India China LAC History: जानिए भारत-चीन सीमा विवाद और LAC का संपूर्ण इतिहास

India China LAC Border History: LAC भारत और चीन के संबंधों की वह कसौटी है, जिस पर दोनों देशों की परिपक्वता, रणनीति और कूटनीति की परीक्षा होती रहती है।

Shivani Jawanjal
Published on: 14 May 2025 3:28 PM IST
India China LAC Border History
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India China LAC Border History 

India China LAC History: भारत और चीन - दो प्राचीन सभ्यताएँ, जो आज एशिया की राजनीतिक, आर्थिक और सैन्य ताकतों के रूप में उभर चुकी हैं। इनके बीच की सीमाएँ जहाँ भूगोल की दृष्टि से कठिन और दुर्गम हैं, वहीं कूटनीति और इतिहास की दृष्टि से और भी अधिक जटिल। इन्हीं जटिलताओं का परिणाम है "वास्तविक नियंत्रण रेखा" यानी LAC (Line of Actual Control), जो न केवल एक विवादित सीमा रेखा है, बल्कि दोनों देशों के बीच विश्वास की दरार, सैन्य टकराव और रणनीतिक संघर्ष की प्रतीक बन चुकी है। यह रेखा केवल नक्शे पर खिंची एक रेखा नहीं, बल्कि इतिहास, कूटनीति, युद्ध और शक्ति संतुलन का जीवंत दस्तावेज है, जो आज भी भारत-चीन संबंधों की दिशा तय करता है।

LAC क्या है?


वास्तविक नियंत्रण रेखा (LAC) भारत-चीन सीमा का संवेदनशील और जटिल पहलू है। यह कोई विधिक रूप से मान्यता प्राप्त अंतरराष्ट्रीय सीमा नहीं है, बल्कि एक डि-फैक्टो रेखा है, जो दोनों देशों की सेनाओं के वास्तविक नियंत्रण क्षेत्रों को अलग करती है। भारत इसे लगभग 3,488 किलोमीटर लंबा मानता है, जबकि चीन के अनुसार इसकी लंबाई लगभग 2,000 किलोमीटर है। यह रेखा जम्मू-कश्मीर (वर्तमान में लद्दाख), हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, सिक्किम और अरुणाचल प्रदेश जैसे भारतीय राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों से होकर गुजरती है। LAC पर स्थितियां लगातार बदलती रहती हैं, और यही कारण है कि यह क्षेत्र समय-समय पर विवाद और सैन्य तनाव का केंद्र बनता है। इस रेखा का कोई स्पष्ट सीमांकन न होने के कारण कई बार भ्रम की स्थिति पैदा होती है, जिससे दोनों देशों के बीच टकराव की नौबत आती है।

LAC का ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य (Historical Perspective of LAC)


ब्रिटिश काल और सीमा विवाद की जड़ें - भारत-चीन सीमा विवाद की नींव ब्रिटिश शासन के दौरान रखी गई, जब ब्रिटिश भारत ने तिब्बत के साथ सीमाओं को लेकर कई पहल की। 1914 में शिमला समझौता (Simla Convention) हुआ, जिसमें ब्रिटिश भारत और तिब्बत के प्रतिनिधियों के बीच मैकमोहन रेखा (McMahon Line) तय की गई। यह रेखा भारत के उत्तर-पूर्वी क्षेत्र, विशेष रूप से अरुणाचल प्रदेश को चीन के तिब्बत क्षेत्र से अलग करती थी। हालाँकि, चीन ने इस समझौते और मैकमोहन रेखा को कभी भी वैध नहीं माना। उसका तर्क था कि तिब्बत उस समय स्वतंत्र देश नहीं था, बल्कि चीन का हिस्सा था, इसलिए तिब्बत को इस प्रकार का कोई समझौता करने का अधिकार नहीं था। यही असहमति भारत और चीन के बीच आज भी जारी सीमा विवाद की जड़ है।

1950: तिब्बत पर चीन का नियंत्रण - 1950 में चीन ने तिब्बत पर सैन्य कार्रवाई कर उसे अपने नियंत्रण में ले लिया। इस घटना ने भारत-चीन संबंधों में भारी बदलाव ला दिया। उस समय भारत ने तिब्बत को एक de facto स्वतंत्र देश माना था और उसके साथ ऐतिहासिक, धार्मिक और व्यापारिक संबंध बनाए रखे थे। चीन द्वारा तिब्बत को बलपूर्वक कब्जाने के बाद भारत के लिए सीमा सुरक्षा और अधिक चुनौतीपूर्ण हो गई।

