Chandauli News: शिक्षा के सपनों पर फिरता बुलडोजर: चंदौली के मझगावां में कायाकल्प का अधूरा सच, मासूमों का भविष्य अंधकार में!

Chandauli News: शिक्षा के मंदिर बनने की आस जगाने वाली कायाकल्प योजना मझगावां के विद्यालय के लिए एक क्रूर मज़ाक बनकर रह गई है। स्वीकृत हुए शौचालय, पेयजल, कक्षा मरम्मत और सौंदर्यीकरण के कार्य वर्षों बाद भी अधूरे पड़े हैं।

Sunil Kumar (Chandauli)
Published on: 9 May 2025 5:25 PM IST (Updated on: 9 May 2025 9:05 PM IST)
Toilets drinking water classroom repair of Majhgawan Primary School has stop news in hindi
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मझगावां का प्राथमिक विद्यालय का स्वीकृत हुए शौचालय, पेयजल, कक्षा मरम्मत और सौंदर्यीकरण नहीं हुआ (Photo- Social Media)

Chandauli News: उत्तर प्रदेश के चंदौली जिले के नौगढ़ तहसील के एक गुमनाम गांव, मझगावां, में शिक्षा की उम्मीदें दम तोड़ रही हैं। सरकार की महत्वाकांक्षी कायाकल्प योजना, जो विद्यालयों को आधुनिक बनाने का दावा करती है, यहां आकर हांफ गई है। मझगावां का प्राथमिक विद्यालय इस खोखले वादे का जीता-जागता प्रमाण है, जहां बच्चों के उज्ज्वल भविष्य की नींव भारी उदासीनता के तले कराह रही है।

विकास के नाम पर विनाशलीला: खंडहर में तब्दील होता बचपन

कभी शिक्षा के मंदिर बनने की आस जगाने वाली कायाकल्प योजना मझगावां के विद्यालय के लिए एक क्रूर मज़ाक बनकर रह गई है। स्वीकृत हुए शौचालय, पेयजल, कक्षा मरम्मत और सौंदर्यीकरण के कार्य वर्षों बाद भी अधूरे पड़े हैं। विद्यालय की बदहाल फर्श बच्चों के मासूम कदमों को लहूलुहान करने को तैयार बैठी है।


सुरक्षा का प्रतीक बनने वाला गेट आज़ादी से खुला है, मानो विद्यालय की दुर्दशा पर हंस रहा हो। बाउंड्री वॉल का तो नामों-निशान तक नहीं है, जिससे विद्यालय परिसर आवारा जानवरों और असामाजिक तत्वों का अड्डा बन गया है। शौचालयों का अधूरा ढांचा किसी भूतिया खंडहर से कम नहीं, और बच्चों के लिए इस्तेमाल के लायक तो बिल्कुल नहीं है। गांव के निवासी बताते हैं कि किसी अधिकारी ने झांकना तक मुनासिब नहीं समझा, काम शुरू होना तो दूर की बात है।


बूँद-बूँद तकलीफ, तिल-तिल मरती शिक्षा

आधारभूत सुविधाओं के अभाव में विद्यालय के नौनिहाल छात्र-छात्राएं नारकीय जीवन जीने को मजबूर हैं। छोटे-छोटे बच्चों के लिए यह वातावरण न केवल असुरक्षित है, बल्कि उनकी कोमल कल्पनाओं और सीखने की ललक को भी कुचल रहा है। पीने के पानी की मामूली व्यवस्था को छोड़कर, बाकी तमाम ज़रूरी सुविधाओं का यहां घोर अभाव है। इस अभाव ने शिक्षा की गुणवत्ता को बुरी तरह से प्रभावित किया है, मानो ज्ञान की गंगा यहां पहुंचते-पहुंचते सूख गई हो।


गुणवत्ता पर गहरा प्रश्नचिह्न, जवाबदेही का घोर सन्नाटा

ग्रामीणों का दर्द आक्रोश में बदल चुका है। उनका आरोप है कि अतीत में जो भी थोड़ा-बहुत निर्माण कार्य हुआ, उसमें घटिया सामग्री का इस्तेमाल किया गया। नतीजा यह हुआ कि कक्षाओं की फर्श कुछ ही महीनों में दरकने लगीं। ग्राम प्रधान और जिम्मेदार अधिकारियों की पत्थर-दिली पर गांववालों का गुस्सा फूट रहा है। उनका स्पष्ट कहना है कि बच्चों के भविष्य के साथ ऐसा घिनौना खिलवाड़ किसी भी कीमत पर बर्दाश्त नहीं किया जाएगा।

आंदोलन की दहलीज पर गांव, क्या सरकार सुनेगी चीख?

अब मझगावां के लोग खामोश रहने के मूड में नहीं हैं। उन्होंने जिलाधिकारी और शिक्षा विभाग से तत्काल इस मामले में दखल देने की गुहार लगाई है। ग्रामीणों ने चेतावनी दी है कि अगर जल्द ही कोई ठोस कार्रवाई नहीं की गई, तो वे सड़कों पर उतरकर आंदोलन करने के लिए बाध्य होंगे। उनका सीधा और तीखा सवाल है – “क्या सरकार की तमाम योजनाएं सिर्फ शहरों की चकाचौंध के लिए हैं? क्या गांवों में पल रहे बच्चों का कोई भविष्य नहीं? क्या उनके सपनों का कोई मोल नहीं?”

ग्राम प्रधान से इस मुद्दे पर उनका पक्ष जानने के लिए कई बार संपर्क करने की कोशिश की गई, लेकिन हर बार उनका फोन या तो बंद मिला या उन्होंने कॉल का जवाब नहीं दिया। उनकी यह चुप्पी कई सवाल खड़े करती है।


आखरी बात

मझगावां की यह दर्दनाक कहानी सिर्फ एक गांव की त्रासदी नहीं है, बल्कि यह एक विशाल सरकारी तंत्र की गहरी विफलता का स्याह प्रतीक है। अगर अब भी समय रहते इस पर ध्यान नहीं दिया गया, तो न केवल इस विद्यालय में शिक्षा का स्तर और गिरेगा, बल्कि सरकार की तमाम लोक-लुभावन योजनाओं पर से आम जनता का विश्वास भी हमेशा के लिए उठ जाएगा। क्या हुक्मरान इन मासूमों की करुण पुकार सुनेंगे, या फिर विकास की चकाचौंध में गांवों का भविष्य हमेशा के लिए अंधकार में ही डूबा रहेगा? यह एक ऐसा सवाल है जिसका जवाब आने वाला वक्त ही देगा।

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