नीतीश कुमार बहुत कुशलता से साध रहे हैं। लेकिन इस बार महिलाएं सिर्फ योजनाओं से नहीं, बल्कि अपने अनुभवों से वोट देंगी। सरकार अगर यह समझती है कि 10 हजार देकर महिला वोट अपने पक्ष में कर लिया जाएगा तो शायद वह बिहार की आधी आबादी को अभी भी कम आंक रही है। इस बार मामला चुनावी जुमले बनाम जमीनी बदलाव पर टिका है। और महिलाएं अब चुप नहीं रहतीं वोट से जवाब देती हैं।

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