Chandauli News: नौगढ़ के सरकारी स्कूलों में घटता विश्वास, निजी स्कूलों की चकाचौंध में खोते बच्चे

Chandauli News: सरकार की ओर से सरकारी स्कूलों में बच्चों को आकर्षित करने के लिए अनेक प्रयास किए जा रहे हैं। मध्याह्न भोजन, मुफ्त गणवेश, जूते-मोजे, पाठ्य पुस्तकें और योग्य शिक्षकों की उपलब्धता सुनिश्चित की गई है।

Sunil Kumar (Chandauli)
Published on: 13 May 2025 10:50 AM IST (Updated on: 13 May 2025 12:12 PM IST)
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Chandauli News: चंदौली जिले के वनांचल क्षेत्र नौगढ़ में शिक्षा का परिदृश्य चिंताजनक मोड़ पर है। कभी बच्चों की किलकारियों और शिक्षकों की सक्रियता से गुलजार रहने वाले सरकारी विद्यालय आज वीरानगी का शिकार हो रहे हैं। कागजों पर भले ही नामांकन की संख्या संतोषजनक दिखती हो, लेकिन वास्तविकता कक्षाओं में खाली कुर्सियों और शिक्षा से दूरी बनाते नौनिहालों की है। यह स्थिति न केवल शिक्षा व्यवस्था पर सवाल उठाती है, बल्कि एक गहरी सामाजिक चिंता को भी जन्म देती है।

सरकारी सुविधाओं की चमक फीकी, निजी स्कूलों का बढ़ता आकर्षण

सरकार की ओर से सरकारी स्कूलों में बच्चों को आकर्षित करने के लिए अनेक प्रयास किए जा रहे हैं। मध्याह्न भोजन, मुफ्त गणवेश, जूते-मोजे, पाठ्य पुस्तकें और योग्य शिक्षकों की उपलब्धता सुनिश्चित की गई है। बावजूद इसके, बच्चों का रुझान इन विद्यालयों से लगातार कम हो रहा है। इसके विपरीत, कस्बों और गांवों में कुकुरमुत्ते की तरह उग आए निजी विद्यालय, जिनकी शिक्षा की गुणवत्ता और मान्यता अक्सर संदिग्ध होती है, अभिभावकों को अपनी ओर खींच रहे हैं। इन निजी स्कूलों में मोटी फीस वसूली जाती है, लेकिन ’अंग्रेजी माध्यम’ और आधुनिक शिक्षा का लुभावना प्रचार अभिभावकों को सरकारी स्कूलों की ओर देखने भी नहीं देता। उन्हें लगता है कि महंगी शिक्षा ही बेहतर भविष्य की गारंटी है, जबकि वे अक्सर भ्रम का शिकार होते हैं।

अधिकारियों की फटकार बेअसर, शिक्षकों के प्रयासों में कमी

हाल ही में जब शिक्षा विभाग के अधिकारियों ने नौगढ़ के कुछ सरकारी स्कूलों का निरीक्षण किया, तो कक्षाओं में छात्रों की नगण्य उपस्थिति देखकर वे हैरान रह गए। उन्होंने इस पर कड़ी नाराजगी जताई और शिक्षकों को तत्काल निर्देश दिए कि वे अभिभावकों से संपर्क करें और बच्चों की नियमित उपस्थिति सुनिश्चित करें। हालांकि, इन निर्देशों का भी अब तक कोई खास असर देखने को नहीं मिला है। शिक्षक शायद प्रयास कर रहे हैं, लेकिन उनकी मेहनत रंग नहीं ला रही है या फिर कहीं न कहीं उनके प्रयासों में कमी रह गई है।

विश्वास का टूटा बंधन, कौन भेजेगा अपने बच्चे?

इस संकट की असली वजह केवल सुविधाओं की कमी नहीं है, बल्कि सरकारी शिक्षा व्यवस्था से लोगों का विश्वास उठ जाना है। जब समाज के प्रतिष्ठित लोगकृनेता, अधिकारी और यहां तक कि स्वयं शिक्षक भी अपने बच्चों को सरकारी स्कूलों में भेजने से कतराते हैं, तो साधारण ग्रामीण किस भरोसे पर अपने बच्चों का भविष्य इन स्कूलों के हाथों में सौंप दें? यह चुप्पी भरी स्वीकृति ही सरकारी स्कूलों की बदहाली की सबसे बड़ी गवाह है। यह दर्शाता है कि कहीं न कहीं व्यवस्था में बड़ी खामी है जिसे दूर करना जरूरी है।

सिर्फ योजनाएं नहीं, चाहिए जिम्मेदारी और समर्पण

’स्कूल चलो अभियान’ जैसे कार्यक्रम और अन्य सरकारी योजनाएं तब तक सफल नहीं हो सकतीं,जब तक शिक्षा व्यवस्था में पारदर्शिता,जवाबदेही और गुणवत्ता सुनिश्चित नहीं की जाती। शिक्षकों को सिर्फ उपस्थिति दर्ज करने तक सीमित नहीं रहना चाहिए, बल्कि उन्हें बच्चों को पढ़ाने और उनके भविष्य को संवारने के लिए पूरी निष्ठा और समर्पण के साथ काम करना होगा। शिक्षा के प्रति उनका जुनून ही बच्चों को स्कूल आने के लिए प्रेरित कर सकता है।

भरोसे की नींव को फिर से मजबूत करना होगा

यह संकट केवल शिक्षा का नहीं, बल्कि भरोसे का भी है। और इस भरोसे को फिर से जगाने का एकमात्र तरीका नीतियों और योजनाओं तक ही सीमित नहीं है। इसके लिए सामूहिक संकल्प, संवेदनशीलता और ईमानदार प्रयासों की आवश्यकता है। जब तक सरकार, शिक्षक, अभिभावक और समुदाय सभी मिलकर इस दिशा में काम नहीं करेंगे, तब तक शिक्षा की यह नींव कमजोर ही रहेगी और नौगढ़ के बच्चों का भविष्य अंधकार में ही डूबा रहेगा। हमें यह याद रखना होगा कि शिक्षा ही किसी भी समाज के विकास का आधार होती है, और इस आधार को मजबूत करना हम सबकी जिम्मेदारी है।

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Shishumanjali kharwar

Shishumanjali kharwar

कंटेंट राइटर

मीडिया क्षेत्र में 12 साल से ज्यादा कार्य करने का अनुभव। इस दौरान विभिन्न अखबारों में उप संपादक और एक न्यूज पोर्टल में कंटेंट राइटर के पद पर कार्य किया। वर्तमान में प्रतिष्ठित न्यूज पोर्टल ‘न्यूजट्रैक’ में कंटेंट राइटर के पद पर कार्यरत हूं।

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