अब बांग्लादेश होगा नजरंदाज! नॉर्थ ईस्ट के लिए नया रूट, म्यांमार के रास्ते होगी आवाजाही

New Route for North East Movement: भारत सरकार ने “कलादान मल्टीमॉडल ट्रांजिट ट्रांसपोर्ट प्रोजेक्ट” के जरिए पूर्वोत्तर तक वैकल्पिक संपर्क मार्ग बनाने का काम तेज करने का फैसला किया है।

Neel Mani Lal
Published on: 21 May 2025 5:56 PM IST
New Route for North East Movement
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New Route for North East Movement (Image Credit-Social Media)

New Route for North East Movement: बांग्लादेश के साथ रिश्तों में आई गिरावट के बाद भारत सरकार ने अब “कलादान मल्टीमॉडल ट्रांजिट ट्रांसपोर्ट प्रोजेक्ट” के जरिए पूर्वोत्तर तक वैकल्पिक संपर्क मार्ग बनाने का काम तेज करने का फैसला किया है। इस प्रोजेक्ट की खासियत है कि बंगाल से नार्थईस्ट राज्यों की तरफ जाने में बांग्लादेश की सीमा से बचते हुए और काफी कम समय में दूरी तय की जा सकेगी। शेख हसीना सरकार के सत्ता में रहते बांग्लादेश के साथ ट्रांजिट रूट पर समझौते की दिशा में बातचीत में काफी प्रगति हुई थी लेकिन उसके बाद यह मामला ठंडे बस्ते में चला गया। इसी वजह से अब बंगाल की खाड़ी और म्यांमार के सड़क मार्ग के जरिए पूर्वोत्तर तक वैकल्पिक संपर्क मार्ग तैयार करने का फैसला किया गया है। इस प्रोजेक्ट में बांग्लादेश को एकदम दूर रखा गया है।

फंड को मंजूरी

केंद्र सरकार ने हाल में कलादान परियोजना के लिए 22,864 करोड़ रुपए की मंजूरी दी है। अधिकारियों का कहना है कि इससे सिलीगुड़ी कॉरिडोर पर निर्भरता भी कम हो जाएगी। दोनों देशों ने कलादान परियोजना के लिए वर्ष 2008 में एक समझौते पर हस्ताक्षर किए थे। लेकिन उसके बाद विभिन्न वजहों से इसमें देरी होती रही। अब खासकर बांग्लादेश के साथ संबंधों में आने वाली गिरावट और पूर्वोत्तर के प्रति वहां की अंतरिम सरकार के नजरिए के कारण इसे तेजी से लागू करने का फैसला किया गया है।


क्या है ये प्रोजेक्ट

पहले कोलकाता बंदरगाह से बांग्लादेश होकर भी पूर्वोत्तर तक सामान बहुत कम समय में पहुंच जाता था। अब इस नई परियोजना के तहत शिलांग से असम के सिलचर तक करीब 167 किलोमीटर लंबी फोर लेन सड़क बनाई जाएगी। आगे चल कर इसे मिजोरम की राजधानी आइजोल से जोड़ा जाएगा। उसी सड़क को म्यांमार के सितवे बंदरगाह से जोड़ा जाएगा। इससे देश के दूसरे बंदरगाहों से आने वाली चीजों को कोलकाता से सीधे म्यांमार और वहां से पूर्वोत्तर भारत में भेजा जा सकेगा।


यह परियोजना पूरे पूर्वोत्तर के लिए एक अहम वैकल्पिक मार्ग बन जाएगी। इससे भारत की लुक ईस्ट नीति को भी बढ़ावा मिलेगा। मिजोरम, मणिपुर और त्रिपुरा के लिए सिलचर एक प्रवेशद्वार की भूमिका में है। इस परियोजना के पूरा होने के बाद विशाखापत्तनम और कोलकाता से तमाम सामान सीधे पूर्वोत्तर तक पहुंच जाएगा और इससे बांग्लादेश पर निर्भरता खत्म हो जाएगी। पूर्वोत्तर के लिए सिलीगुड़ी के चिकन नेक कॉरिडोर के अलावा बांग्लादेश और म्यांमार होकर ही पूर्वोत्तर तक सामान भेजा जा सकता था। लेकिन अब कलादान परियोजना एक बेहतर विकल्प के तौर पर उभरेगी। इसके तहत शिलांग से सिलचर तक प्रस्तावित फोर लेन हाइवे की वजह से यात्रा में लगने वाला समय कम हो जाने के कारण सामान की ढुलाई के साथ ही सीमावर्ती इलाको में सेना और सुरक्षाबलों की आवाजाही भी आसान हो जाएगी।

इस परियोजना के तहत नेशनल हाइवेज एंड इंफ्रास्ट्रक्चर डेवलपमेंट कारपोरेशन शिलॉन्ग से असम की बराक घाटी में सिलचर के पांच ग्राम तक करीब 167 किमी लंबे हाइवे का निर्माण करेगा। इस परियोजना की लंबाई मेघालय में 144.8 किमी और असम में 22 किमी होगी। इसके तैयार होने के बाद इस सफर में लगने वाला समय मौजूदा साढ़े आठ घंटे से घटकर पांच घंटे रह जाएगा।