पंचशील समझौता और भारत की कूटनीतिक चूक - 1954 में भारत और चीन के बीच पंचशील समझौता हुआ, जिसमें भारत ने चीन की तिब्बत पर संप्रभुता को औपचारिक मान्यता दे दी। इस समझौते में विश्वास और शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व के सिद्धांत शामिल थे, लेकिन इसकी आड़ में चीन ने सीमावर्ती क्षेत्रों में धीरे-धीरे अपनी स्थिति मजबूत करनी शुरू कर दी। भारत ने "हिंदी-चीनी भाई-भाई" की भावना में बहकर सीमा को लेकर चीन की आक्रामक रणनीति को नज़रअंदाज़ कर दिया, जिसका खामियाजा उसे बाद में उठाना पड़ा।

1962 का युद्ध और LAC की स्थापना - भारत और चीन के बीच सीमा विवाद अपने चरम पर 1962 में पहुँचा, जब दोनों देशों के बीच सीमित लेकिन घातक युद्ध हुआ। इस युद्ध में चीन ने लद्दाख के अक्साई चिन क्षेत्र और अरुणाचल प्रदेश के कुछ हिस्सों पर कब्जा कर लिया। युद्ध के अंत में चीन ने एकतरफा युद्धविराम की घोषणा की और पीछे हट गया, लेकिन लद्दाख के अक्साई चिन क्षेत्र पर उसने अपना नियंत्रण बनाए रखा। इस युद्ध के बाद दोनों देशों की सेनाओं ने जहाँ तक उनका नियंत्रण था, वहीं पर तैनाती कर ली। यही रेखा कालांतर में "वास्तविक नियंत्रण रेखा" या LAC कहलाने लगी। इसे 1993 के भारत-चीन समझौते में पहली बार औपचारिक रूप से उल्लेख किया गया, लेकिन यह आज भी कोई स्पष्ट या मान्य सीमा नहीं है।

LAC की स्थिति: अस्पष्टता और विवाद - LAC की सबसे बड़ी समस्या यह है कि भारत और चीन, दोनों ही इसे अलग-अलग दृष्टिकोण से देखते हैं। भारत के अनुसार LAC की लंबाई लगभग 3,488 किलोमीटर है, जबकि चीन इसे लगभग 2,000 किलोमीटर मानता है। यह रेखा जम्मू-कश्मीर (अब लद्दाख), हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, सिक्किम, और अरुणाचल प्रदेश से होकर गुजरती है। इस अस्पष्टता के कारण दोनों देशों की सेनाएँ कई बार एक-दूसरे के दावे वाले क्षेत्रों में गश्त करती हैं, जिससे टकराव की स्थिति बनती है।

LAC के तीन प्रमुख सेक्टर


भारत-चीन सीमा को तीन प्रमुख सेक्टरों में विभाजित किया जाता है – पश्चिमी, मध्य और पूर्वी सेक्टर, जिनमें से प्रत्येक की भौगोलिक और रणनीतिक स्थिति अलग है। पश्चिमी सेक्टर में लद्दाख स्थित है, जहाँ अक्साई चिन सबसे विवादित क्षेत्र है। 1962 के युद्ध के बाद चीन ने अक्साई चिन पर कब्जा कर लिया था, जो अब भी उसके नियंत्रण में है, जबकि भारत इसे अपने केंद्रशासित प्रदेश लद्दाख का अभिन्न हिस्सा मानता है। मध्य सेक्टर, जिसमें उत्तराखंड और हिमाचल प्रदेश आते हैं, तुलनात्मक रूप से शांत क्षेत्र है। यहाँ सीमाई विवाद बहुत कम है और दोनों देशों ने आपसी सहमति से मानचित्रों का आदान-प्रदान किया है, जिससे सीमांकन पर काफी हद तक स्पष्टता बनी है। पूर्वी सेक्टर में स्थित अरुणाचल प्रदेश को लेकर चीन का रुख सबसे आक्रामक रहा है; वह इसे “दक्षिणी तिब्बत” कहकर इस पूरे क्षेत्र पर दावा करता है। हालाँकि 2017 का डोकलाम गतिरोध इसी सेक्टर के पास हुआ था, लेकिन वह विवाद सीधे अरुणाचल में नहीं, बल्कि सिक्किम-भूटान-तिब्बत ट्राइ-जंक्शन में था। इन तीनों सेक्टरों की भिन्न प्रकृति और भू-राजनीतिक महत्व भारत-चीन सीमा विवाद को अत्यंत जटिल बना देते हैं।