इस परियोजना के वर्ष 2030 तक पूरी हो जाने की उम्मीद है। सीमा पार म्यांमार में कलादान मल्टी मॉडल ट्रांजिट ट्रांसपोर्ट प्रोजेक्ट के तहत सड़क म्यांमार के रखाइन स्टेट में कलादान नदी पर स्थित सितवे बंदरगाह को जल मार्ग से पलेतवा से जोड़ा जाएगा। उसके बाद उसे सड़क मार्ग से मिजोरम के जोरिनपुई से जोड़ने की योजना है। आगे चल कर जोरिनपुई से लांगथलाई होकर इसी सड़क को मिजोरम की राजधानी आइजल तक बढ़ाया जाएगा।

वर्तमान स्थिति

वर्तमान में शेष भारत के लिए पूर्वोत्तर के सात राज्यों तक पहुँचने का एकमात्र रास्ता संकरे सिलीगुड़ी कॉरिडोर के माध्यम से है, जिसे “चिकन नेक” के नाम से जाना जाता है। नेपाल और बांग्लादेश के बीच फैला हुआ और अपने सबसे संकरे स्थान पर केवल 20 किलोमीटर का यह कॉरिडोर लंबे समय से नई दिल्ली के लिए एक आर्थिक और रणनीतिक चुनौती रहा है जिसके कारण कुछ विशेषज्ञ इसे भारत के लिए एक कमज़ोरी कहते हैं। पिछले डेढ़ दशक में ढाका में हसीना सरकार के साथ नई दिल्ली के जुड़ाव का एक महत्वपूर्ण तत्व बांग्लादेश के माध्यम से पूर्वोत्तर के लिए रास्ते खोलना था जैसा कि विभाजन से पहले होता था।

2008 में भारत और म्यांमार द्वारा कलादान प्रोजेक्ट ढांचे पर हस्ताक्षर किए गए थे। परियोजना के पीछे का विचार सीधा था - म्यांमार के राखीन राज्य में सित्तवे बंदरगाह से मिजोरम और अंततः शेष पूर्वोत्तर भारत तक एक पारगमन गलियारा बनाना। इससे भारत के पूर्वी बंदरगाहों - मुख्य रूप से कोलकाता - से माल को सित्तवे तक भेजा जा सकेगा और फिर मिजोरम और उससे आगे ले जाया जा सकेगा। पूरा होने पर कोलकाता और मिजोरम के बीच की दूरी में प्रभावी रूप से 1,000 किलोमीटर की कमी होगी और तीन से चार दिनों का यात्रा समय बचाएगा।


कोलकाता से सित्तवे: दोनों बंदरगाहों के बीच 539 किलोमीटर का यह मार्ग बंगाल की खाड़ी के रास्ते जहाज से तय किया जाएगा। हालांकि यह मार्ग तकनीकी रूप से दशकों से चालू है, लेकिन भारत ने सित्तवे बंदरगाह को उन्नत बनाने और इसकी क्षमता बढ़ाने के लिए महत्वपूर्ण संसाधनों का निवेश किया है। परियोजना का यह हिस्सा पूरा हो चुका है।

सित्तवे से पलेतवा: म्यांमार में कलादान नदी पर 158 किलोमीटर का यह मार्ग नाव से तय किया जाएगा। विदेश मंत्रालय ने नदी की सफाई और पलेतवा में 300 टन वजनी बजरों को संभालने के लिए अपेक्षित जेटी सुविधाओं के निर्माण में निवेश किया है। परियोजना के इस हिस्से पर सभी काम पूरे हो चुके हैं।

पलेतवा से ज़ोरिनपुई: 108 किलोमीटर लंबी यह चार लेन वाली सड़क म्यांमार में गलियारे का आखिरी चरण होगी। म्यांमार ने परियोजना के इस हिस्से के लिए सभी स्वीकृतियां दे दी हैं, और ज़ोचावचुआ-ज़ोरिनपुई में एकीकृत सीमा शुल्क और इमिग्रेशन चेकपोस्ट 2017 से चालू है। लेकिन इस राजमार्ग का आखिरी 50 किलोमीटर (कलेतवा, म्यांमार से ज़ोरिनपुई तक) अभी पूरा होना बाकी है।

ज़ोरिनपुई से आइज़ोल और उससे आगे: जबकि ज़ोरिनपुई सड़क मार्ग से आइज़ोल और बाकी पूर्वोत्तर से जुड़ा हुआ है, एनएचआईडीसीएल अंततः शिलांग से सीमावर्ती शहर तक हाई-स्पीड कॉरिडोर का विस्तार करने की योजना बना रहा है।

कुछ सवाल भी उठ रहे

हालांकि प्रोजेक्ट पर काम डेढ़ दशक पहले शुरू हुआ था, लेकिन म्यांमार के राखीन स्टेट में राजनीतिक स्थिति ने कॉरिडोर को चालू होने से रोक दिया है। इस परियोजना को 2016 में पूरा किया जाना था। विशेषज्ञों का कहना है कि अब इस परियोजना को वर्ष 2030 तक पूरा करने का लक्ष्य रखा गया है। लेकिन म्यांमार की मौजूदा राजनीतिक औऱ जमीनी परिस्थिति को देखते हुए इस पर संशय है। म्यांमार के जिस रखाइन स्टेट के जल और थल मार्ग के इस्तेमाल से यह संपर्क मार्ग तैयार होना है उसका करीब 80 फीसदी हिस्सा अराकान आर्मी नामक हथियारबंद विद्रोही गुट के कब्जे में है। वहां रोहिंग्या मुसलमानों के भी कई उग्रवादी गुट सक्रिय हैं। देखना यह है कि सरकार इस चुनौती से कैसे निपटती है।

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