हालिया तनाव - गलवान से तवांग तक

भारत-चीन सीमा पर तनाव और संघर्षों की घटनाएँ हाल के वर्षों में काफी बढ़ी हैं, जिनमें गलवान घाटी संघर्ष (2020) सबसे महत्वपूर्ण था। 15 जून 2020 को गलवान घाटी में भारतीय और चीनी सैनिकों के बीच हिंसक झड़प हुई, जिसमें भारत के 20 जवान शहीद हुए, जबकि चीन ने केवल 4 सैनिकों की मौत की बात स्वीकार की, जबकि अन्य रिपोर्ट्स के अनुसार चीनी सैनिकों की संख्या इससे कहीं अधिक, कुछ रिपोर्ट्स में 38 या 45 तक बताई गई। यह 1967 के बाद पहली बार था जब दोनों सेनाओं के बीच इतनी घातक मुठभेड़ हुई। इसके अलावा, पैंगोंग त्सो झील और फिंगर क्षेत्र में भी विवाद गहराया, जहाँ भारत का दावा फिंगर 8 तक था, लेकिन उसका नियंत्रण फिंगर 4 तक था, जबकि चीन का दावा फिंगर 4 तक और नियंत्रण फिंगर 5 से 8 तक था। 2020 में चीन ने फिंगर 4 तक अपनी सेना तैनात कर दी थी, जिससे तनाव और बढ़ गया। इसके अलावा, अरुणाचल प्रदेश के तवांग सेक्टर में भी 2022 और 2023 में चीन ने घुसपैठ करने की कोशिश की, जिसे भारतीय सेना ने नाकाम कर दिया, और 2022 में वहाँ दोनों सेनाओं के बीच झड़प भी हुई, हालाँकि यह गलवान जैसी घातक नहीं थी। इन घटनाओं से यह स्पष्ट होता है कि भारत-चीन सीमा पर तनाव और संघर्ष लगातार बना हुआ है।

रणनीतिक और कूटनीतिक दृष्टिकोण

भारत ने LAC पर अपनी सैन्य और कूटनीतिक रणनीतियों को मजबूत किया है, ताकि चीन के बढ़ते दबाव का सामना किया जा सके। हाल के वर्षों में, भारत ने सैन्य ढांचे को तेज़ी से मज़बूत किया है, जिसमें हवाई अड्डे, सड़कें, पुल, बंकर, और सैनिकों की तैनाती शामिल हैं। अब भारत बॉर्डर एरिया के विकास में चीन से पीछे नहीं है, और सीमा तक पहुंचने के लिए टनल, रोड्स, ब्रिज और बेस बनाने पर ज़ोर दे रहा है। 2020 में "ऑपरेशन स्नो लेपर्ड" के तहत भारतीय सेना ने पूर्वी लद्दाख के पैंगोंग झील क्षेत्र और अन्य प्रमुख ऊंचाइयों पर रणनीतिक कब्ज़ा किया, जिससे भारत को सैन्य और कूटनीतिक दोनों स्तरों पर लाभ हुआ और चीन को कई क्षेत्रों से पीछे हटना पड़ा। इसके साथ ही, भारत और चीन के बीच सीमा विवाद को सुलझाने के लिए सैन्य और राजनयिक बातचीत के कई दौर हुए हैं। दोनों देशों ने विशेष प्रतिनिधि नियुक्त किए हैं और उच्चस्तरीय वार्ताएं होती रही हैं। हालांकि, चीन की दोहरी नीति और समझौतों का उल्लंघन स्थायी समाधान में बाधा बनी हुई है। हाल ही में कुछ क्षेत्रों में गश्त और सैनिकों की वापसी पर सहमति बनी है, लेकिन ज़मीनी स्तर पर तनाव और अविश्वास बना हुआ है।

LAC का भविष्य


LAC का भारत और चीन के लिए अत्यधिक महत्व है, लेकिन दोनों देशों के दृष्टिकोण में बड़ा अंतर है। भारत के लिए, LAC सिर्फ एक रेखा नहीं, बल्कि राष्ट्रीय अखंडता और संप्रभुता का प्रतीक है। यह वह सीमा है जहां भारतीय और चीनी सेनाएँ आमने-सामने तैनात रहती हैं, और भारत इसे अपनी क्षेत्रीय अखंडता का एक अहम हिस्सा मानता है, हालांकि यह अंतरराष्ट्रीय रूप से मान्यता प्राप्त सीमा नहीं है। चीन के लिए LAC उसकी विस्तारवादी नीति का हिस्सा है, और उसने इस रेखा को कभी पूरी तरह से स्वीकार नहीं किया है, जिससे सीमा पर लगातार विवाद बना रहता है। इसके साथ ही, सीमा पर पारदर्शिता और विश्वास की कमी दोनों देशों के बीच संघर्ष को बढ़ावा देती है। भारत ने अपनी सैन्य नीति को आक्रामक और रणनीतिक रूप से मज़बूत किया है। अब भारत केवल प्रतिक्रिया देने के बजाय सीमा पर अपने सैन्य ढांचे को सुदृढ़ कर रहा है, जैसे सड़कें, एयरबेस, और बंकर बनाना। आत्मनिर्भर रक्षा क्षेत्र (जैसे 'मेक इन इंडिया' और स्वदेशी रक्षा उत्पादन) ने भारत की सैन्य शक्ति को मजबूत किया है। इसके अलावा, भारत ने वैश्विक कूटनीतिक साझेदारियाँ जैसे QUAD के माध्यम से अपनी स्थिति को मजबूती दी है, जिससे चीन पर रणनीतिक दबाव भी बना है।

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